गुरुप्राप्ति पश्‍चात पूजाघर में क्या परिवर्तन करें ?

१. पूजाघर में परिवर्तन

पूजाघर में गुरु का छायाचित्र अथवा मूर्ति रखनी चाहिए । उसे प्रतिदिन पोंछकर, देवताओं की पूजा करते समय जब अगरबत्ती दिखाते हैं, तो उन्हें भी अगरबत्ती दिखाएं तथा पूजा समाप्त होने पर जब नमस्कार करते हैं तो उन्हें भी नमस्कार करें । गुरु की कोई विशेष आरती हो तो वह, अन्यथा गुरुरूपी भगवान दत्तात्रेय की आरती करनी चाहिए अथवा गुरु के दिए नाम को उस समय जपना चाहिए ।

 

२. जो अकेला रहता हो, वह गुरुप्राप्ति पश्‍चात क्या करे ?

उसे पूजाघर के समस्त देवताओं की मूर्तियों एवं चित्रों को ऐसे साधक को दे देना चाहिए, जो नियमित रूप से उनकी पूजा कर सके । ऐसा साधक न मिले तो मूर्तियां मंदिर में दे दें अथवा नदी, समुद्र जैसे स्थानों में जल में विसर्जित कर दें । केवल गुरु के छायाचित्र को पूजाघर में रखना चाहिए । इससे अनेक से एक की ओर जाने में सहायता मिलती है । गुरु ने किसी विशिष्ट देवताका नामजप करने के लिए कहा हो, तो उस देवता का चित्र गुरु के चित्र अथवा मूर्ति की दाईं ओर एवं देवी हों, तो उनका चित्र अथवा मूर्ति गुरु के चित्रकी बाईं ओर स्थापित करनी चाहिए । आगे चलकर विवाह हो जाए, तो कुटुंब के अन्य सदस्यों के लिए कुल के स्त्री एवं पुरुष देवताओं की मूर्तियां एवं चित्र उपर्युक्त नियमों के अनुसार पूजाघर में स्थापित करने चाहिए ।

 

३. गुरु-प्राप्त व्यक्ति यदि कुटुंबप्रमुख हो, तो क्या करे ?

गुरुप्राप्ति हो जाने पर (भी) कुटुंब के अन्य सदस्यों के लिए, जिन्हें गुरुप्राप्ति नहीं हुई है, पूजाघर में अन्य देवताओं के मध्य में गुरु के छायाचित्र की स्थापना करनी चाहिए । अन्य देवी-देवताओं की स्थापना ऊपर दिए नियमानुसार करनी चाहिए । ऐसे कुटुंबप्रमुख के निधन के पश्‍चात उनके गुरु का चित्र उस गुरु के अन्य किसी शिष्य को दे देना अथवा विसर्जित कर देना चाहिए।

 

४. गुरु-प्राप्त व्यक्ति यदि कुटुंबप्रमुख न हो, तो क्या करे ?

किसी विद्यार्थी अथवा स्त्री को यदि गुरुप्राप्ति हुई हो एवं माता-पिता अथवा पति किसी प्रकार का विरोध करते हों, तो उसे गुरु का चित्र ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जहां वह दिखें नहीं; जैसे अपने ड्रॉवर, अभ्यासपुस्तक, बटुए इत्यादि में रखना चाहिए ।

 

५. वास्तु के मुख्य द्वार पर गुरु का चित्र लगाते हैं,
यह उचित है क्या ? कौन सा चित्र लगाना चाहिए ?

वास्तु के प्रवेशद्वार पर हम श्री गणेशजी का चित्र लगाते हैं । हमें प्राचीन मंदिरों के प्रवेशद्वार पर भी यही चित्र / मूर्ति दिखाई देती है । बहुत बार ऐसा होता है कि घर के पूजाघर में हम नियमित रूप से पूजा करते हैं, परंतु प्रवेशद्वार के बाहर लगाए चित्र की ऊंचाई अधिक होने के कारण न तो उसे नियमित स्वच्छ करते हैं और ना ही उसकी पूजा करते हैं । ऐसा करना देवता तथा गुरु का अपमान है । गुरु के छायाचित्र को अन्य छायाचित्र समान उसे मात्र छायाचित्र न समझकर, वहां प्रत्यक्ष गुरु ही हैं, ऐसा समझना चाहिए; क्योंकि शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं सदा उनकी शक्ति के एकत्रित होने के कारण गुरु के छायाचित्र में उनका चैतन्य भी होता है । इसलिए प्रवेशद्वार पर लगाने की अपेक्षा सम्भव हो तो छायाचित्र पूजाघर में ही लगाएं । निरंतर गुरुके स्मरण हेतु बैठक, रसोईघर अथवा कार्यालय इत्यादि में उनका छायाचित्र लगा सकते हैं ।

गुरु के छायाचित्र को प्रत्येक दिन पोंछकर, देवताओं की पूजा करते समय अगरबत्ती दिखाएं तथा पूजा समाप्त होने पर नमस्कार करें ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ “शिष्य”

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