अध्यात्म में साधना का आरंभ कैसे होता है ?

‘अध्यात्म में साधना का आरंभ अर्थात ‘अ’(A) ऐसा कुछ नहीं होता । प्रत्येक के आध्यात्मिक स्तर एवं साधनामार्ग के अनुसार उसकी साधना आरंभ होती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले (२९.१२.२०२१)

साधक और नेताओं में भेद !

‘नेता अपने लाभ के लिए समाज से ‘मुझे मत (वोट) दो’, ऐसा कहते हैं , इसके विपरीत साधक समाज से अपने लिए कुछ नहीं मांगते; अपितु ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करो’, ऐसा कहते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

कहां आदर्श प्रभु श्रीराम और कहां आज के अकार्यक्षम नेता !

कहां सहस्रो दावे लंबित होने पर भी कुछ ना करनेवाली आज तक की सरकारें और कहां जनता में से एक व्यक्ति द्वारा केवल संदेह व्यक्त करने पर सीता का त्याग करनेवाले प्रभु श्रीराम ! इस कारण प्रभु श्रीराम अजर अमर हैं, जबकि नेताओं को जनता कुछ वर्षों में ही भूल जाती है । – (परात्पर … Read more

सात्त्विक व्यक्तियों का ध्येय !

‘सात्त्विक व्यक्तियों के व्यष्टि जीवन का ध्येय होता है ईश्वरप्राप्ति, जबकि समष्टि जीवन का ध्येय होता है रामराज्य !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

हिन्दू राष्ट्र में राज्यकर्ता अच्छे ही होंगे !

‘स्वतंत्रता से लेकर अभी तक चुनकर आए राजनीतिक दल ‘अच्छे हैं’, इसलिए नहीं चुने गए । इसके विपरीत वह अन्य दलों की तुलना में कम बुरे हैं, इसलिए चुने गए हैं ! (अंग्रेजी में एक वाक्य है ‘The Lesser of two evils.’ जिसका अर्थ है, ‘उपलब्ध दो अनुचित विकल्पों में से न्यूनतम हानि करनेवाला विकल्प … Read more

भारत की दुर्दशा पर ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ ही एकमात्र उपाय !

‘कहां इंग्लैंड से आए मुट्ठीभर अंग्रेज संपूर्ण भारत पर कुछ ही वर्षों में राज्य करने लगे और कहां स्वतंत्रता के उपरांत 74 वर्ष की अवधि में विभाजित भारत पर भी राज्य न कर पानेवाले, प्रतिदिन हिंसाचार के समाचारों से युक्त अभी तक के शासनकर्त्ताओं का राज्य ! इसका एक ही उपाय है और वह है … Read more

वर्तमान में मानसिक नहीं, तो केवल शारीरिक प्रेम करनेवाले पति-पत्नी !

‘वर्तमान काल के स्त्री-पुरुष के बीच का प्रेम अधिकतर केवल शारीरिक प्रेम होता है । इसलिए उन्हें विवाह करने की भी आवश्यकता नहीं लगती और उन्होंने विवाह किया, तो वह टूट जाता है । उनकी एक-दूसरे से नहीं बनी, तो वे मानसिक प्रेम न होने से जोडीदार बदलते रहते हैं । विवाह किया हो, तो … Read more

संसार का एकमात्र धर्म है हिन्दू धर्म !

‘उत्पत्ति स्थिति और लय’, इस सिद्धांत के अनुसार विविध संप्रदायों की स्थापना होती है और कुछ काल के उपरांत उनका लय होता है, अर्थात उनका अस्तित्त्व नहीं बचता । इसके विपरीत सनातन हिन्दू धर्म की उत्पत्ति न होने के कारण, अर्थात वह अनादि होने के कारण; वह अनंत काल तक रहता है । यह हिन्दू … Read more

‘सर्वधर्म समभाव’ कहना, अज्ञान की उच्चतम सीमा है !

‘सभी धर्मों का अध्ययन किए बिना संसार में केवल हिन्दू ही सर्वधर्म समभाव कहते हैं । अन्य किसी भी धर्म का एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं कहता । हिन्दुओं को यह ध्यान में नहीं आता कि ‘सर्वधर्म समभाव’ कहना, अज्ञान की उच्चतम सीमा है, यह ‘प्रकाश और अंधकार एक समान है’, ऐसा कहने जैसा है … Read more