शीतकालीन ऋतुचर्या

शीतकाल ऋतु में जठराग्नि अच्छा होने से किसी भी प्रकार के अन्न का सरलता से पाचन होता है । उसके कारण इस ऋतु में खाने-पीने में बहुत बडा बंधन नहीं होता ।

‘घरेलु औषधि’ सेवन की पद्धतियां !

विशेषज्ञ वैद्य ही ऐसी चिकित्सा कर सकते हैं । विशेषज्ञ वैद्य के अभाव में न्यूनतम रोगी को आराम मिले, इसके लिए परंपरागत घरैलु औषधियों की बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध की गई है ।

शारदीय ऋतुचर्या : शरद ऋतु में स्वस्थ्य रहने हेतु आयुर्वेदीय चिकित्सा !

वर्षाऋतु समाप्त होते-होते सूर्य की प्रखर किरणें धरती पर पडने लगती हैं । तब शरद ऋतु का आरंभ होता है ।

सदैव निरोगी रहने के लिए नारियल तेल का उपयोग करें !

यदि प्रत्येक व्यक्ति नारियल तेल को अपने जीवन का अविभाज्य अंग बना ले, तो दूसरी किसी भी औषधि की आवश्यकता नहीं लगेगी

मीठे पदार्थ भोजन के प्रारंभ में खाने चाहिए या अंत में ?

आयुर्वेद के अनुसार मिष्ठान्न अर्थात मीठे पदार्थ भोजन के प्रारंभ में खाने चाहिए । जिससे वात का शमन होता है तथा पचनक्रिया में बाधा नहीं आती ।

जंक फूड छोडें, आयुर्वेद अपनाएं (भारतीय पदार्थ खाएं) !

जंक फूड त्यागकर, आयुर्वेद अपनाएं, यही इसका सबसे अच्छा उपाय है । आयुर्वेद न केवल शरीर, अपितु मन एवं बुद्धि का भी उत्तम पालन-पोषण हो, इसके लिए सात्त्विक अन्न ग्रहण करने के लिए कहता है ।