जन्मकुंडली, हस्तसामुद्रिक और पादसामुद्रिक में भेद

हाथ और पैर की रेखाओं का संबंध पूर्वजन्म के कर्मों से होता है; इसलिए उन्हें ‘कर्मरेखा’ कहा गया है । कर्म करने से इन रेखाओं में सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं । पश्चात, ये परिवर्तन स्थूलरूप में दिखाई देते हैं ।

हिन्दू किसे कहना चाहिए ?

जो व्यक्ति (उत्तर-पश्चिम में) सिन्धु महानदी से (दक्षिण में) सिन्धु (हिन्द) महासागर तक फैले विशाल भूभाग को अपनी पितृभूमि (पूर्वजों की भूमि) और पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है ।

गुरुकुल शिक्षापद्धति

आजतक आपने अनेक बार भारत की प्राचीन गुरुकुल शिक्षापद्धति के विषय में सुना होगा । इस पद्धति की शिक्षा के विषय में हमें इतना ही पता होता है कि इसमें गुरु के घर जाकर अध्ययन करना पडता है ।

गोपीभाव एवं कृष्णभाव

गोपीभाव का अर्थ है श्रीकृष्णमिलन की तडप अथवा श्रीकृष्णमिलन की आर्तता और कृष्णभाव का अर्थ है केवल शुद्ध आनंद । कलियुग में यह दोनों बातें अत्यंत ही दुर्लभ हो गई हैं ।

धर्म और नीति

नीति का मुख्य सिद्धांत है, एकता, मोक्ष अथवा समरसता का अनुभव करना । जिससे देवता के विषय में उचित ज्ञान बढाने में और उसके माध्यम से उनका दर्शन होने में सहायता हो, वह सब नीति है, अन्य सब अनीति है ।’

हिन्दुओ, हिन्दू धर्म की अद्वितीय विशेषताएं समझ लें !

प्राणिमात्र में ही नहीं, अपितु निर्जीव बातों में भी परमेश्वर का अस्तित्व होने के कारण हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की संख्या ३३ करोड है ।

हिंदूओं के देवता और उनकी कुल संख्या

सदैव कहा जाता है कि तैंतीस कोटि (करोड) देवता होते हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि प्रमुख देवता तैंतीस हैं और प्रत्येक देवता के एक कोट गण, दूत आदि हैं ।

सर्व भाषाओं में सर्वोत्कृष्ट देवभाषा संस्कृत की महिमा

संस्कृत भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है । यह विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक और पूर्ण लिपि है । यह लिपि लिखने और बोलने में किसी भी प्रकार की अडचन नहीं है ।

सनातन के सभी आश्रमों एवं प्रसारसेवा में सक्रिय साधकों को भावविश्‍व में ले जानेवाले रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में होनेवाले भावसत्संग !

भाव उत्पन्न करने के लिए किए जानेवाले ऐसे प्रयोगों से साधक अंतर्मुख बनता है । साथ ही, थोडे समय के लिए ही क्यों न हो; वह भावस्थिति का अनुभव करता है । साधक के अंतर्मन में उभरनेवाली प्रतिक्रियाएं, स्वभावदोष एवं अहं के विचार, बाहर आने लगते हैं और उसका मन निर्मल होने लगता है ।

भावुकता, को नियंत्रित करने हेतु सदगुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का मार्गदर्शन !

किसी प्रसंग में मन भावुक हो जाता है और रोना आता है । तब मन की बहुत ऊर्जा का अपव्यय होता है । इसका परिणाम सेवा पर भी होता है । सेवा की अवधि घट जाती है ।