हिन्दू किसे कहना चाहिए ?

 

१. आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका ।
पितृभूः पुण्यभूश्‍चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः ॥

अर्थ : जो व्यक्ति (उत्तर-पश्‍चिम में) सिन्धु महानदी से (दक्षिण में) सिन्धु (हिन्द) महासागर तक फैले विशाल भूभाग को अपनी पितृभूमि (पूर्वजों की भूमि) और पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है ।

 

२. ‘हिन्दू’ शब्द ही ‘हिन्दूसंगठन’ का आधार !

‘हिन्दू’ शब्द ही हिन्दूसंगठन का आधार है । इसलिए इस शब्द का अर्थ जितना व्यापक अथवा संकीर्ण, जितना दृढ अथवा लचीला, जितना चिरंतन अथवा चंचल होगा, उस नींव पर बना हिन्दुओं का संगठन उतना ही व्यापक, प्रबल और दीर्घजीवी होगा ।

 

३. देश तथा उसमें उत्पन्न धर्म और संस्कृति के
बंधनों से श्‍वास लेनेवाला राष्ट्र हिन्दुत्व के दो प्रमुख घटक

हिन्दू शब्द की व्याख्या किसी धर्मग्रंथ अथवा धर्मविचार के अनुसार करना, अनुचित और भ्रामक होगा । हिन्दू शब्द की व्याख्या का ऐतिहासिक आधार, ‘आसिंधुसिंधु भारतभूमिका’ होना चाहिए । इस हिन्दुत्व के दो प्रमुख घटक हैं, ‘देश’ और उसमें उत्पन्न धर्म तथा संस्कृति के बंधनों के लिए समर्पित ‘राष्ट्र’ । इसलिए, यथासंभव, हिन्दुत्व की व्याख्या का आधार ऐतिहासिक होना चाहिए । इसके अनुसार, ‘सिन्धु महानदी से सिन्धु (हिन्द) महासागर तक फैला देश, जिसकी पितृभू और पुण्यभू है, वह हिन्दू है !

 

४. हिन्दू संपूर्ण पृथ्वी पर कहीं भी बसे हों, उनकी प्राचीन,
परंपरागत, जातीय और राष्ट्रीय पूर्वजों की ‘पितृभू’ भारत ही रहेगी !

इसमें ‘पितृभू’ और ‘पुण्यभू’ शब्दों का अर्थ थोडा पारिभाषिक है । पितृभू का अर्थ केवल अपने माता-पिता की जन्मभूमि नहीं, अपितु प्राचीनकाल से जिस भूमि में हमारी जाति और राष्ट्र के पूर्वज रहा करते थे, वह है । कुछ लोग तुरंत शंका उपस्थित करते हैं कि हम दो पीढियों से अफ्रिका में रहते हैं । तब, क्या हम हिन्दू नहीं हैं ? उनकी यह शंका निरर्थक है । हमारे हिन्दू यदि भविष्य में संपूर्ण पृथ्वी पर भी अपना घर बना लें, तब भी उनके प्राचीन, परंपरागत, जातीय और राष्ट्रीय पूर्वजों की पितृभू ‘भारत’ ही रहेगी ।

 

५. पुण्यभू का अर्थ है -धर्मोपदेश करनेवाला,
धर्म का संस्थापक, ऋषि, अवतार अथवा प्रेषित के
अवतरण और निवास से धर्मक्षेत्र के समान पुण्यवान भूमि !

पूण्यभू का अर्थ, इंग्लिश ‘होली लैंड’ शब्द के अर्थ जैसा है । जिस भूमि पर किसी धर्म का संस्थापक, ऋषि, अवतार अथवा प्रेषित जन्म लेता है और धर्म का उपदेश करता है तथा उसके निवास से जो भूमि धर्मक्षेत्र के समान पुण्यवान हो जाती है, वह उस धर्म के लोगों की पुण्यभू हुई; जैसे यहूदियों अथवा ईसाइयों के लिए फिलिस्तीन, मुसलमानों के लिए अरब है । इस अर्थ से पुण्यभू शब्द का प्रयोग किया गया है, केवल पवित्रभूमि, इस अर्थ में नहीं ।

 

६. हिन्दुत्व की व्याख्या में सत्यता और व्यापकता

पितृभू और पुण्यभू इन शब्दों की पारिभाषा के अनुसार, ‘सिन्धु (महानदी सिन्धु) से सिन्धु (हिन्द महासागर) तक फैली भारतभूमि जिसकी पितृभूमि और पुण्यभूमि है, वह हिन्दू है ! हिन्दुत्व की यह व्याख्या जितनी ऐतिहासिक है, उतनी आज की वास्तविकता के पूर्णतः अनुरूप भी है । यह जितनी वास्तविक है, उतनी इष्ट है और जितनी व्यापक है, उतनी व्यावहारिक भी है ।

संदर्भ : (मराठी) सांस्कृतिक वार्तापत्र, हिंदुसंघटक सावरकर विशेषांक, १५ अगस्त २००८
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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