अष्टविनायक
सिद्धटेक का श्री सिद्धीविनायक भीमा नदी पर बसे अष्टविनायकों का स्वयंभू स्थान है । इसका गर्भगृह की लंबाई-चौडाई काफी है । इसके साथ ही मंडप भी बडा और प्रशस्त है । पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर ने जीर्णोद्धार कर मंदिर बनाया था ।
सिद्धटेक का श्री सिद्धीविनायक भीमा नदी पर बसे अष्टविनायकों का स्वयंभू स्थान है । इसका गर्भगृह की लंबाई-चौडाई काफी है । इसके साथ ही मंडप भी बडा और प्रशस्त है । पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर ने जीर्णोद्धार कर मंदिर बनाया था ।
यवतमाळ-नागपुर राज्य महामार्ग पर यवतमाळ से २३ कि.मी. के अंतर पर श्री क्षेत्र कळंब गांव के प्रसिद्ध श्री चिंतामणी मंदिर लाखों भाविकों के श्रद्धास्थान हैं । इस प्रसिद्ध श्री चिंतामणी मंदिर के विषय में तथा श्री चिंतामणी की आख्यायिका जान लेते हैं ।
आकाशवाणी द्वारा हुए आदेश से महर्षि गृत्समद ने विदर्भ छोडकर पुणे जिले के थेऊर को अपनी कार्यभूमि के रूप में चुना और तपश्चर्या प्रारंभ की । बारह वर्षों की तपस्या के उपरांत भगवान गणेश प्रकट हुए और उन्होंने महर्षि गृत्समद को अनेक वरदान दिए । उसी स्थान पर महर्षि गृत्समद ने श्री गणेश की स्थापना की ।
ब्रह्मदेव के कमंडल का पानी नीचे पृथ्वी पर छलका और कर्हा नामक नदी का उदय हुआ । इस नदी के किनारे मयुरेश्वर आदि क्षेत्र अत्यंत प्राचीन काल से बसा है । मोरगांव के गणपति के रूप में विख्यात क्षेत्र पुणे जिले में आता है । यह क्षेत्र अविनाशी है ।
समुद्र की सतह से २ सहस्र फुट की ऊंचाई पर रणथंभोर के जंगल की एक पहाडी के किनारे से यह स्वयंभू गणपति प्रकट हुआ है । श्री गणेश की मूर्ति पूर्ण न होकर पहाडी से बाहर आए भाग में श्री गणेश का केवल मुख और सूंड का भाग हमें दिखाई देता है ।
आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के कनिपकम् विनायक मंदिर का यह स्वयंभू गणेशमूर्ति अनेक आख्यायिकाआें के कारण जगभर में प्रसिद्ध है । बताया जाता है कि चोल वंश के राजा ने ११ वीं शताब्दी में यह मंदिर बनवाया था । विजयनगर के राजा ने वर्ष १३३६ में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया ।
श्री गणेश क्षेत्रों में से अति प्राचीन विदर्भ की अदोष क्षेत्र में साक्षात् श्रीवामनावतार ने उपासना की थी । ऐसे इस परमपवित्र स्थान पर वामन द्वारा स्थापित (१) शमी विघ्नेश्वर की विलोभनीय मूर्ति और (२) श्री गणपति मंदिर
वर्धा जिले के केळझर में वरद विनायक श्री गणपति का मंदिर है, जिसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली है । केळझर, नागपुर से ५२ किमी की दूरी पर है । यह पहाडी की गोद में बसा रमणीय स्थल है । वसिष्ठपुराण और महाभारत में इस मंदिर की महिमा का वर्णन है ।
प्रभु श्रीरामचंद्रजी के चरणस्पर्श से पावन हुआ नागपुर जिले का रामटेक पवित्र तीर्थक्षेत्र ! शैैवल्य पर्वत बने इस गढ की तलहटी पर अठारह भुजाआेंवाले श्रीगणेश का स्थान है ।
नागपुर के महाल क्षेत्र में श्री गणपति का प्रसिद्ध और जागृत मंदिर है । नागपुर के प्रसिद्ध संगीतकार श्री. मधुसूदन ताम्हणकर के घर में यह मंदिर है ।