भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनकर जिसने निद्रानाश से मुक्ति पाई, वह इटली का तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी !

पंडित ठाकुर ने राग पुरिया के आलाप लेना आरंभ किया । इस राग में ऐसा एक चमत्कारिक प्रकार था कि जिससे मुसोलिनी केवल १५ मिनटों में ही निद्राधीन हुआ ।

कला के लिए कला नहीं, ईश्‍वरप्राप्ति के लिए कला

विविध कलाआें की ओर देखने का सनातन का दृष्टिकोण – केवल कला के लिए कला नहीं, ईश्‍वरप्राप्ति के लिए कला है । इसलिए, सनातन संस्था कला के माध्यम से भी ईश्‍वर को प्राप्त करना सिखाती है ।

श्री हनुमान तत्त्वको आकृष्ट करनेवाली रंगोली

श्रीहनुमान के मारक तत्त्वको आकृष्ट करनेवाली रंगोली मध्यबिंदू से अष्टदिशांमें प्रत्येकी ५ बिंदू श्रीहनुमान के तारक तत्त्वको आकृष्ट करनेवाली रंगोली मध्यबिंदू से अष्टदिशांमें प्रत्येकी ४ बिंदू

वाहिनी पर प्रदर्शित होनेवाली धार्मिक मालिकाओं के संगीत में सात्त्विकता तथा पंडित जसराज द्वारा गाए आलापों के संदर्भ में साधक को प्राप्त ज्ञान !

लगभग ४-५ वर्ष पूर्व मैंने ‘देवों के देव महादेव’ नामक धारावाहिक की कुछ कडियां देखी थीं । उसमें बीच-बीच में पंडित जसराज के विशेषता से परिपूर्ण आलाप सुने । तत्पश्चात् मुझे उसका विस्मरण हुआ था;किंतु ४ माह पूर्व मुझे नींद में पंडित जसराज के आलाप लगातार सुनाई देने लगे ।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के कलाकारों की दयनीय स्थिति

सद्गुरु (सौ.) अंजली गाडगील काकूने बताया संगीत साधना में बैखरी वाणी की अपेक्षा अंतर्मन में नादब्रह्म जागृत करने का महत्त्व है । नहीं तो संपूर्ण जीवन ऐसे ही गाने में व्यर्थ जाएगा ।

नृत्य करने का मूल उद्देश्य साध्य करने के लिए ‘ईश्‍वरप्राप्ति के लिए नृत्यकला’ यह दृष्टिकोण सबके सामने प्रस्तुत करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

हमारी संस्कृति में नृत्यकला का प्रादुर्भाव मंदिरों में ही हुआ है । इसका विकास एक उपासना माध्यम के रूप में हुआ । इसके माध्यम से भी ईश्‍वरप्राप्ति हो, इसके लिए सनातन की साधिका श्रीमती सावित्री इचलकरंजीकर और डॉ. (कुमारी) आरती तिवारी ने नृत्य आरंभ किया है ।

सूक्ष्म-चित्रकला के माध्यम से अज्ञान से ज्ञान की ओर एवं चित्रकलारूपी तेज की ओर से ज्ञानरूपी आकाश की ओर ले जानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवले !

  सूक्ष्म जगत से परिचित करानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ! संसार में अनेक महाविद्यालय हैं; परंतु किसी भी कला महाविद्यालय में अध्यात्मसंबंधी शिक्षा नहीं दी जाती । ‘कला क्या है ?’ ‘कलाएं कैसे निर्मित हुई?’ ‘कलाएं कितने प्रकार की होती हैं’ ‘जीवन में कला का महत्त्व क्या है ?’, यह भी किसी कला महाविद्यालय … Read more

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के संगीत विभाग की साधिका को हुई अनुभूतियां

संगीत, नाद-साधना है, स्वभावदोष और अहं जाने पर ही, चैतन्यदायी गायन हो पाएगा ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शनानुसार श्री गणेशमूर्ति बनाते समय मूर्तिकार साधक श्री गुरुदास खंडेपारकर को सीखने के लिए मिले सूत्र

गणेशजी की सात्त्विक मूर्ति बनाते समय परम पूज्य डॉक्टरजी मूर्तिनिर्माण के प्रत्येक चरण में अनेक सुधार बताते थे । तब, मुझे लगता था कि ये ठीक कह रहे हैं और इनके बताए अनुसार सुधार कर, मूर्ति बनानी चाहिए ।’ इसलिए, मूर्ति में अनेक सुधार करना पडा ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधक द्वारा की गई पूजा के फूलों की विविधतापूर्ण रचना

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन के कारण साधकों पर जीवन का प्रत्येक कृत्य कलात्मक रूप से तथा सत्यम् शिवम् सुंदरम् करने का संस्कार हो गया है ।