परात्पर गुरु डॉ. आठवलजी ने वादनकला के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की एक अमूल्य संधि दी है !

स्थूल रूप से भारतीय वाद्यों की अपेक्षा पश्चिमी वाद्य अधिक प्रगतिशील प्रतीत होते हैं किंतु सूक्ष्म रूप से देखने पर उसका परिणाम अच्छा नहीं होता । एक कार्यक्रम में इसका प्रयोग किया गया था ।

सरोदवादन, ईश्‍वरप्राप्ति के लिए है तथा वादन करते समय ‘मैं ध्याना कर रहा हूं’, ऐसा भाव रखनेवाले मुम्बई के सुविख्यात सरोदवादक श्री. प्रदीप बारोट !

श्री. प्रदीप बारोट का पूरा परिवार ही संगीतमय है । उनके दादाजी पं. रोडजी बारोट विख्यात सारंगीवादक तथा रतलाम राजघराने के मान्यताप्राप्त संगीतकार थे ।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के कलाकारों की दयनीय स्थिति

सद्गुरु (सौ.) अंजली गाडगील काकूने बताया संगीत साधना में बैखरी वाणी की अपेक्षा अंतर्मन में नादब्रह्म जागृत करने का महत्त्व है । नहीं तो संपूर्ण जीवन ऐसे ही गाने में व्यर्थ जाएगा ।