भारतीय शास्त्रीय संगीत के कलाकारों की दयनीय स्थिति

मैं पिछले १५ वर्षों से तबलावादन करते हुए शास्त्रीय संगीत क्षेत्र में कार्यरत हूं । इस कालखंड में मुझे अनेक प्रसिद्ध कलाकारों के साथ रहने का अवसर मिला । जिसके कारण मुझे शास्त्रीय संगीत के कलाकारों की दयनीय स्थिति समझ में आई, वह यहां बता रहा हूं ।

 

१. एक प्रसिद्ध कलाकार का व्यसन के कारण तबला न बजा पाना

एक सुप्रसिद्ध तबलावादक से मैं तबला सीखता था । एक दिन उनसे बात करते समय मुझे पता चला कि, पहले वह एक प्रसिद्ध तबलावादक थे । परंतु मद्य व्यसन के कारण वह अब पहले की तरह तबला नहीं बजा पाते हैं ।

 

२. संगीत महोत्सव के लिए आए कुछ कलाकारों का रात को मद्यपान का (शराब पीने का) कार्यक्रम करना

एक बार मैं अपने गुरुजी के साथ तीन दिन के एक संगीत महोत्सव में गया था । उस संगीत महोत्सव में देश के अन्य प्रसिद्ध कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए आए थे । इस कार्यक्रम हेतु रात को होटल पहुंचने पर मुझे ध्यान में आया कि रात के समय कुछ कलाकारों का मद्यपान (शराब पीने) का कार्यक्रम था । जिसके कारण मुझे तथा एक और विद्यार्थी को बाहर जाने के लिए बोला ।

 

३. संगीत महोत्सव के लिए आए एक प्रसिद्ध गायक और उनके युवा बेटे दोनों को ही शराब की लत थी (मद्दपान का व्यसन था ।)

एक बार मैं एक बडे संगीत महोत्सव में गया था । उस महोत्सव में एक प्रसिद्ध गायक आए हुए थे । उनके साथ उनका २२ वर्षीय गायक बेटा भी आया था । उस लडके से मेरा परिचय होने पर कार्यक्रम आरंभ होने से पूर्व वह मुझसे मिला । उस समय उसके समीप जाने पर मुझे शराब की दुर्गंध आई । उपरांत मुझे एक कलाकार से पता चला कि उनके पिता भी शराब पीते हैं और बेटा भी अधिकतर शराब के नशे में ही रहता है ।

 

४. एक प्रसिद्ध गायक के घर का वातावरण कष्टदायक होना और उनका व्यसनी होना

एक दिन सवेरे मैं और मेरा मित्र एक प्रसिद्ध गायक से मिलने गए थे । उनके घर का वातावरण मुझे कष्टदायक लगा । कुछ समय पश्‍चात उस गायक ने हमें पीने के लिए पानी दिया । हमें पानी देते समय उसके हाथ कांप रहे थे । वह हमारे समीप आया तो हमें शराब की दुर्गंध आई ।

 

५. कलाकार की प्रसिद्धि के अनुसार कार्यक्रम के लिए लाखों रुपए तक लेना :

वर्तमान में अनेक कलाकार कार्यक्रम के लिए कितने पैसे मिलेंगे, इसका अंदाज लेकर कार्यक्रम निश्‍चित करते हैं । एक कार्यक्रम के लिए साधारण २० से २५ हजार तक लेते हैं । प्रत्येक कलाकार कितना प्रसिद्ध है, इसके अनुसार यह आकडा लाखों रुपए तक जाता है । वर्तमान में शास्त्रीय संगीत की ओर साधना अथवा ईश्‍वर की ओर जाने का मार्ग इस दृष्टि से न देखते हुए केवल धन अर्जित करने के साधन के रूप में देखा जाता है ।

 

६. अपने पास का ज्ञान अन्यों को न देना

अनेक कलाकार अपने पास का ज्ञान अथवा सीखने को मिले नवीन सूत्र एक-दूसरे को नहीं बताते हैं । दूसरा कलाकार हमारी तुलना में आगे न जाए, यह इसके पीछे का उद्देश्य रहता है । प्रत्येक व्यक्ति दूसरा कहां न्यून है, यही चर्चा करता है ।

 

७. छोटी-सी बात के लिए दूसरों पर चिल्लाने वाले कलाकार के व्यवहार के कारण अनेक लोगों को दु:ख पहुंचना और उसे एक विद्यालय से बाहर निकालना

एक बार मैं एक कथक नृत्य में साथ देने के लिए अभ्यास करने गया था । उस अभ्यास के लिए मेरे साथ एक और हार्मोनियम वादक था । अभ्यास आरंभ होने पर मेरी आयु का एक कत्थक नृत्य कलाकार मुझ पर छोटी-सी बात के लिए चिल्लाने लगा । उसे व्यवस्थित नृत्य करना नहीं आता था ; परंतु तब भी मैं एक बडा कलाकार हूं, ऐसे हावभाव से वह वर्तन कर रहा था । इस प्रसंग के उपरांत हार्मोनियम वादक मुझसे बोलने के लिए आया और उसने कहा कि, वह कलाकार तुम्हें इतना बोल रहा था । तब भी तुमने मौन रहकर सब क्यों सुना ? तुम्हारी जगह अन्य कोई होता तो, उसने उसको अच्छा सुनाया होता । उस कलाकार के इस व्यवहार के कारण अनेक लोगों को दुख पहुंचा है । उसके ऐसे वर्तन के कारण उसे एक विद्यालय से भी निकाल दिया गया था ।

– श्री. गिरीजय प्रभुदेसाई, म्हार्दोल, गोवा. (१३.७.२०१६)

 

८. सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगील का कलाकारों के लिए मार्गदर्शन

कलाकारों की यह दयनीय स्थिति देखकर सद्गुरु (सौ.) अंजली गाडगील काकू के एक वाक्य का मुझे स्मरण हुआ । जो कलाकारों के जीवन को योग्य दिशा देकर उन्हें व्यसन से मुक्त होकर आनंदी जीवन जीना सिखाएगा । उन्होंने बताया, संगीत साधना में बैखरी वाणी की अपेक्षा अंतर्मन में नादब्रह्म जागृत करने का महत्त्व है । नहीं तो संपूर्ण जीवन ऐसे ही गाने में व्यर्थ जाएगा । हमारे पास कई साधक ऐसे हैं, जिन्हें संगीत साधना के कारण सुरों के देवताआें के दर्शन हुए हैं । नादब्रह्म की भी अनुभूति आई है ।

 

९. तबला यह तालियां मिलने के लिए नहीं, पर ईश्‍वर के लिए बजाना चाहिए, इसका प.पू. डॉक्टर जी की कृपा से बोध होना

आजतक मैंने तालियां मिलने के लिए तबला बजाया । कभी भी ईश्‍वर के लिए नहीं बजाया । प.पू. डॉक्टर जी की कृपाआशीर्वाद से मुझे इसका बोध हुआ । प.पू. डॉक्टर ने ही मुझे खरे संगीत की (ईश्‍वर की) उपासना करना सिखाया । नहीं तो आज मैं भी अन्यों की भांति माया में ही कलाकार बनकर अटक गया होता ।

प.पू. डॉक्टर, आपने ही मुझे योग्य मार्ग दिखाया, इसके लिए आपके चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !

श्री. गिरीजय प्रभुदेसाई, म्हार्दोल, गोवा. (१३.७.२०१६)

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