याचक भाव अर्थात शरणागतभाव का महत्त्व

भगवान के पास जाते समय यदि मन में गर्व लेकर जाएंगे अथवा बिना शरणागत हुए जाएंगे, तो निश्चितरूप से भगवान की कृपा नहीं मिलती । हम याचक बनकर गए, शरणागत होकर गए, बिना फल की अपेक्षा रखकर गए, तो भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं ।

भाव का महत्त्व

भगवान का अस्तित्व प्रत्येक कृति करते समय तथा प्रत्येक क्षण अनुभव करना, प्रत्येक कृति करते समय भगवान के अस्तित्व की अनुभूति लेना, अथवा ईश्‍वर के अस्तित्व का भान होना, यही है भाव !

मानसपूजा

देवता अथवा गुरु के सगुण रूप की मन से कल्पना कर मन से ही उनकी स्थूल की कृति समान पूजा करना, अर्थात मानसपूजा करना ।

गोपीभाव एवं कृष्णभाव

गोपीभाव का अर्थ है श्रीकृष्णमिलन की तडप अथवा श्रीकृष्णमिलन की आर्तता और कृष्णभाव का अर्थ है केवल शुद्ध आनंद । कलियुग में यह दोनों बातें अत्यंत ही दुर्लभ हो गई हैं ।

सनातन के सभी आश्रमों एवं प्रसारसेवा में सक्रिय साधकों को भावविश्‍व में ले जानेवाले रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में होनेवाले भावसत्संग !

भाव उत्पन्न करने के लिए किए जानेवाले ऐसे प्रयोगों से साधक अंतर्मुख बनता है । साथ ही, थोडे समय के लिए ही क्यों न हो; वह भावस्थिति का अनुभव करता है । साधक के अंतर्मन में उभरनेवाली प्रतिक्रियाएं, स्वभावदोष एवं अहं के विचार, बाहर आने लगते हैं और उसका मन निर्मल होने लगता है ।

कृतज्ञताभाव

‘ईश्वर की सृष्टि में एक दाना बोने से उसके सहस्रों दानें मिलेंगे । विश्व की कौनसी बैंक अथवा ऋणको इतना ब्याज देता है ? इसलिए इतना ब्याज देनेवाले ईश्वर का थोडासा तो स्मरण कीजिए । इतनी तो कृतज्ञता होनी दीजिए ।’

आत्मनिवेदन भक्ति

साधना में आत्मनिवेदन का विशेष महत्त्व है; क्योंकि इसी माध्यम से हम अद्वैत की भी अनुभूति कर सकते हैं ।

साधिका द्वारा भावजागृति हेतु किए गए प्रयास

‘स्वयं में भाव उत्पन्न होना ईश्वरप्राप्ति की तडप, अंतकरण में ईश्वर के प्रति बना केंद्र और प्रत्यक्षरूप से साधना, इन घटकोंपर निर्भर होता है । कृती बदलने से विचार बदलते हैं और विचारों को बदलने से कृती बदलती है’, इस तत्त्व के अनुसार मन एवं बुद्धि के स्तरपर निरंतर कृती करते रहने से भाव शीघ्र होने में सहायता मिलती है ।

साधिका के मन की भाव स्थिती

गोपियों के हाथ से कृष्ण मक्खन खाते हैं; उन्हें प्रत्यक्ष भगवान के साथ रहने के लिए मिलता है’,ऐसा प्रतीत होकर, स्वयं भी साधना करने का विचार मन में आना एवं श्रीकृष्ण की कृपा से प्रत्यक्ष उनका संसार करना