नागों का आध्यात्मिक महत्त्व एवं नागपंचमी
कलियुग के आरंभतक विविध स्थानों के देवताओं के लिए स्वतंत्र स्थान दिया जाता था, उदा. स्थानदेवता, ग्रामदेवता, क्षेत्रपालदेवता इत्यादि । उसी प्रकार से भारत के प्रत्येक गांव में नागों को रहने के लिए नागवन थे ।
कलियुग के आरंभतक विविध स्थानों के देवताओं के लिए स्वतंत्र स्थान दिया जाता था, उदा. स्थानदेवता, ग्रामदेवता, क्षेत्रपालदेवता इत्यादि । उसी प्रकार से भारत के प्रत्येक गांव में नागों को रहने के लिए नागवन थे ।
हिन्दू इस त्योहार के प्रति लोगों में जागृति लाकर आज इस त्योहार को जो विकृत स्वरूप प्राप्त हुआ है, उसे रोकने हेतु प्रयास करें । हिन्दुओं को इस माध्यम से हमारे त्योहार और संस्कृति का सम्मान करने हेतु संगठित होना चाहिए ।
आषाढ मास में दीपयज्ञ करने की परंपरा है ।
दीपकों की संख्या १३ मानकर, पूजा की जाती है । इस दिन यमदेवता द्वारा प्रक्षेपित लहरें ठीक १३ पल नरक में निवास करती हैं । इसका प्रतीक मानकर यमदेवता को आवाहन करते हुए १३ दीपकों की पूजा कर, उन्हें यमदेवता को अर्पण किया जाता है ।
हिन्दू धर्मानुसार शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा शिल्पकला एवं सृजनता के देवता माने जाते हैं । भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का निर्माणकर्ता भी कहा जाता है । १७ सप्टेंबर को विश्वकर्मा पूजा की जाती है ।
त्योहार तथा उत्सवों का रहस्य ज्ञात होने से उन्हें अधिक आस्था के साथ मनाया जा सकता है । अतः इन लेखों में इस त्योहार का रहस्य तथा शास्त्र की जानकारी देनेपर विशेष बल दिया गया है । हिन्दू नववर्ष अर्थात गुढी पाडवा को गुढी क्यों खडी की जाती है ?
आकाशदीप का मूल आकार कलशसमान होता है । यह मुख्यतः चिकनी मिट्टी का बना होता है । इसके मध्य पर तथा ऊपरी भाग पर गोलाकार रेखा में एक-दो इंच के अंतर पर अनेक गोलाकार छेद होते हैं ।
दीपावली के दिनों में ब्रह्मांड में संचार करनेवाले अनिष्ट तत्त्वों का निर्मूलन करने के लिए श्रीलक्ष्मी-तत्त्व सक्रिय होता है । इसे प्राप्त करने के लिए, घर के बाहर ऊंचे स्थान पर आकाशदीप लगाया जाता है ।
ओणम केरल का एक प्रमुख त्योहार है। ओणम केरल का एक पर्व है। दक्षिण भारत के अहम पर्वों में से एक है ओणम। इस पर्व में दक्षिण भारत की परंपरा के पूर्ण दर्शन होते हैं।
भारत में बैसाखी एक राष्ट्रीय त्योहार है । इस त्यौहार को उत्तर भारत में विशेषकर पंजाब एवं हरियाणा में मनाया जाता है। बैसाखी त्यौहार अप्रैल माह में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है।