संत ज्ञानेश्‍वर महाराजजी द्वारा रचित ज्ञानेश्‍वरी के अनमोल ज्ञानमोती !

संत ज्ञानेश्‍वर महाराजजी द्वारा रचित ज्ञानेश्‍वरी के कुछ अनमोल ज्ञानमोती इस लेख में प्रसिद्ध कर रहे हैं !

प्राचीन भारतीय ज्ञानपीठोंका गौरवशाली इतिहास !

विद्यापीठ’ का विचार सर्वप्रथम भारत ने ही जगत को दिया । आज वही भारत पश्‍चिमी मैकॉले की निरुपयोगी शिक्षापद्धति के चंगुल में जकडे हुआ है । यह देखकर, प्रत्येक भारतीय मन अस्वस्थ हो जाता है । प्राचीन भारतीय शिक्षापद्धति को वास्तविक अर्थों में गतवैभव प्राप्त करवाना हो, तो हिन्दू राष्ट्र का कोई विकल्प नहीं !

कंबोडिया के महेंद्र पर्वतपर उगम होनेवाली कुलेन नदी को तत्कालनी हिन्दू राजाआें द्वारा पवित्र गंगानदी की श्रेणी प्रदान की जाना तथा प्रजा को गंगा नदी की भांति पवित्र जल मिले तथा भूमि उपजाऊ होने के लिए पानी में १ सहस्र शिवलिंग अंकित किए जाना

वास्तव में कंभोज प्रदेश कौंडिण्य ऋषि का क्षेत्र था, साथ ही कंभोज देश एक नागलोक भी था । ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कंभोज देश के राजा ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था । नागलोक होने के कारण यह एक शिवक्षेत्र भी है ।

दुष्टों के निर्दालन के लिए ब्राह्म तथा क्षात्र तेज का उत्तम उपयोग करनेवाले योद्धावतार भगवान परशुराम ! 

सत्ययुग में मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह तथा वामन ये श्रीविष्णु के ५ अवतार हुए । त्रेतायुग के प्रारंभ में महर्षि भृगु के गोत्र में जामदग्नेय कुल में महर्षि जमदग्नी तथा रेणुकामाता के घर श्रीविष्णु ने अपना छठा अवतार लिया ।

११ वे शतक में यशोधरपुरा के राजे उदयादित्यवर्मन (दूसरे) द्वारा निर्माणकार्य किया गया बापून मंदिर !

अंकोर थाम परिसर के बॅयान मंदिर से कुछ दूरी पर हमें पिरॅमिड के आकार में अब भग्न हुआ एक महान मंदिर दिखाई देता है । इसे ही बापून मंदिर कहा जाता है । ११ वे शतक के यशोधरपुरा के राजे उदयादित्यवर्मन (दूसरे) शिवभक्त थे ।

सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण करनेवाली वैदिक शिक्षापद्धति !

प्राचीनकाल में हमारे देश में वैदिक शिक्षणपद्धति थी । इसलिए, उस समय भारत सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र था । कहा जाता है कि तब यह देश इतना समृद्ध था कि यहां की भूमि से सोने का धुआं निकलता था । इस वैदिक शिक्षापद्धति की नींव आध्यात्मिक थी ।

अंकोर वाट : राजा सूर्यवर्मन (द्वितीय) द्वारा कंबोडिया में बनाया गया हिन्दुओं का संसार का सबसे विशाल मंदिर !

हिन्दु राजा यशोवर्मन द्वारा स्थापित अंकोर नगरी का नाम यशोधरापुरा होना, आगे उसी वंश के राजा सूर्यवर्मन (द्वितीय) द्वारा नगर के मध्य में भगवान श्रीविष्णु का भव्य परमविष्णुलोक’ मंदिर बनाना संसारका सबसे बडा हिन्दू मंदिर हिन्दुबहुल भारत में नहीं , कंबोडिया में है ।

कंबोडिया बौद्ध राष्ट्र होते हुए भी वहां का राजा नरोदोम सिंहमोनी के राजवाडे में सर्व चिह्न ‘सनातन हिन्दु धर्म’ से संबंधित हैं !

‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ इस नाम से संबोधित किया जाताहै, वह अर्थात् वर्तमान का कंबोडिया देश ! यहां १५ वे शतक तक हिन्दु निवास करते थे । ऐसा कहा जाता है कि, ‘खमेर नामक हिन्दु साम्राज्य यहां वर्ष ८०२ से १४२१ तक था ।’ वास्तविक कंभोज प्रदेश कौडिण्य ऋषि का क्षेत्र था, साथ ही कंभोज देश नागलोक भी था ।

स्वामी विवेकानंदजी का उनके गुरु के प्रति उत्कट भाव !

वर्ष १८९६ में स्वामी विवेकानंद आगनांव से (जहाज से) नॅप्लस से कोलंबो की ओर आ रहे थे । उनके सहयात्रियों में दो ईसाई धर्मगुरु थे । अकारण वे हिन्दु धर्म तथा ईसाई पंथ में होनेवाले भेद इस विषय पर चर्चा विवाद करने लगे ।

विदेशी व्यक्तियों का स्पर्श होने पर सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को अनुभव हुआ सात्त्विक स्पर्श और असात्त्विक स्पर्श में भेद !

सद्गुरु(श्रीमती) अंजली गाडगीळ महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की आध्यात्मिक अध्ययन यात्रा की । उसके अंतर्गत विविध देशों में अनेक स्थानों पर जाकर वहां की प्रथा-परंपराएं , संस्कृति आदि विषय की जानकरी लेने की सेवा वे कर रही है । उस समय वहां विविध देशों से आए अनेक पर्यटक भी होते हैं ।