कंबोडिया के ‘नोम देई’ गांव में भगवान शिव का ‘बंते सराई’ मंदिर !

सद्गुरु (श्रीमति) अंजली गाडगीळ के नेतृत्व में महर्षि
अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के गुट का ‘दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का अध्ययन दौरा’

सद्गुरु (श्रीमति) अंजली गाडगीळ
‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ संबोधित किया गया है, वह भूभाग आज का कंबोडिया देश ! यहां १५ वें शतक तक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है की ‘ईसवी सन ८०२ से १४२१ तक वहां ‘खमेर’ नाम का हिन्दू साम्राज्य था’ । कंभोज देश ‘नागलोक’ था जिस कारण यह ‘शिवक्षेत्र’ है । यहां के महेंद्र पर्वत पर श्रीविष्णू का वाहन गरुड है, ऐसा बताया जाता है । इसलिए यह ‘विष्णुक्षेत्र’ भी है । इस प्रकार हरिहर क्षेत्र अर्थात कंभोज देश में महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमति) अंजली गाडगीळ और उनके साथ ४ साधक-विद्यार्थियों के अध्ययन दौरे की कुछ क्षणिकाएं यहां दे रहे हैं ।
श्री. विनायक शानभाग

१. राजा राजेंद्रवर्मन (दूसरे) का अपने २ मंत्रियों को भूमी देना,
तत्पश्चात उन मंत्रियों ने एक छोटा नगर बसाकर उसके मध्यभाग में शिव-पार्वती
मंदिर का निर्माण कर उसे ‘त्रिभुवन महेश्‍वर’ नाम देना और यही ‘बंते सराई’ मंदिर होना

अंकोर वाट से महेंद्र पर्वत कि ओर जाने के मार्ग पर ‘नोम देई’ गांव के १ सहस्र वर्ष से अधिक प्राचीन यह ‘त्रिभुवन महेश्‍वर’ मंदिर ही आज का ‘बंते सराई’ मंदिर !

‘दसवें शतक में राजा राजेंद्रवर्मन (दूसरे) यशोधरपुर में राज्य करते थे । उन्होने अपने राजदरबार के विष्णुकुमार और यज्ञवराह इन २ मंत्रियों को एक बड़ी भूमि दी । इन दोनों ने वहां ‘ईश्‍वरपूर’ नाम का एक छोटा नगर बसाया । यह नगर अर्थात आज का ‘नोम देई’ गांव । विष्णुकुमार और यज्ञवराह ने ईश्‍वरपूर के मध्यभाग मे भगवान शिव और श्री पार्वती देवी का एक मंदिर निर्मित किया और उसे ‘त्रिभुवन महेश्‍वर’ नाम दिया । यह मंदिर अर्थात आज का ‘बंते सराई’ मंदिर ! (छायाचित्र क्रमांक १ देखें) चीरे के पत्थरों से बना यह मंदिर बहुत सुंदर है; परंतु अब वह जीर्ण हो गया है । वहां के शिलालेख पर ऐसा उल्लेख है कि ‘इस मंदिर का कलशारोहण २२ अप्रैल ९६७ को हुआ’ ।

अंकोर वाट से महेंद्र पर्वत का अंतर ७० कि.मी. है । महेंद्र पर्वत के मार्ग पर ‘नोम देई’ गांव में किसी समय अनेक क्षत्रिय महिलाएं रहती थीं । स्थानिक लोग मानते हैं कि ‘बंते सराई’ मंदिर उनका किला रहा होगा’ । ‘बंते’ का अर्थ किला और ‘सराई’ शब्द ‘स्त्री’ शब्द का अपभ्रंश है । अंकोर परिसर के सैकड़ों मंदिरों में यह सबसे छोटा मंदिर है और उसकी शिल्पकला और नक्काशी काम अन्य किसी भी मंदिर में देखने को नहीं मिलता है ।

२. शिव-पार्वती मंदिर के परिसर में श्रीविष्णु-महालक्ष्मी मंदिर होने के प्रमाण होना तथा
इन मंदिरों की दीवारों और द्वारों पर रामायण एवं देवताओं के अनेक सुंदर शिल्प खुदे होना

शिव-पार्वती मंदिर के तोरणद्वार पर बहुत सुंदर पद्धति से की गयी नक्काशी

शिव-पार्वती मंदिर के परिसर में श्रीविष्णु-महालक्ष्मी मंदिर होने के प्रमाण हैं । यही इस मंदिर की विशेषता है । वर्तमान में यह दोनों मंदिर भग्नावस्था में हैं । इन मंदिरों की अलग अलग दीवारों और द्वारों पर अनेक सुंदर शिल्प खुदे हैं । इसमें प्रमुखता से वाली-सुग्रीव युद्ध, हिरण्यकश्यपू का वध करते हुए नृसिंह (छायाचित्र क्रमांक ३ देखें), अप्सरा तिलोत्तमा को प्राप्त करने के लिए एक दूसरे से युद्ध करनेवाले सुंद-उपसुंद नाम के असुर, सीता का अपहरण करते हुए रावण, कैलाश पर्वत पर बैठे भगवान शिव, कैलाश पर्वत उठाते हुए रावणासुर, खांडववन भक्षण करते हुए अग्निदेव और उसे सहायता करते हुए श्रीकृष्णार्जुन, भगवान शिव पर बाण छोड़ते हुए कामदेव और भगवान शिव ने कामदेव को तीसरे नेत्र द्वारा भस्म करने का दृश्य इत्यादि शिल्पों का समावेश है ।

३. शिव-पार्वती मंदिर के भिन्न भिन्न तोरणद्वारों पर सुंदर नक्काशी काम होना तथा शिव-पार्वती
मंदिर और विष्णु-महालक्ष्मी मंदिरों के तोरणद्वारों पर क्रमशः नंदी और गरुड के शिल्प खुदे होना

मंदिर के द्वार पर किए शिल्प में ‘नृसिंहावतार हिरण्यकश्यपू के वध’ का खुदा हुआ प्रसंग (गोलाकार में बड़ा कर दिखाया है ।)

शिव-पार्वती मंदिर की और एक विशेषता यहा है की मंदिर की अलग अलग दिशाओं में तोरणद्वार हैं और उनपर भी बहुत सुंदर नक्काशी है । (छायाचित्र क्रमांक २ देखें) उनपर खुदे शिल्प संसार में कहीं भी नहीं होंगे, इतने विशेष हैं यह । शिव-पार्वती मंदिर और विष्णु-महालक्ष्मी मंदिरों के तोरणद्वारों पर क्रमशः नंदी और गरुड के शिल्प खुदे हुए हैं ।’

– श्री. विनायक शानभाग, कंबोडिया

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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