सतना (मध्यप्रदेश) स्थित प्रसिद्ध श्री शारदा देवी शक्तिपीठ !

सतना, मध्यप्रदेश स्थित रामगिरि पर्वत पर श्री शारदा देवी का मंदिर है । श्री विष्णु ने शिव की पीठ पर विद्यमान माता सती की निष्प्राण देह के सुदर्शन चक्र से ५१ टुकडे किए । जहां जहां वे गिरे, वहां शक्तिपीठ निर्मित हुआ । यहां सती देवी का दाहिना स्तन गिरा था ।

शिवगंगा (तमिलनाडु) गांव के निकट भागंप्रियादेवी के स्थान पर प्रतीत हुए सूत्र

लगभग प्रतिदिन अनेक मंदिरों में ले जाकर महर्षि हमसे भिन्न-भिन्न धार्मिक कृत्य करने के लिए कहते हैं तथा प्रार्थनाएं भी करवाते हैं । अनिष्ट शक्तियों के निवारणार्थ किए जानेवाले कृत्य देवालय में करने से इसमें होनेवाले अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से अपनेआप ही रक्षा होने में सहायता मिलना |

नगर जनपद के श्रद्धास्थान २०० वर्ष प्राचीन ‘श्री विशाल गणपति’ !

महाराष्ट्र में स्थित ‘नगर’ शहर के ‘ग्रामदेवता’ मालीवाडा के श्री सिद्धिविनायक का मंदिर विशाल और बहुत जागृत है । यह मंदिर २०० वर्ष पुराना है । ये, भक्तों की मनोकामना पूर्ण करनेवाले देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं । यह मूर्ति साढे ग्यारह फुट ऊंची, पूर्वाभिमुखी और दाएं सूंड की है ।

रावणवध के पश्‍चात ब्रह्महत्या का लगा पाप दूर हो, इसके लिए श्रीरामजी द्वारा पूजित श्रीलंका के नगुलेश्‍वरम् मंदिर का शिवलिंग !

श्रीलंका के हिन्दू अधिकांश उत्तरी श्रीलंका में रहते हैं । इनमें से अधिकांश हिन्दू तमिल भाषी हैं । उत्तरी श्रीलंका का हिन्दू संस्कृति से संबंधित महत्त्वपूर्ण नगर है जाफना ! इस नगर से ३० कि.मी. दूरीपर कीरीमैला नामक एक छोटा गांव है । यह गाव समुद्र क तटपर बंसा है ।

दक्षिण कैलास कहा जानेवाला श्रीलंका का तिरुकोनेश्‍वरम् मंदिर

रावणासुर के संहार के पश्‍चात श्रीराम पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके विमान के पीछे एक काला बादल आ रहा है, ऐसा उनके ध्यान में आता है । तब शिवजी प्रकट होकर श्रीराम से कहते हैं, यह काला बादल आपको ब्रह्महत्या के कारण लगे पाप का प्रतीक है ।

श्रीलंका में जहां सीतामाता ने अग्निपरीक्षा दी, उस स्थान की गुरुकृपा से संपन्न अविस्मरणीय यात्रा !

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा छात्र-साधकों द्वारा की गई रामायण से संबंधित श्रीलंका की अध्ययन यात्रा ! रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा जाता है, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश ! त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया ।

सीतामाता तथा हनुमानजी के पदस्पर्श से पवित्रत तथा केवल दर्शनमात्र से भाव जागृत करनेवाली श्रीलंका की अशोक वाटिका !

रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा गया है, वह स्थान आज का श्रीलंका देश है । त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । इस स्थानपर युगों-युगों से हिन्दू संस्कृति ही थी ।

स्वयंभू गणेशमूर्ति

श्री विघ्नेश्‍वर, श्री गिरिजात्मज एवं श्री वरदविनायक की मूर्तियां स्वयंभू हैं । बनाई गईं श्री गणेशमूर्ति की तुलना में स्वयंभू गणेशमूर्ति में चैतन्य अधिक होता है । स्वयंभू गणेशमूर्ति द्वारा वातावरणशुद्धी का कार्य अनंत गुना अधिक होता है ।

अष्टविनायक

सिद्धटेक का श्री सिद्धीविनायक भीमा नदी पर बसे अष्टविनायकों का स्वयंभू स्थान है । इसका गर्भगृह की लंबाई-चौडाई काफी है । इसके साथ ही मंडप भी बडा और प्रशस्त है । पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर ने जीर्णोद्धार कर मंदिर बनाया था ।

भक्तों के मन में भाव एवं भक्ति निर्माण करनेवाले कळंब (जिला यवतमाळ) के प्रसिद्ध श्री चिंतामणी की महिमा !

यवतमाळ-नागपुर राज्य महामार्ग पर यवतमाळ से २३ कि.मी. के अंतर पर श्री क्षेत्र कळंब गांव के प्रसिद्ध श्री चिंतामणी मंदिर लाखों भाविकों के श्रद्धास्थान हैं । इस प्रसिद्ध श्री चिंतामणी मंदिर के विषय में तथा श्री चिंतामणी की आख्यायिका जान लेते हैं ।