मध्य प्रदेश के महान संत सर्वसंग परित्यागी प.पू. भुरानंदबाबा

इनमें से मध्य प्रदेश के प.पू. भुरानंदबाबा सनातन के प्रेेरणास्रोत संत भक्तराज महाराज के गुरुबंधु हैं । प.पू. भुरानंदबाबा का पारिवारिक जीवन, बचपन, गृहत्याग, गुरुभेंट, साधकों को इस संदर्भ में प्राप्त अनुभूतियां तथा उनके देहत्याग के विषय में आज उनके निर्वाणोत्सव के उपलक्ष्य में जान लेते हैं

गुजरात के संत पू. वसंतराव जोशी का परिचय एवं उनका जीवनकार्य !

पू. वसंतराव जोशी को बचपन से ही साधना में रूचि थी । वे ब्रह्मचारी थे । वे सदैव साधना के लिए घर से पहाडीपर भाग जाते थे ।

तुकाराम बीज के दिन ही देहू स्थित नांदुरकी वृक्ष क्यों हिलता है ?

आज भी तुकाराम बीज के दिन नांदुरकी वृक्ष दोपहर को ठीक १२:०२ पर संत तुकाराम ने वैकुंठगमन के समय प्रत्यक्ष हिलता है और हजारों भक्तगण इसकी अनुभूति लेते हैं ।

राष्ट्रप्रेम ही धर्मप्रेम है इस सत्य को जान चुका दुर्लभ क्रांतिकारी दामोदर हरि चापेकर !

क्रांतिकारी दामोदर हरि चापेकर द्वारा लिखे गए आत्मवृत्त का कारण यह था कि यह हत्या करने के लिए चापेकर कैसे प्रेरित हुआ, इसकी सच्चाई लिखने के लिए उन्हें कहा गया ।

स्वामी वरदानंद भारतीजी के अनमोल विचार !

धर्म होगा, तो ही राष्ट्र्र में सुख, शांति होती है । धर्म यह आचरण का विषय है । स्वास्थ्य के नियम न मानने पर शरीर में रोग निर्माण होते है । धर्म न मानने पर समाज में भ्रष्टाचार, अनैतिकता, अपराध इत्यादि रोग निर्माण होते है । 

छत्रपति शिवाजी महाराजजी की प्रेरक शक्ति : राजमाता जिजाऊ !

वर्ष १५९५ में विदर्भ के सिंदखेडराजा नामक स्थान पर जीजाबाईका जन्म हुआ । उन्हें रामायण-महाभारत और पुराण की कथाएं अत्यंत प्रिय थीं । महाराष्ट्र तथा संपूर्ण भारत में मुगल और विजापूर के सुलतान ने कोहराम मचा रखा था । तब जीजाबाई ने भवानीदेवी से प्रार्थना की राष्ट्ररक्षा के लिए सुपुत्र दीजिए ।

संत ज्ञानेश्‍वर महाराजजी द्वारा रचित ज्ञानेश्‍वरी के अनमोल ज्ञानमोती !

संत ज्ञानेश्‍वर महाराजजी द्वारा रचित ज्ञानेश्‍वरी के कुछ अनमोल ज्ञानमोती इस लेख में प्रसिद्ध कर रहे हैं !

स्वामी विवेकानंदजी का उनके गुरु के प्रति उत्कट भाव !

वर्ष १८९६ में स्वामी विवेकानंद आगनांव से (जहाज से) नॅप्लस से कोलंबो की ओर आ रहे थे । उनके सहयात्रियों में दो ईसाई धर्मगुरु थे । अकारण वे हिन्दु धर्म तथा ईसाई पंथ में होनेवाले भेद इस विषय पर चर्चा विवाद करने लगे ।

गुरु समर्थ रामदास स्वामी के प्राण बचाने के लिए बाघिन का दूध दूहकर लानेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज !

शिवाजी महाराज प्रत्येक गुरुवार समर्थ रामदासस्वामी के दर्शन कर ही भोजन करते थे । समर्थ के दर्शन में कितनी भी बाधा आए, वे दुखी नहीं होते थे । 

जगद्गुुरु संत तुकाराम महाराज का सदेह वैकुंठगमन होने के तात्कालीन संदर्भ !

जगद्गुरु श्री संत तुकाराम महाराज का सदेह वैकुंठगमन हुआ । उनको वैकुंठ ले जाने के लिए स्वयं भगवान ही वैकुंठ से पधारे और उन्होंने उनको सदेह वैकुंठ ले जाया । यह त्रिवार सत्य है; परंतु कुछ आधुनिकतावादी लोग, हिन्दू धर्म विध्वंसक संगठन ‘तुकाराम महाराज का सदेह वैकुंठगमन नहीं हुआ, अपितु उनकी हत्या की गई’, ऐसा दुष्प्रचार कर रहे हैं ।