परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके लिए गुरु, सन्त और ऋषियों के आशीर्वाद !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने इतना कार्य किया है इसका कारण है उनकी लगन, भक्ति और उन्हें प्राप्त हुए गुरु, सन्त और महर्षि के आशीर्वाद ।

१. श्री गुरुके आशीर्वाद

परम पूज्य भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीका अगस्त १९८७ में शिष्यके रूपमें स्वीकार किया । तबसे अबतक उनकी कृपादृष्टि स्थूल और सूक्ष्म रूपसे परम पूज्य डॉक्टरजीपर रही है । परम पूज्य बाबाकी कृपासे ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीको विविध प्रसंगोंमें उचित मार्गदर्शन मिला और उनकी आध्यात्मिक उन्नति हुई । इस विषयमें विस्तृत जानकारी सनातनकी ग्रन्थमाला, आदर्श शिष्य, गुरु और सन्त भक्तराज महाराजजीकी सीख में दी गई है ।

परम पूज्य भक्तराज महाराज ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके प्रेरणास्थान हैं । परम पूज्य बाबाकी संकल्पशक्ति और कृपाशीर्वादसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीका कार्य दिन-प्रति-दिन बढ रहा है । इस विषयमें शब्दोंमें कुछ कहना असम्भव है । तब भी, परम पूज्य बाबाने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीसे जो प्रेम किया, उन्हें जो आशीर्वाद दिया, वह सबको ज्ञात हो, इस उद्देश्यसे यह अध्याय संकलित किया है ।

– श्री. चेतन राजहंस, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

अ. परम पूज्य भक्तराज महाराजजीने
परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजीको अध्यात्मप्रसारके लिए दिए आशीर्वाद !

अध्यात्मप्रसारके विषयमें परम पूज्य बाबाने मुझे निम्नांकित आशीर्वाद दिए –
वर्ष १९९२ : अध्यात्मका प्रसार पूरे महाराष्ट्रमें कीजिए ।
वर्ष १९९३ : अध्यात्मका प्रसार पूरे भारतमें कीजिए ।
वर्ष १९९५ : अध्यात्मका प्रसार पूरे संसारमें कीजिए ।

९ फरवरी १९९५ को हमने परम पूज्य बाबाका अमृत महोत्सव मनाया उस समय उन्होंने मुझे आशीर्वादके रूपमें, धर्मप्रसारका संदेश देनेवाला चांदीका श्रीकृष्णार्जुन रथ दिया ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

आ. परम पूज्य भक्तराज महाराजजीने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीका कार्य स्वयं चलानेका दिया वचन !

फरवरी १९९५ में परम पूज्य बाबाका अमृत महोत्सव मनाया जा रहा था । उस समय वे एक बार झटसे उठ बैठे और विशिष्ट स्वरमें उन्होंने श्री. शरद मेहेरसे कहा, सनातन मैं चलाऊंगा !

 

२. संतोंके आशीर्वाद (वर्ष १९९६ से)

वर्ष १९९६ से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी अनेक साधु-सन्तोंसे मिलें और उनसे घनिष्ठता बढाई । इसलिए उनके भी आशीर्वाद संस्थाको निरन्तर मिलते रहे और आज भी मिल रहे हैं । वर्ष २००७ से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीका स्वास्थ्य ठीक न होनेसे वे कहीं नहीं जा पाए । तब भी, अनेक सन्त संस्थाके कार्यसे जुड रहे हैं और आशीर्वाद दे रहे हैं ।

 

३. महर्षिके आशीर्वाद (अप्रैल २०१४ से)

वर्ष २०१४ से सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका और भृगु संहिता नाडीवाचक क्रमश: पूज्य डॉ. ॐ उलगनाथन् और डॉ. विशाल शर्माजी के माध्यमसे ऋषि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीको उनके प्रत्येक कार्यके विषयमें आशीर्वादस्वरूप मार्गदर्शन कर रहे हैं ।

 

४. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके विषयमें मान्यवरोंके उद्गार

४ अ. परम पूज्य डॉ. आठवलेजीको आदि शंकराचार्य
अथवा समर्थ रामदासस्वामीजीका अवतार ही कहना पडेगा !

आज निश्‍चय कर, श्रद्धापूर्वक और ईश्‍वरीय प्रेरणा से जनजागृति करनेवाला कोई व्यक्ति है, तो वे हैं डॉ. जयंतराव आठवले ! उन्हें आदि शंकराचार्य अथवा समर्थ रामदासका अवतार ही कहना पडेगा । डॉ. आठवलेजीको आजकी भाषामें सन्त कहना अनुचित होगा । मैं तुलना नहीं करना चाहता; परन्तु जिस प्रकार साम्प्रदायिक सन्त केवल अपनी आरती करवा लेते हैं, वैसी एक चालकानुवर्ती प्रथा सनातनमें नहीं है । डॉ. आठवलेेजी निष्काम हैं !

– ज्योतिर्विद्यावाचस्पति श्री. श्री. भट, डोंबिवली, जनपद ठाणे (मासिक धनुर्धारी, जून २०११)

४ आ. प.पू. डॉ. आठवलजी परमेश्‍वरके अंशावतार हैं !

ईश्‍वरका अवतार युगमें एक बार ही होता है; किंतु अंशावतार बारबार होता है । प.पू. डॉ. आठवलेजी परमेश्‍वरके अंशावतार हैं । अंशावतारकी विवेकशक्ति उसे शान्तिसे बैठने नहीं देती । ब्राह्मतेज और क्षात्रधर्म का जो कार्य श्रीराम, श्रीकृष्ण एवं तत्पश्‍चात शंकराचार्यजी ने किया, वही कार्य प.पू. डॉ. आठवलेजी कर रहे हैं ।

– भारताचार्य प्रा. सु.ग. शेवडे, डोंबिवली, जनपद ठाणे (दैनिक सनातन प्रभात, २१.१.२००६)

४ इ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी आशाकी एक बडी किरण हैं !

 अत्यंत निस्पृहतासे, कोई भी अपेक्षा न रखते हुए लोगों और साधकों का अध्यात्मसम्बन्धी मार्गदर्शन करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी आशाकी एक बडी किरण हैं ।

– मराठी-कन्नड सन्त साहित्यके गहन अभ्यासी डॉ. वासुदेव पुरुषोत्तम गिंडे, बेळगांव, कर्नाटक. (वर्ष २०१२)

सन्दर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके सर्वांगीण कार्यका संक्षिप्त परिचय’

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