सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ‘धर्मरक्षा’ एवं ‘साधकों को तैयार करना’ इस अलौकिक कार्य की योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने की प्रशंसा !

रूढी एवं परंपरा का अंधानुकरण न करते हुए उसके वैज्ञानिक एवं सामाजिक दृष्टिकोणों पर आप जो बल देते हैं, वह अत्यंत हितकारी है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यको ईश्‍वरद्वारा प्राप्त आध्यात्मिक प्रमाणपत्र !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीकी देह, नख और केश में दैवी परिवर्तन हो रहे हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके समान ही शरीरमें दैवी परिवर्तनकी अनुभूति सनातनके कुछ सन्तों और साधकों को भी हुई है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके विषयमें महर्षिके गौरवोद्गार !

हिन्दू राष्ट्रके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी समान अवतारी कार्य करनेवाले दिव्यात्माकी आवश्यकता है ! – सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिकामें महर्षिकी वाणी

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके विषयमें जगद्गुरुपदके सन्तोंके गौरवोद्गार !

समाजमें अन्य साधु-सन्तोंद्वारा किए जा रहे कार्यकी अपेक्षा अनेक गुना महान कार्य प.पू. डॉ. आठवलेजीे कर रहे हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके कार्यके लिए गुरु, सन्त और ऋषियों के आशीर्वाद !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने इतना कार्य किया है इसका कारण है उनकी लगन, भक्ति और उन्हें प्राप्त हुए गुरु, सन्त और महर्षि के आशीर्वाद ।

योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन

२५.७.२०१० को योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन सत्कर्म सेवा सोसाइटी की ओर से परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी को सम्मानपत्र और पंद्रह सहस्र रुपए देकर योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन गुणगौरव पुरस्कार प्रदान किया गया ।

विविध संतों द्वारा किया गया परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का सम्मान !

संत ही संतों को पहचान सकते हैं और वे ही अन्य संतों के कार्य का महत्त्व समझ सकते है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आध्यात्मिक कार्य का महत्त्व ज्ञात होने से अनेक संतों ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को सम्मानित एवं पुरस्कार देकर गौरवान्वित किया ।

प.पू. दादा महाराज झुरळे

१. वात्सल्यपूर्ण वाणी से अध्यात्म सिखानेवाले प.पू. दादा महाराज झुरळे ! वर्ष १९८३ में अध्यात्म में जिज्ञासा जागृत होने के पश्चात मैं अध्यात्म समझने के लिए अनेक सन्तों के पास जाता था । उनमें से एक थे प.पू. दादा महाराज झुरळे । उन्हें मैं दादा कहता था । मैं दादा के पास अध्यात्म सीखने के … Read more

गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी की सनातन पर कृपादृष्टि !

सनातन को अनिष्ट शक्तियों से होनेवाले कष्ट और हिन्दू धर्म के प्रचार में उनके द्वारा उत्पन्न की जानेवाली बाधाएं दूर होने के लिए गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी ने वर्ष २००४ से उनके देहत्याग तक जप, हवन, सप्तशतिपाठ आदि कर्म किए ।

विविध संतों द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का किया गया सम्मान !

संतों का कार्य आध्यात्मिक (पारलौकिक) स्तर का होने से लौकिक सम्मान एवं पुरस्कारों के प्रति उनमें कोई आसक्ति नहीं होती । अपितु मनोलय एवं अहं का लय होने से वे सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राप्त करनेवाले सम्मान एवं पुरस्कार के परे जा चुके होते हैं । ऐसा होनेपर भी केवल संत ही संत की पहचान कर सकते हैं और उनको ही अन्य संतों के कार्य का महत्त्व समझ में आता है ।