हनुमानजीके संदर्भमें मूर्तिविज्ञान एवं पूजाविधी

अधिकांशत: हनुमानजीका वर्ण लाल एवं कभी-कभी काला भी होता है । मारुतिके विविध रूप हैं । जैसे दासमारुति, वीरमारुति, पंचमुखी मारुति पंचमुखी मारुतिकी मूर्ति बडे आकारकी होती है ।

हनुमानजीकी उपासना एवं उसका शास्त्राधार

हनुमानजीकी उपासना करनेसे शनिकी पीडाका निवारण होता है । हनुमानजीका नामजप करनेसे अनिष्ट शक्तिसे पीडित किसी व्यक्तिको विविध शारीरिक तथा मानसिक कष्ट होते हों, तो उनका निवारण होता है ।

हनुमानजीको तेल, सिंदूर, मदारके फूल एवं पत्ते इत्यादि अर्पण करनेका महत्त्व

देवताको विशिष्ट वस्तु अर्पित की जाती है, जैसे हनुमानजीको तेल, सिंदूर एवं मदारके फूल तथा पत्ते । इन वस्तुओंमें हनुमानजीके महालोकतकके देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण, जिन्हें पवित्रक कहते हैं, उन्हें आकृष्ट करनेकी क्षमता होती है ।

श्रीरामजीके कुछ नामोंका अर्थ तथा विशेषताएं एवं तदनुसार उनका कार्य

श्री अर्थात शक्ति, सौंदर्य, सद्गुण इत्यादि, लंका विजयके पश्चात्, राम जब सीतासहित अयोध्यानगरी लौटे, तब सर्व अयोध्यावासी उन्हें ‘श्रीराम’ के नामसे संबोधित करने लगे । श्रीरामजी राजधर्मका पालन करनेमें तत्पर थे ।

वर्षारंभदिन एवं उसे मनानेका शास्त्र

चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन तेजतत्त्व एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रामें कार्यरत रहती हैं । अत: सूर्योदयके उपरांत ५ से १० मिनटमेंही ब्रह्म ध्वजको खडाकर उसका पूजन करनेसे जीवोंको ईश्वरीय तरंगोका अत्याधिक लाभ मिलता है ।

हिंदु संस्कृति के अनुसार नववर्ष कब मनाए ?

सर्व ऋतुओंमें बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु । इस काल में उत्साहवर्द्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है । इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजी की विभूतिस्वरूप वसंतऋतु के आरंभ का दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है ।

धूलिवंदन का महत्त्व

होली ब्रह्मांडका एक तेजोत्सव है । होलीके दिन ब्रह्मांडमें विविध तेजोमय तरंगोंका भ्रमण बढता है । इसके कारण अनेक रंग आवश्यकताके अनुसार साकार होते हैं । रंगोंका स्वागत हेतु होलीके दूसरे दिन ‘धूलिवंदन’ का उत्सव मनाया जाता है ।

रंगपंचमी मनाने का उद्देश्य

रंगपंचमीके दिन एक-दूसरेके शरीरको स्पर्श कर रंग लगानेसे नहीं; अपितु केवल वायुमंडलमें रंगोंको सहर्ष उडाकर उसे मनाना चाहिए । वातावरणमें होनेवाली प्रक्रिया रंगपंचमीके दिन तेजतत्त्वामक शक्तिके कण ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह एवं आनंद का प्रवाह पृथ्वीकी ओर आकृष्ट होता है ।

शिव-शिमगा कैसे मनाएं ?

धूलिवंदन के दिन अपने घरमें जन्मे नए शिशु की रक्षा हेतु उसके पहले होली पर विशेष विधि किया जाता है । इसे ‘शिव-शिमगा’ कहते हैं ।