‘विवाहसंस्कार’से संबंधित आलोचना अथवा अनुचित विचार एवं उनका खंडन

धर्मकी हानिको रोककर हिंदुओंको बौद्धिक सामर्थ्य प्राप्त हो इस हेतु ‘विवाहसंस्कार’से संबंधित अनुचित विचार एवं उनका खंडन कर रहे हैं ।

केलेके पत्तेपर भोजन परोसनेकी पद्धति

रंगोलीके माध्यमसे भूमितरंगों एवं शक्तितरंगोंका भोजनकी थालीके नीचे आच्छादन बन जानेसे भोजनके घटक पदार्थ भी इन तरंगोंसे पूरित हो जाते हैं । भोजनके माध्यमसे देहमें इन तरंगोंका संचार होकर पाचनप्रक्रियाको गति प्राप्त होकर देहमें इन तरंगोंका घनीकरण होता है ।

भोजन करनेका स्थान एवं बैठनेकी दिशा

अन्न-सेवन एक यज्ञकर्म ही है । यह यज्ञकर्म, पूर्व दिशामें तेजकी शक्तिरूपी धारणाद्वारा पिंडमें संचारित करनेसे उसका कृत्यको गति प्रदान करनेमें उचित पद्धतिसे विनियोग हो सकता है ।

भोजनपूर्व आचार एवं कुछ सूत्र

‘कर्ता-करावनहार ईश्वर ही हैं । उनके बिना मैं कुछ नहीं कर सकता । उनकी कृपासे ही यह अन्न मिला है। अतः जो भी मिला है, उसे सर्वप्रथम ईश्वरको प्रथम अर्पित करूंगा’, इस कृतज्ञ भावसे देवताको भोजनपूर्व नैवेद्य चढाया जाता है ।

भोजनका समय एवं उनका महत्त्व

उचित समयपर भोजन न करनेसे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य असंतुलित हो सकता है । परिणामस्वरूप आध्यात्मिक स्वास्थ्यपर भी इसका दुष्परिणाम होता है ।

भोजनका महत्त्व एवं भोजनसंबंधी कुछ नियम

‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।’ अर्थात साधनाके लिए शरीर आवश्यक है । शरीर हेतु अन्न आवश्यक है । अन्नसे प्राप्त शक्तिका उपयोग केवल आत्मोन्नतिके लिए नहीं, अपितु समाजकी उन्नतिके लिए भी किया जा सकता है ।

अक्षय्य तृतीया के दिन तिलतर्पण का महत्त्व क्या है ?

अक्षय्य तृतीयाके दिन ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु इन दो देवताओंका सम्मिलित तत्त्व पृथ्वीपर आता है । ऐसे पवित्र दिनपर किए गए पूजा-पाठ, होम-हवन, नामजप, दान, पितृतर्पण इत्यादिका लाभ भी अत्यधिक मिलता है ।

हनुमानजीके संदर्भमें मूर्तिविज्ञान एवं पूजाविधी

अधिकांशत: हनुमानजीका वर्ण लाल एवं कभी-कभी काला भी होता है । मारुतिके विविध रूप हैं । जैसे दासमारुति, वीरमारुति, पंचमुखी मारुति पंचमुखी मारुतिकी मूर्ति बडे आकारकी होती है ।