आगामी आपातकाल की संजीवनी : सनातन की ग्रंथमाला !

आगामी महायुद्धकाल में चिकित्सा-सुविधाएं दुर्लभ होंगी,
तब इस ग्रंथमाला का महत्त्व समझ में आएगा !

अग्निशमन

यद्यपि आग दैनिक जीवन-व्यापार का अत्यावश्यक घटक है । मनुष्य द्वारा सामान्यत: प्रयुक्त आग के सर्व प्रकार नियंत्रित होते हैं; किंतु किसी विशेष प्रसंग में आग नियंत्रण की लक्ष्मणरेखा लांघ सकती है । ऐसी स्थिति में उस पर कौन-से उपाय आवश्यक हैं, आग के संपर्क में अधिक रहनेवालों को इसका ज्ञान होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।

अग्निशमन के संदर्भ में बडे-बडे कारखानों, यात्री नौकाओं, विमान आदि में प्रशिक्षण दिया जाता है; परंतु खेद है कि सामान्य मनुष्य, तथा दिन के ५-६ घंटे भोजन बनानेवाली गृहिणी आग का शास्त्र तथा अग्निशमन के उपायों के संदर्भमें पूर्णत: अनभिज्ञ होती है । इस अज्ञान से कई दुर्घटनाएं होती हैं ।

हिन्दू धर्म में देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण एवं समाजऋण, इन चार ऋणों को चुकाना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य माना गया है । अग्निशमन प्रशिक्षण का ज्ञान आत्मसात करना एवं समय आने पर समाज के लिए उसका उपयोग करना, समाजऋण चुकाने का एक अंग है । अग्निप्रलय की आपदा से बडी मात्रा में राष्ट्र की जैवीय तथा वित्तीय हानि होती है । इसे रोकने की दृष्टि से प्रयत्नरत होने का अर्थ है राष्ट्रहित एवं राष्ट्ररक्षा के कार्य में सहयोगी होना । राष्ट्र के जीवन में ही समष्टि का जीवन अंतर्भूत होता है; क्योंकि राष्ट्र जीवित रहेगा, तो ही समाज जीवित रहेगा एवं समाज जीवित रहेगा, तो ही व्यक्ति जीवित रहेगा । व्यक्ति जीवित रहेगा, तो ही साधना कर पाएगा । अतः स्वहित व राष्ट्ररक्षा हेतु अग्निशमन प्रशिक्षण के विषय का महत्त्व समझना सबके लिए आवश्यक है ।

 

सूचीदाब (एक्यूप्रेशर)
शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टों पर उपाय

जो पुराना है, वह सोना है इस कहावत के अनुसार प्रज्ञावान ऋषि-मुनियों द्वारा आविष्कृत सूचीदाब उपचारपद्धति अति प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि इसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार है । शरीर में चेतनाशक्ति के प्रवाह को नियन्त्रित करनेवाले शरीर पर स्थित विशिष्ट बिन्दु को दबाने से चेतनाशक्ति के प्रवाह की रुकावटें दूर कर, विकार नष्ट करना, सूचीदाब उपचारपद्धति का सूत्र है । इस पद्धति से, संबंधित अवयव में चेतना का संचार कराकर उसकी कार्यक्षमता बढाई जाती है । इसलिए, यह पद्धति रोगों को दूर करने में अधिक प्रभावी सिद्ध हुई है । बिना पैसे की तथा अपना उपचार स्वयं करने की सुविधायुक्त इस उपचारपद्धति को अपनाने से दैनिक जीवन के अनेक रोगों को अपने से दूर रखना सरल हो जाता है । उसी प्रकार, जब कभी जीवन में आनेवाले कुछ प्रसंगों में वैद्योपचार की तुरंत आवश्यकता प्रतीत होती है अथवा चिकित्सक एवं औषधियां उपलब्ध नहीं मिलतीं, उस समय यह उपचारपद्धति सभी के लिए संजीवनी की भांति लाभ पहुंचाती है ।

 

अग्निहोत्र

त्रिकालज्ञानी संतों ने कहा है कि भीषण आपातकाल आनेवाला है तथा उसमें विश्वा के अधिकतर लोग मृत्यु को प्राप्त होंगे । वास्तव में अब आपातकाल आरंभ हो चुका है और उसमें तीसरा महायुद्ध भडक उठेगा । द्वितीय महायुद्ध की अपेक्षा वर्तमान में विश्वर के लगभग सभी राष्ट्रों के पास महासंहारक आण्विक अस्त्र हैं । ऐसे में वे एक-दूसरे के विरुद्ध प्रयुक्त किए जाएंगे । इस युद्ध में सुरक्षित रहना हो, तो उसके लिए आण्विक अस्त्रों को निष्क्रिय करने के प्रभावी उपाय करने चाहिए । इन आण्विक अस्त्रों से निर्गमित किरणों को नष्ट करने के लिए भी उपाय चाहिए । इसमें स्थूल उपाय उपयोगी सिद्ध नहीं होंगे; क्योंकि बम की तुलना में अणुबम सूक्ष्म होते है । स्थूल (उदा. बाण मारकर शत्रु का नाश करना), स्थूल और सूक्ष्म (उदा. मंत्र का उच्चारण कर बाण मारना), सूक्ष्मतर (उदा. केवल मंत्र बोलना) एवं सूक्ष्मतम (उदा. संतोंका संकल्प), इस प्रकार के उत्तरोत्तर प्रभावी चरण होते हैं । स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म अनेक गुना अधिक प्रभावशाली है । इस कारण, अणुबम जैसे प्रभावी संंहारक के विकिरण को रोकने के लिए सूक्ष्म दृष्टि से कुछ करना आवश्यक है । इसलिए ऋषि-मुनियों ने यज्ञ के प्रथमावताररूपी अग्निहोत्र का उपाय बताया है । यह करने में अति सरल तथा अत्यल्प समय में संपन्न होनेवाला; किंतु प्रभावी रूप से सूक्ष्म परिणाम साधने में सहायक उपाय है । इससे वातावरण चैतन्यमय बनता है तथा सुरक्षा-कवच भी निर्मित होता है । सामान्यजन इतना भी करें तो पर्याप्त है । इससे भी अधिक प्रभावी अर्थात सूक्ष्म उपाय है साधना करना । साधना से आत्मबल प्राप्त होता है एवं अपने कार्य को बल मिलता है । सामान्य व्यक्ति को अग्निहोत्र करने से जो लाभ होगा, वही लाभ साधना करनेवाले तथा ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के साधक को प्रार्थना मात्र से साध्य होता है ।

समाज की सहायता हेतु आगामी आपातकाल की संजीवनी का प्रचार अत्यावश्यक !

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