पूजाविधि के संदर्भ में शंकानिरसन – भाग २

कर्पूर जलाने से उत्पन्न सूक्ष्म-वायु की उग्र गंध में शिवगणों को आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है । वास्तु में कनिष्ठ अनिष्ट शक्तियों को नियंत्रित रखने का कार्य शिवगण करते हैं । वास्तु में विद्यमान शिवगणों के अस्तित्व से स्थानदेवता एवं वास्तुदेवता के आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता मिलती है ।

पूजाविधि के संदर्भ में शंकानिरसन – भाग १

मोगरा (बेला), जाही (एक प्रकारकी चमेली), रजनीगंधा इत्यादि पुष्पों में ऐसी लगन होती है कि देवताओं के पवित्रक अधिकाधिक उनकी ओर आकृष्ट हों । उन पुष्पों की कलियां सूर्यास्त से खिलना आरंभ होकर ब्राह्ममुहूर्त की आतुरता से प्रतीक्षा करती हैं । उनकी लगन के कारण देवताओं के पवित्रक उनकी ओर अधिक मात्रा में आकृष्ट होते हैं ।

पूजा की थाली में विभिन्न घटकों की रचना किस प्रकार करें ?

प्रत्यक्ष में देवतापूजन आरंभ करने से पूर्व, पूजनसामग्री एवं अन्य घटकों की संरचना उचित ढंग से करनी आवश्यक है । उक्त संरचना यदि पंचतत्त्वों के स्तरपर आधारित होगी, तो वह अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण से उचित होगी ।

सूचीदाब (Acupressure)

वर्तमान कलियुगके रज-तमात्मक वातावरणमें जन्म लेनेवाले प्रत्येक जीवमें कोई-न-कोई विकार होता ही है । किसीके भी मनमें यह प्रश्‍न उठ सकता है कि ‘विकार दूर करनेके ‘एलोपैथी’, ‘होमियोपैथी’ समान आधुनिक तथा प्राचीन आयुर्वेद उपचारपद्धति उपलब्ध होनेपर भी, ‘सूचीदाब (एक्यूप्रेशर)’ उपचारपद्धति क्यों आवश्यक है ।’

गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले साधकों की मृत्यु के समय एवं मृत्यु के पश्चात प्रगति

गुरुकृपायोग के अनुसार ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर से अधिक उन्नत जीवों का पुनर्जन्म नहीं होता; क्योंकि वह सभी दृष्टि से शिक्षित होता है । व्यष्टियोग में ७० प्रतिशत से आगे पुनर्जन्म नहीं होता, परंतु समष्टियोग में (गुरुकृपायोग में) ईश्वर से अपनेआप अधिक सहायता मिलने के कारण ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर ही शिक्षित अवस्था प्राप्त हो जाती है । इसलिए ऐसा शिक्षित जीव पुनः भूतल पर जन्म नहीं लेता ।

गुरुकृपायोग एवं अन्य साधनामार्गों के बारे में कुछ प्रश्न

किसी भी योग से साधना करने पर स्थूल एवं प्राणदेह की अधिकतम शुद्धि २० से ३० प्रतिशत हो सकती है । अत: इन देहों का त्याग किए बिना स्वर्गलोक अथवा अगले लोकों में प्रवेश नहीं किया जा सकता । गुरुद्वारा बताई गई साधना करने से साधना में बाधाएं अल्प आती हैं । इससे साधना में शीघ्र उन्नति होती है ।

गुरुकृपायोग से शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने के कारण

गुरुकृपायोग के मूल्य जीव को सेवाभाव से अहं अल्प करने के लिए विशिष्ट स्तर पर चैतन्य प्रदान कर ‘समष्टि साधना से व्यष्टि साधना की अपेक्षा अहं न्यून होने में शीघ्र सहायता मिलती है’, इसकी शिक्षा देते हैं ।’ अहं नष्ट करने के लिए गुरुकृपा की आवश्यकता होती है आैर इसलिए ‘गुरुकृपायोग’ सर्व योगों में श्रेष्ठ योग है ।

मृत्युपरांत के शास्त्रोक्त क्रियाकर्म करना महत्वपूर्ण क्यों हैं ?

मृत्युपरांत के क्रियाकर्म को श्रद्धापूर्वक एवं विधिवत् करने पर मृत व्यक्ति की लिंगदेह भूलोक अथवा मृत्युलोकमें नहीं अटकती, वह सद्गति प्राप्त कर आगे के लोकों में बढ सकती है ।