गुरुकृपायोग से शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने के कारण

 

गुरुकृपायोग से अहं शीघ्र घटता है और संतपद की प्राप्ति होती है ! कैसे ?

‘गुरुकृपायोग के मूल्य जीव को सेवाभाव से अहं अल्प करने के लिए विशिष्ट स्तर पर चैतन्य प्रदान कर ‘समष्टि साधना से व्यष्टि साधना की अपेक्षा अहं न्यून होने में शीघ्र सहायता मिलती है’, इसकी शिक्षा देते हैं ।’ अहं नष्ट करने के लिए गुरुकृपा की आवश्यकता होती है और इसलिए ‘गुरुकृपायोग’ सर्व योगों में श्रेष्ठ योग है ।’

गुरुकृपायोग में, ‘नामजपसहित कर्म करते समय कर्म के पूर्व प्रार्थना एवं पश्चात कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । इससे नामजप का रूपांतर गुणात्मक नामजप में होता है । इसका कारण यह है कि जीव के नामजप से उसकी ओर ब्रह्मांड की सूक्ष्मतरंगें, प्रार्थना से भाववृद्धि होने के कारण सूक्ष्मतर तरंगें तथा कृतज्ञता से अहं घटने के कारण सूक्ष्मतम तरंगें सक्रिय होकर आकृष्ट होती हैं । इस प्रकार, कर्म करते समय जीव को एक साथ उपर्युक्त तीनों प्रकार की तरंगों का लाभ प्राप्त होता है । इससे गुरुकृपायोगकी सीखका महत्त्व स्पष्ट होता है । अन्य संप्रदाय केवल ‘नामजप करो’ इतना ही कहते हैं । अत:, गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले जीव, किसी संप्रदायानुसार केवल जप करनेवाले जीवों की तुलना में शीघ्र उच्च स्तरका नामजप करने लगते हैं । स्वाभाविक ही अन्यों की तुलना में उनकी उन्नति शीघ्र होती और ऐसे जीव अल्पकाल में संतपद तक पहुंच जाते हैं ।’

 

गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवालों की उन्नति ध्यानमें न आनेका क्या कारण है ?

कलियुग में शीघ्रता से आध्यात्मिक उन्नति कर पुनर्जन्म के चक्र को लांघनेवाले एवं अपने चैतन्य के बलपर आगे बढनेवाले जीव ३० प्रतिशत तक हैं । परंतु स्थूल अथवा सूक्ष्म रूपमें वह क्यों नहीं ज्ञात होती है । इसका कारण है आजकल के रज-तमात्मक वातावरण में अनिष्ट शक्तियों का अत्यधिक प्रभाव ! इसलिए कि इस अवस्था में अपने अंतर्बाह्य मन की एकाग्रता चैतन्य के स्रोत पर नहीं; अपितु अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का प्रतिकार करने पर रहती है । इससे आध्यात्मिक स्तर में उतार-चढाव होता रहता है और अनिष्ट शक्तियों के अत्यधिक प्रभाव के कारण अभी साधकों की विशेषताएं स्पष्ट नहीं होतीं ।

 

सनातन संस्था में गुरुमंत्र होता है अथवा दीक्षा होती है ?

सनातन संस्था योगमार्ग के सभी साधकों को जलद आध्यात्मिक उन्नति हेतु मार्गदर्शन करती है । साथ ही जिज्ञासुओं को शीघ्र ईश्‍वरप्राप्ति हो, इस हेतु गुरुकृपायोगानुसार साधना के संदर्भ में मार्गदर्शन करती है । इसलिए सनातन संस्था में कोई गुरुमंत्र अथवा दीक्षा की परंपरा नहीं है । किंतु गुरुप्राप्ति के लिए आवश्यक साधना बताकरे साधकों से उसे करवाती है ।

गुरु के विषय में हमें यह समझना चाहिए कि गुरु मात्र देहधारी व्यक्तित्व नहीं; अपितु पृथ्वी पर ईश्‍वर के अवतरित तत्त्व हैं ।

माता-पिता का अपनी संतानके प्रति प्रेम होता है । माता-पिता एवं बेटे को यह बात एक-दूसरे से कहनी नहीं पडती । उसी प्रकार खरे गुरु-शिष्य के संबंध में शिष्य को ज्ञात होता है कि उस पर गुरु की कृपा है । गुरु को यह बात कहनी नहीं पडती । तो भी आरंभ में अधिकांश शिष्यों को यह ज्ञात नहीं होता कि उन पर गुरु की कृपा है । उन्हें इस बात का बोध हो, इसलिए गुरु उन्हें गुरुमंत्र देते हैं । इससे शिष्य को प्रतीत होने लगता है कि मेरे गुरु हैं, उनका मुझ पर ध्यान है एवं उनकी मुझ पर कृपा है । सनातन संस्था से जुडे अनेक साधकों को इसकी अनुभूति होने के कारण उन्हे गुरुमंत्र की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती ।

 

अन्य धर्मों के लोग अपनी परंपरा के अनुसार
आचरण करते हैं, तो क्या आध्यात्मिक उन्नति होती है ?

आध्यात्मिक उन्नति का संबंध देवता तथा गुरु की कृपा से होता है । पंथ तो पिछले कुछ सहस्र वर्षों के इतिहास में किसी मनुष्य द्वारा निर्मित है, उससे पहले कोई पंथीय विचारधारा नहीं थी । किसी भी पंथ में आज कुछ भी कहा गया हो, अध्यात्मशास्त्र के अनुसार किसी भी पंथ में जन्मे मनुष्य की जीवात्मा एक समान ही होती है । इस कारण सभी के मुक्ति मार्ग भी अध्यात्मशास्त्र के अनुसार समान ही हैं । साधना के प्राथमिक स्तर पर तन-मन-धन का त्याग करना आवश्यक होता है, जिससे जीव सांसारिक मोह-माया से अलिप्त हो सके । उसके आगे के स्तर पर मनोलय, तथा बुद्धिलय और अंतिम चरण में स्वयं के अस्तित्व का भान अर्थात अहंकार त्यागना पडता है, तब निश्‍चित ही आध्यात्मिक उन्नति हो सकती है । हिन्दू धर्म का सिद्धान्त है, ‘जितने व्यक्ति, उतनी प्रकृति और उतने साधनामार्ग’ ! अपना सनातन हिन्दू धर्म कोई पंथ नहीं है कि केवल इसी मार्ग से जाने से सभी की आध्यात्मिक उन्नति होगी । इस कारण हिन्दू धर्म का प्रचार करनेवाली अनेक संस्थाओं में आज अन्य पंथ के लोग सहभागी होते हैं, साधना सीखते हैं, धर्म का आचरण करते हैं तथा आध्यात्मिक उन्नति भी करते हैं । महर्षि अरविंद तथा स्वामी विवेकानंदजी के अनेक विदेशी शिष्य अन्य पंथी थे ।

संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ ‘गुरुकृपायोगकी महिमा’

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