सूतक का पालन किसके लिए करें ?
कई बार मृत्योपरांत के क्रियाकर्म केवल धर्मशास्त्र में बताई गई विधि अथवा परिजनों के प्रति कर्तव्य-पूर्ति के एक भाग के रूप में किया जाता है ।
कई बार मृत्योपरांत के क्रियाकर्म केवल धर्मशास्त्र में बताई गई विधि अथवा परिजनों के प्रति कर्तव्य-पूर्ति के एक भाग के रूप में किया जाता है ।
आध्यात्मिक शोधकार्य से यह देखा गया है कि जब हम अवयव दान करते हैं, तब हम लेन-देन निर्माण करते हैं और अवयव (अंग) प्राप्त होनेवाले व्यक्ति के कर्मों द्वारा संचित पाप तथा पुण्य में सहभागी होते हैं ।
मृत व्यक्ति के साथ घर के लोगों का लगाव अथवा प्रेम होता है । उन्हें लगता है कि उनके कारण वे अच्छी स्थिति में हैं ।
कोरोना विषाणु संक्रमण के कारण मृतक व्यक्ति का शरीर अथवा उसकी अस्थियां उसके परिवारजनों को नहीं सौंपी जातीं । ऐसी स्थिति में भी धर्मशास्त्र के अनुसार ‘पलाशविधि’ करना उचित होगा ।
मृत्युपरांत के क्रियाकर्म को श्रद्धापूर्वक एवं विधिवत् करने पर मृत व्यक्ति की लिंगदेह भूलोक अथवा मृत्युलोकमें नहीं अटकती, वह सद्गति प्राप्त कर आगे के लोकों में बढ सकती है ।
मृतकका सिर दक्षिणमें तथा पैर उत्तर दिशामें हों, इस प्रकार लिटाएं । उसके मुखमें गंगाजल / विभूति-जल डालें और तुलसीदल रखें ।
मृतदेहके चारों ओर बक्से (गत्ते) लगाना, प्रत्येक आधे घंटेके उपरांत उनके देहपर तीर्थ छिडकना, चमेलीकी उदबत्ती लगाना, श्री गुरुदेव दत्तका नामजप लगाना, मृतदेहके चारों ओर दत्तात्रेय देवताकी नामजप-पट्टियोंका मंडल बनाना इत्यादिसे मृतदेहपर होनेवाले अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमण घट जाते हैं ।