वास्तु शुद्धि की पद्धतियां
वास्तु (घर) के अनुचित और कष्टदायक स्पंदन (वाइब्रेशन्स) दूर कर, उसमें अच्छे स्पंदन उत्पन्न करने की क्रिया को शुद्धि करना कहते हैं ।
वास्तु (घर) के अनुचित और कष्टदायक स्पंदन (वाइब्रेशन्स) दूर कर, उसमें अच्छे स्पंदन उत्पन्न करने की क्रिया को शुद्धि करना कहते हैं ।
२७ मई से ८ जून २०१९ की अवधि में विद्याधिराज सभागार, रामनाथी, गोवा में अष्टम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का आयोजन किया गया है ।
श्रीरामचंद्र कृपाल भजु मन हरण भव भय दारुणम् ।
नवकंजलोचन,कंजमुख,कर-कंज,पद-कंजारुणम्।।१।। श्रीराम-श्रीराम….
अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में संतपद प्राप्त करनेवाले पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी प्रथम हिन्दुत्वनिष्ठ है ! साथ हि उनके सुपुत्र अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन (३३ वर्ष) एवं उनके पोते का भी ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित किया गया ।
हिन्दू आहार, वेशभूषा, धार्मिक कृत्य, जप, मुद्रा व न्यास इ. के व्यक्ति व वातावरण पर हाेनेवाले अच्छे प्रभावों संबंधी १,००० से अधिक विषयों पर यूनिवर्सल थर्मो स्कैनिंग , पॉलीकाॅण्ट्रास्ट इटंरफेरन्स फोटोग्राफी इ. द्वारा वैज्ञानिक पद्धति से शाेध किया है ।
केवल हिन्दुआेंको एकजुट करनेवाली विचारधारा ही दशे – धर्म की रक्षा तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कर सकती है, यह ध्यान में रख विविध हिन्दू संगठन, संप्रदाय, अधिवक्ता (वकील), विचारक आदि का दिशादशर्न करने हेतु आश्रम में कार्यशाला, अधिवेशन आदि का आयोजन किया जाता है ।
सनातन आश्रम की सात्त्विकता की प्रतीति देनेवाले दैवी परिवर्तनों के आगे दिए कुछ उदाहरण देखें, तो यही अनुभव होता है कि ईश्वर सनातन पर कितनी कृपा बरसा रहे हैं ।
साधकों को पूरा समय साधना के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध हो, इसके लिए परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने रामनाथी, गोवा में सनातन आश्रम की निर्मिति की है । यहां लगभग ६०० साधक आनंदमय आश्रमजीवन का लाभ ले रहे हैं ।
उत्तरोत्तर आध्यात्मिक प्रगति हेतु साधना को जीवन में उतारना आवश्यक होता है । आश्रम में होनेवाले स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन सत्संग, भाववृद्धि सत्संग, व्यष्टि साधना का ब्यौरा आदि द्वारा साधकों को साधना के विषय में क्रियात्मक स्तर का मार्गदर्शन मिलने से उनकी साधना में उत्तरोत्तर प्रगति होती है ।
ईश्वरप्राप्ति का सर्वोच्च ध्येय पाने के लिए अहं मिटाने हेतु प्रत्येक साधक प्रयत्नरत रहता है । किसी के मन में जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि का विचार भी नहीं आता ।