नामजप न करते हुए और नामजप के साथ प्राणायाम

२१ जून विश्वभर में आंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है । योग इस शब्द का उगम ‘युज’ धातु से हुआ है । युग का अर्थ है संयोग होना । योग इस शब्द का मूल अर्थ जीवात्मा का परमात्मा से मिलन होना है । योगशास्त्र का उगम लगभग ५००० वर्षाें पूर्व भारत में हुआ है ।

भक्ति के सुंदर उदाहरण वाला जनाबाई के जीवन का प्रसंग

जनाबाई जैसे भक्त बनने के लिए उनकी ही तरह हर काम में, हर प्रसंग में ईश्‍वर को अपने साथ अनुभव करना, उनसे हर प्रसंग का आत्मनिवेदन करते रहना, उनको ही अपना सब मानकर अपनी सब बातें बताना आवश्यक है ।

कलियुग के लिए नामजप सर्वोत्तम साधना क्यों है ?

कलियुग में साधारण व्यक्ति की सात्त्विकता निम्न स्तर पर आ गई है । ऐसे में वेद एवं उपनिषद के गूढ भावार्थ को समझना क्लिष्ट हो गया है ।

अध्यात्म और विज्ञान में समानता कैसे रखें ?

‘विज्ञान केवल स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों के संदर्भ में ही संशोधन करता है, किंतु अध्यात्म सूक्ष्मतर एवं सूक्ष्मतम का भी विचार करता है !’ विज्ञान तंत्रज्ञान के संदर्भ में जानकारी देता है एवं अध्यात्म आत्मज्ञान के संदर्भ में !

नामस्मरण है श्रेष्ठ स्मरण भक्ति !

अर्थात भगवान का स्मरण करते जाएं । उनके नाम का अखंड जप करें । नामस्मरण कर संतुष्ट हों । सुख हो अथवा दु:ख मन उद्विग्न हो अथवा चिंता में, सर्वकाल और सभी प्रसंगों में नामस्मरण करते जाएं ।

मन को अंर्तमुख कैसे करें?

एकाग्र मन से नामजप करने पर हमें अधिक आनंद होता है । एकाग्रता से नामजप करने से अंतर्मन पर नामजप का संस्कार दृढ होता है और ईश्‍वर से अधिक सुरक्षा प्राप्त होती है ।

क्या पितरों के छायाचित्र घर में लगाना चाहिए ?

मृत व्यक्ति के साथ घर के लोगों का लगाव अथवा प्रेम होता है । उन्हें लगता है कि उनके कारण वे अच्छी स्थिति में हैं ।

दूसरों के गुण कैसे सीखें ?

इसलिए यदि हम अपने आसपास सभी में गुण देखने की वृत्ति बढा लें, तो हमें ध्यान में आएगा कि भगवान में अनंत गुण हैं और उन्होंने अपने सभी गुण हमारे आसपास की ही सृष्टि में बिखेर दिए हैं ।

भावस्थिति अनुभव करने में मुख्य रुकावटें कौन-सी हैं ?

भाव जागृति में कर्तापन को त्याग कर, सब ईश्वर की इच्छा से ही हो रहा है, एसा भाव रखना चाहिए । जैसे मैंने कुछ अच्छा किया, तो यह बुद्धि तो ईश्वर ने ही दी है ।

दिनभर की विभिन्न कृतियों में भी हम कैसे भाव रख सकते हैं ?

आज से हम जो भी कृति करेंगे वह ईश्वर का स्मरण करते हुए और जैसी ईश्वर को अच्छी लगेगी, वैसी करेंगे । फिर हम उसे ईश्वर को समर्पित करेंगे ।