मन को अंर्तमुख कैसे करें?

मन की चंचलता के विषय में तो भगवद्गीता में भी चर्चा है । अर्जुन के मन में भी यही समस्या है, अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं – हे केशव, इस मन को कैसे वश में करें ? क्योंकि ये मन बहुत चंचल है, इसलिए किसी एक वस्तु इस स्थान पर इसका बहुत देर तक रुकना असंभव है । इसे वश में करना तो वायु को वश में करने के समान है । इसलिए हे कृष्ण, कृपा करके मेरा मार्गदर्शन कीजिए ।

इस प्रश्‍न पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि – हे अर्जुन, तुमने सत्य कहा कि यह मन बहुत चंचल है, इसलिए इसको वश में करना कठिन है । परंतु हे पार्थ, इस मन को वश में करने का यदि नित्य अभ्यास करें, तो यह वश में आ जाएगा । तू इस मन को समस्त इन्द्रिगोचर विषयों से हटाकर केवल मेरी शरण में लगा दे ।

वैसे मन की चंचलता के विषय में यह प्रश्‍न अर्जुन पूछता है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह एकाग्र नहीं हो पाता है । उदाहरणस्वरूप हम देख सकते हैं कि अर्जुन को गुरुकुल में पक्षी की केवल आंख दिखाई देना, द्रौपदी स्वयंवर में अर्जुन ने घूमती हुई मछली की आंख पर निशाना लगाकर उसे वेधना, यह सब एकाग्रता के उदाहरण हैं । परंतु यह बाह्यमन से साध्य की गई एकाग्रता है, अर्जुन तो भगवान से अंतर्मन की एकाग्रता के संदर्भ में पूछ रहा है । इससे हम समझ सकते हैं कि बाह्यमन की एकाग्रता के उपरांत अंतर्मन की एकाग्रता को भी साध्य करना हमारा ध्येय होना चाहिए । भगवान श्रीकृष्ण भी अर्जुन को नित्य अभ्यास करने का उपाय बताते हैं । अर्थात जब-जब मन विषयों में भटके, तब-तब उसे वहां से हटाकर ध्यानबिंदु पर लाने का प्रयास करते रहना चाहिए । इसके लिए अविरत परिश्रम की आवश्यकता होती है । इससे कामनाएं कम होंगी और आनंद की ओर आकर्षण बढेगा । इसे करने के लिए भक्तियोग की सहायता होती है । भगवान के नाम का श्रवण, चिंतन, मनन, सत्संग और श्‍वास के साथ जप इससे यह सुलभसाध्य होता है ।

 

मन का कार्य

मन पर नियंत्रण करने से पहले उसे समझना चाहिए । मन के विषय में शास्त्र क्या बताता है, इस विषय में पढें ।

१. मन चंचल होता है । अर्थात एक क्षण में मन हजारों मील की दूरी पर जाकर आ सकता है ।

२. मन सदैव अतृप्त रहता है । एक वस्तु की इच्छा में मन संपूर्ण शक्ति लगा देता है । उस वस्तु की प्राप्ति के पश्‍चात उससे तुरंत उसका मन भर जाता है और वह नए वस्तु के पीछे लगता है ।

३. मन मूर्ख है । बार-बार समझाने पर भी मन राग-द्वेष, लोभ-मोह, मद-मत्सर में डूब जाता है ।

४. मन दूषित होता है । मन में ही सभी बुरे एवं निम्न स्तर के प्रश्‍न-विचार उत्पन्न होते रहते हैं ।

५. मन दुविधा के हिंडोले पर झूलता रहता है । कभी कहता है कि यह है, तो कभी कहता है कि यह नहीं है । मन इंद्रियों को गुलाम बनकर विषयों के पीछे दौडता है ।

६. मन संकल्प-विकल्प करता रहता है । किसी पदार्थ के बारे में कोई निश्‍चित कल्पना अथवा विचार करना संकल्प है, फिर उसी के बारे में विरुद्ध दूसरी-दूसरी बातें सोचना विकल्प है ।

७. इससे ध्यान में आता है कि मन मनुष्य का एक प्रकार से शत्रु ही है । इसे हम धीरे-धीरे नियंत्रण में ला सकते हैं ।

 

मन पर नियंत्रण लाने के लिए नित्यजीवन में करें यह प्रयास

बहुत छोटे छोटे उपाय हैं, जो हम नित्यजीवन में ला सकते हैं ।

१. नामजप में मन को एकाग्र करना

नामजप करते समय हमारी मुख्य समस्या होती है, मन में आनेवाले अनावश्यक विचार । ये विचार मुख्यरूप से नामजप के प्रति मन की शंकाओं अथवा अंतर्मन में विद्यमान संस्कारों के कारण आते हैं । यहां हम नामजप में मन की एकाग्रता बढाने हेतु कुछ सुझाव समझ लेंगे । ध्यान रहे कि नामजप में एकाग्रता हमारा ध्येय (साध्य) है, साधन नहीं ।

२. नामजप में मन की एकाग्रता कैसे बढाएं ?

नामजप की गिनती करें : इसके लिए जपमाला अथवा गणकयंत्र (काऊंटर) का उपयोग कर सकते हैं । इससे मन एकाग्र होने में सहायता मिलेगी ।

अ. जप उच्च स्वर में करें ! : नामजप करते समय जब मन भटकने लगे, तब जप उच्च स्वर में करना अथवा नामजप की सीडी लगाना उपयोगी होता है । अनावश्यक विचार घटने पर कुछ मात्रा में मन की एकाग्रता साध्य होती है और मन में नामजप करना संभव होने लगता है ।

आ. नामजप की गति बढाएं ! : मन की एकाग्रता बढाने के लिए हम कुछ समय तक नामजप की गति बढा सकते हैं तथा एकाग्रता साध्य होने पर गति घटा सकते हैं ।

इ. कोलाहल मुक्त स्थान पर नामजप करें ! : मन एकाग्र करने में हमें अडचन आ रही हो, तो किसी कोलाहल मुक्त स्थान पर अथवा प्राकृतिक स्थान में अथवा पूजाघर के सामने बैठकर नामजप कर सकते हैं; क्योंकि ऐसे स्थानों में सात्त्विकता अधिक होती है ।

ई. सोने से पूर्व तथा सोकर उठने पर नामजप करें ! : सोने से पूर्व तथा सोकर जागने के पश्‍चात मन में सांसारिक विचार अल्प होने के कारण मन नामजप में कुछ मात्रा में एकाग्र हो सकता है ।

उ. नामजप को श्‍वास के साथ जोडें ! : ‘श्‍वास के साथ नामजप जोडना’, हमारे इस लेख के अनुसार जब हम श्‍वास लेते हैं, तब हमारे भीतर वायु के साथ वायुमंडल के विचार भी आते हैं । नामजप को श्‍वास के साथ जोडने से, इन विचारों का हम पर होनेवाला प्रभाव घट जाता है ।

ऊ. नामजप मुद्रा के साथ करें ! : दोनों हाथों की तर्जनी और अंगूठे के सिरे एक-दूसरे से जोडें । इसे मुद्रा कहते हैं । इससे विचार कम होकर नामजप में एकाग्रता आती है ।

ए. स्वयंसूचना : स्वयंसूचना का अर्थ है – अपना आचरण, विचार, प्रतिक्रियाएं (दृष्टिकोण) अथवा शारीरिक स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु अपने मन को सुझाया गया एक उपचारात्मक वाक्य अथवा दृष्टिकोण ।

नामजप के लिए स्वयंसूचना : स्वयंसूचना नियमित देने से नामजप में एकाग्र होने की मन की क्षमता बढती है । आप स्वयंसूचना की वाक्य रचना इसप्रकार कर सकते हैं जब मेरा मन निरर्थक विचारों में भटकना आरंभ करेगा, तब तुरंत मुझे उसका भान होगा और मन नामजप पर केंद्रित करूंगी । स्वयंसूचना देने की पद्धति इसप्रकार है

१. १-२ मिनट तक नामजप करें ।

२. यह स्वयंसूचना लगातार ५ बार दें ।

३. अंत में कृतज्ञता व्यक्त करें ।

यह पूरी प्रक्रिया दिन में ३-५ बार करें ।

ऐ. दृष्टि स्थिर करना (त्राटक) : नामजप करते समय दृष्टि किसी वस्तु अथवा बिन्दुु पर बिना पलक झपकाए स्थिर करें । इससे मन को एकाग्र करने में सहायता होती है ।

ओ. आंखें मूंदकर नामजप करें ! : बाह्य आकर्षणों से मन में विचारों की संख्या बढती है । इसलिए आंखें बंद कर नामजप करने से मन की एकाग्रता बढती है । यदि किसी को नींद आने लगे, तो आंखें खुली रखकर नामजप करना ठीक रहेगा ।

औ. अपने सामने उपास्य देवता का चित्र रखकर नामजप करें : जिन उपास्य देवता का नामजप करना है, उनकी प्रतिमा अथवा चित्र सामने रख सकते हैं । इससे उनके रूप पर मन केंद्रित करने में सहायता होगी ।

अं. नामजप के देवता अथवा गुरु का स्मरण करें : इससे भाव बढाने में सहायता होगी और उनके प्रति भक्तिभाव होने के कारण नामजप अधिक एकाग्रतापूर्वक होने लगेगा । इसके अतिरिक्त भक्तिभाव बढाने हेतु प्रयत्न करने पर भी नामजप की गुणात्मकता में वृद्धि होगी ।

अ. प्रार्थना : पुनः-पुनः आर्तभाव से प्रार्थना करें – हे परमप्रिय ईश्‍वर, नामजप में मन एकाग्र होने के लिए कृपया मेरी सहायता कीजिए ।

क. नियमित अभ्यास : हम नामजप अधिक करेंगे, तो धीरे-धीरे विचारों की संख्या घटती जाएगी और एकाग्रता बढने में सहायता होगी ।

ख. गुरुकृपा : अपने ही प्रयत्नों से अनावश्यक विचारों को पूर्णतः रोकना अथवा उनपर नियंत्रण कर पाना संभव नहीं है । विचारों को पूर्णतः रोकने हेतु अंततः गुरुकृपा ही आवश्यक होती है ।

३. सारांश

एकाग्र मन से नामजप करने पर हमें अधिक आनंद होता है । एकाग्रता से नामजप करने से अंतर्मन पर नामजप का संस्कार दृढ होता है और ईश्‍वर से अधिक सुरक्षा प्राप्त होती है । यदि एकाग्रता से नामजप करना संभव न हो, तब भी नामजप करते रहना लाभप्रद है । इसके नियमित अभ्यास से नामजप में मन की एकाग्रता अपनेआप साध्य होगी । नामजप में एकाग्रता बढे, इस हेतु आप ६ माह की अवधि में नामजप में एकाग्रता बढाने का ध्येय रख सकते हैं ।

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