क्या पितरों के छायाचित्र घर में लगाना चाहिए ?

क्या पितरों के छायाचित्र घर में लगाना चाहिए ? अथवा कौन-सी दिशा में लगाने चाहिए ?

मृत व्यक्ति के साथ घर के लोगों का लगाव अथवा प्रेम होता है । उन्हें लगता है कि उनके कारण वे अच्छी स्थिति में हैं । इसलिए लोग मृत व्यक्ति के छायाचित्र को पूजते हैं अथवा उनका छायाचित्र घर में अथवा आस्थापन में लगाते हैं । अनेक स्थानों पर मृतक के छायाचित्र पूजाघर में अथवा पूजाघर के ऊपर रखे जाते हैं । इतना ही नहीं देवताओं की भांति उनके छायाचित्र की चंदन-पुष्प से पूजा भी की जाती है; परंतु यह अनुचित है । मृत व्यक्ति का छायाचित्र कभी भी घर अथवा पूजाघर में न लगाएं । ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए ?

१. शास्त्र के अनुसार छायाचित्र अर्थात रूप के साथ शब्द, रस, गंध एवं शक्ति कार्यरत रहती है । यदि पितरों को गति न मिली हो, तो वे भुवर्लोक में फंस जाते हैं । हिन्दू धर्मशास्त्र में मृत्यु के उपरांत देह का दहन किया जाता है । फिर जो अस्थियां बचती हैं, उन्हें जल में विसर्जित किया जाता है । इसका कारण यह है कि मृत व्यक्ति का पुराने घर-परिवार से लगाव नष्ट हो और उसकी आत्मा को अगली गति मिले । परंतु यदि हम उनके छायाचित्र (फोटो) को अपने घर में लगाकर रखेंगे, तो उस रूप के कारण वह आगे मुक्ति की दिशा में न जाकर पुन: अपने परीवार की माया में अटक जाते हैं । हम उनकी आगे की यात्रा में बाधा लाते हैं । उनसे प्रक्षेपित नकारात्मक स्पंदन कार्यरत होते हैं । घर के वातावरण को मृत व्यक्ति के छायाचित्र से आनेवाले नकारात्मक स्पंदन दूषित करतेे हैं । इससे घर के स्पंदन विकृत होकर सभी को कष्ट होता है । इस कारण आर्थिक समस्याएं आना, घर के किसी सदस्य का विवाह विलंब से होना, घर की सुखशांति नष्ट होना जैसी बाधाएं आ सकती हैं ।

२. हिन्दू धर्म में सर्वशक्तिमान और कालातीत देवताओं की पूजा का विधान है । भगवान की मूर्ति और चित्रद्वारा घर में सात्त्विक स्पंदन बढते हैं । हमें यह भी पता है कि एक बार जो मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, वह पुनः लौटकर नहीं आ सकता । ऐसी स्थिति में पूर्वजों को पूजने का अर्थ है ईश्‍वर और पूर्वजों को एक ही स्तर पर समझना ।

किसी जीव को अच्छी गति मिली हो, तब भी उनके छायाचित्र न लगाएं । इसलिए कि उनके छायाचित्र की ओर अन्य पूर्वज आकर्षित हो सकते हैं और उनके अगले प्रवास में हम बाधक बन सकते हैं । संतों के छायाचित्र अवश्य लगा सकते हैं ।

३. अनेक लोग कहेंगे कि राजमहलों में तो राजाओं के तैलचित्र (ऑयल पेंटिंग्स) होते हैं । परंतु हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इसका इतिहास भी बहुत पुराना नहीं है, हमारे हजारों वर्षों के इतिहास में कितने राजाओं के चित्र देखने के लिए मिलते हैं ? तथा राजा धार्मिक होते थे, अपने राजगुरु तथा राजपुरोहित के द्वारा सभी धार्मिक विधि, आचरण शास्त्रानुसार नियमित रूप से करते थे । आज हम स्वयं को आधुनिक मानते हैं और अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध आदि विधि करने को पिछडापन मान रहे हैं ।

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