अध्यात्म और विज्ञान में समानता कैसे रखें ?

विज्ञान भौतिक सृष्टि के संदर्भ में है । ‘विज्ञान केवल स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों के संदर्भ में ही संशोधन करता है, किंतु अध्यात्म सूक्ष्मतर एवं सूक्ष्मतम का भी विचार करता है !’ विज्ञान तंत्रज्ञान के संदर्भ में जानकारी देता है एवं अध्यात्म आत्मज्ञान के संदर्भ में !

आज जीवन के प्रत्येक अंग को विदेशी दृष्टिकोण से देखा जाता है । इस विचार से प्रभावित भारतीय, आज अपना त्यागमय अध्यात्म भूलकर, विदेशियों के विलासी जीवन जी रहे हैं । यद्यपि आधुनिक वैज्ञानिक मानते हैं कि सूक्ष्मतम अथवा अति सूक्ष्म बातें मानव जीवन को बहुत प्रभावित करती हैं; तो भी वे अध्यात्म के नियमों को नहीं मानते । आज अपौरुषेय अध्यात्मशास्त्र को विदेशी दृष्टि से नहीं, वैदिक धर्म की दृष्टि सेे देखने की आवश्यकता है । अध्यात्मशास्त्र इतना व्यापक है कि उसमें संपूर्ण विज्ञान समाहित हो सकता है । अध्यात्म कठिन नहीं है । यह जीवन की कठिनाईयां सुलझाता है । प्राथमिक अवस्था में, अध्यात्मशास्त्र में निहित विज्ञान को समझते हुए अध्ययन करने पर ध्यान में आएगा कि यह शास्त्र अति प्रगत विज्ञान ही है । बुद्धिवादी और विज्ञानवादी यह न समझें कि अध्यात्म बहुत कठिन है । यह सरल है, इसका आचरण करें । क्योंकि, यह आचरण का शास्त्र है । अध्यात्मशास्त्र में बताई गई बातें आचरण में लाने पर ही यह समझ में आता है कि जीवन को कैसे समृद्ध और सुखी बनाया जा सकता है । हिन्दू धर्मशास्त्र विज्ञान की अनदेखी नहीं है । भौतिक सुविधाओं के लिए विज्ञान का उपयोग होना चाहिए, उसी समय अध्यात्म को कनिष्ठ न मानकर अध्यात्म से जीवन को सुसंस्कारित एवं परिपूर्ण करने के लिए उसकी सहायता हेतु व्यवस्था करनी चाहिए ।

 

क्या भारतीय वैज्ञानिक तत्त्व आधुनिक वैज्ञानिकों से आगे थे ?

आधुनिक विज्ञान से भारतीय वैज्ञानिक तत्त्व अर्थात अध्यात्मशास्त्र निश्‍चित ही आगे था और रहेगा । इस तथ्य को समझने के लिए विज्ञान एवं अध्यात्म के कुछ तुलनात्मक सूत्रों पर (मुद्दों पर) हमें ध्यान देना होगा ।

१. विज्ञान की व्याख्या क्या है ? ‘विगतं ज्ञानं यस्मात् तत् ।’, अर्थात ‘जिसमें से ज्ञान निकल गया हो, वह है विज्ञान’, ऐसी है विज्ञान की विनोदी; परंतु अर्थपूर्ण व्युत्पत्ति ।

‘सा विद्या या विमुक्तये।’, अर्थात जो मुक्ति दिलाए उसे ही विद्या / ज्ञान कहते हैं ।’ ऐसा ज्ञान केवल अध्यात्मशास्त्र से मिलता है । भारतीय वैज्ञानिक तत्त्व में यह ज्ञान मिलता है ।

२. दूसरा भेद है । विज्ञान के ‘सत्य’ में निरंतर परिवर्तन होता रहता है । जैसे डार्विन का सिद्धांत आज गलत बताया जा रहा है । विज्ञान की पुस्तकों के सुधारित संस्करण छापने पडते हैं । संक्षेप में, विज्ञान अपूर्ण एवं असत्य का शास्त्र है ।

इसके विपरीत आत्मज्ञान में परिवर्तन नहीं होता। अध्यात्म के शोध से प्राप्त सत्य त्रिकालाबाधित एवं शाश्‍वत होता है, इसलिए वेद, उपनिषद आदि के पुनर्मुद्रण होते हैं, सुधारित संस्करण कभी नहीं होते ।

३. एक सरल उदाहरण बताता हूं, हमारे यहां हर घर के आगे तुलसी वृंदावन है । प्रतिदिन उसकी पूजा और परिक्रमा होती है । आज प्रगत होने पर विज्ञान बता रहा है कि तुलसी से २४ घंटे ऑक्सीजन ही निकलता है । प्रकृति के लिए वह उपयोगी है । कोई आधुनिक प्रयोगशाला न होते हुए भारतीय वैज्ञानिक तत्त्व यह जानता था । हिन्दू वेदों को मान्यता देते हैं और वेदों में विज्ञान बताया गया है। केवल सौ वर्षों में पृथ्वी को नष्टप्राय बनाने के मार्ग पर लानेवाले आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा, अत्यंत प्रगतिशील एवं एक भी समाज विघातक शोध न करने वाला प्राचीन ‘हिन्दू विज्ञान’ था । पूर्वकाल के शोधकर्ता हिन्दू ऋषियों की बुद्धि की विशालता देखकर आज के वैज्ञानिकों को अत्यंत आश्‍चर्य होता है । सहस्रों वर्ष पूर्व ही पाश्‍चात्त्य वैज्ञानिकों की न्यूनता सिद्ध करनेवाला शोध करनेवाले हिन्दू ऋषि-मुनि ही खरे वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं ।

४. गुरुत्वाकर्षणका गूढ रहस्य उजागर करनेवाले भास्कराचार्यजी ने अपने (दूसरे) ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में गुरुत्वाकर्षण के विषय में लिखा है, ‘पृथ्वी आकाश का पदार्थ स्व-शक्ति से अपनी ओर खींच लेती है । इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’ । इससे सिद्ध होता है कि न्यूटन से ५०० वर्ष पूर्व ही उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का शोध किया था ।

५. परमाणुशास्त्र के जनक आचार्य कणादजी ने अणुवैज्ञानिक जॉन डाल्टन के २५०० वर्ष पूर्व ही बताया था कि, ‘द्रव्य के परमाणु होते हैं ।’ विख्यात इतिहासकार टीएन कोलेबु्रकजी ने कहा है कि, ‘अणुशास्त्र में आचार्य कणाद तथा अन्य भारतीय वैज्ञानिक यूरोपीयन वैज्ञानिकों की तुलना में विश्‍वविख्यात थे ।’

यहां ये दो ही उदाहरण बता रहा हूं । यदि आप गुगल पर भी सर्च करें, तो आपको भारतीय वैज्ञानिक तत्त्व की महानता ध्यान में आएगी । भविष्य में हम इस विषय पर हम चर्चा करेंगे ।

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