गुरुकृपायोग के अनुसार साधना की श्रेष्ठता

गुरुकृपायोग विशेष सैद्धांतिक जानकारी न देकर केवल प्रत्यक्ष साधना कर उन्नति कैसे करें, यह सिखाता है ! ‘गुरुकृपायोग में विशेष सैद्धांतिक जानकारी नहीं है; क्योंकि यह योग कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग इत्यादि योगों पर आधारित है । विविध योगों की विस्तृत तात्त्विक जानकारी निश्चित रूप से अनेक ग्रंथों में उपलब्ध है । गुरुकृपायोग केवल प्रायोगिक साधना … Read more

समाजसेवक, देशभक्त तथा धर्मनिष्ठ (हिन्दुत्वनिष्ठ) के साधना करने का महत्त्व !

साधना करने से हिन्दू धर्म का महत्त्व समझ में आता है तथा हिन्दू धर्म समझ में आने पर ही वास्तव में समाज, राष्ट्र तथा धर्म का कल्याण करने हेतु प्रयत्न हो पाते हैं । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

अपेक्षा करना अहं है !

अपेक्षा करना अहं का लक्षण है । अपेक्षापूर्ति होने पर तात्कालिक सुख मिलता है; परंतु इससे अहं का पोषण होता है और यदि अपेक्षा के अनुरूप नहीं होता तो दुःख होता है, अर्थात दोनों ही प्रसंगों में साधना की दृष्टि से हानि ही होती है ।’ – (सद्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदे

बुद्धिप्रमाणवादी एवं संत में भेद !

‘कहां स्वेच्छा से आचरण करने को प्रोत्साहित कर मानव की अधोगति करनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी, और कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करना सिखाकर ईश्वरप्राप्ति करानेवाले संत !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

भक्ति का महत्व !

‘पृथ्वी के काम भी बिना किसी के परिचय के नहीं होते, तो प्रारब्ध अनिष्ट शक्ति की पीडा आदि समस्याएं भगवान के परिचय के बिना भगवान दूर करेंगे क्या ?’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

धर्मबंधन का महत्त्व

‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के कारण मानव भटकता जाता है; क्योंकी वह सात्विक नहीं । ऐसा ना हो; इसके लिए धर्मबंधन आवश्यक है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

तथाकथित बुद्धिवादी

वास्तविक बुद्धिवादी प्रयोग कर निष्कर्ष तक पहुंचते हैं । इसके विपरीत स्वयं को बुद्धिवादी कहलानेवाले साधना का, अध्यात्म का प्रयोग किए बिना ही कहते हैं, ‘वह झूठा है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

भारत की दुर्दशा !

‘पूर्व काल में भारत का परिचय था, ‘अध्यात्मशास्त्र और संसार को साधना सिखानेवाला साधु- संतों का देश ।’ आज वही पहचान ‘राष्ट्राभिमान और धर्माभिमान रहित भ्रष्टाचारी लोगों का देश’ ऐसी बन गई है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

ईश्वर की कृपा का महत्व !

‘ईश्वर की कृपा अनुभव करने के उपरांत समाज में कोई प्रशंसा करे, तो उसका मूल्य शून्य प्रतीत होता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

कहां वैज्ञानिक और कहां ऋषि- मुनि !

‘कहां परग्रह पर जानेवाले यान की खोज करने पर विज्ञान की प्रशंसा करनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी ; और कहां केवल विश्व में ही नहीं अपितु सप्तलोक एवं सप्त पाताल में भी क्षणार्द्ध में सूक्ष्म से पहुंच पानेवाले ऋषि-मुनि !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले