‘कोरोना’ महामारी की पृष्ठभूमि पर शास्त्र के विधान के अनुसार निम्नांकित पद्धति से श्राद्धविधि करें !
पितृपक्ष में पितृलोक के पृथ्वीलोक के सर्वाधिक निकट आने से इस काल में पूर्वजों को समर्पित अन्न, जल और पिंडदान उन तक शीघ्र पहुंचता है ।
पितृपक्ष में पितृलोक के पृथ्वीलोक के सर्वाधिक निकट आने से इस काल में पूर्वजों को समर्पित अन्न, जल और पिंडदान उन तक शीघ्र पहुंचता है ।
यहां छोटे बच्चे वे होते हैं, जिनके दांत नहीं आए हों, साथ ही जिन में हड्डियां बनने की प्रक्रिया पूर्ण न हुई हो और उनकी मृत्यु हुई हो, तो उनका श्राद्ध नहीं किया जाता ।
प्रत्येक कार्य विशिष्ट तिथि अथवा मुहूर्त पर करना विशेष लाभदायक है; क्योंकि उस दिन उन कर्मों का कालचक्र, उनका प्रत्यक्ष होना तथा उनका परिणाम, इन सभी के स्पंदन एक-दूसरे के लिए सहायक होते हैं ।
हिन्दू धर्म में इतने मार्ग बताए गए हैं कि ‘श्राद्धविधि अमुक कारण से नहीं कर पाए’, ऐसा कहने का अवसर किसी को नहीं मिलेगा । इससे स्पष्ट होता है कि प्रत्येक के लिए श्राद्ध करना कितना अनिवार्य है ।
व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात प्रतिदिन दस दिनों तक पिंडदान बताया गया है; किंतु कालानुसार वह दसवें दिन ही एक साथ किया जाता है ।
‘श्राद्धविधि स्वयं करनी चाहिए । स्वयं नहीं कर पाते, इसलिए ब्राह्मण द्वारा करवाते हैं ।
श्राद्ध के कारण पूर्वजदोष के (पितृदोषके) कष्ट से रक्षा कैसे होती है ? ‘श्राद्धद्वारा उत्पन्न ऊर्जा मृत की लिंगदेह में समाई हुई त्रिगुणात्मक ऊर्जा से साम्य दर्शाती है; इसलिए अल्पावधि में श्राद्ध से उत्पन्न ऊर्जा के बल पर लिंगदेह मत्र्यलोक पार करती है । (मत्र्यलोक भूलोक एवं भुवर्लोक के मध्य स्थित है ।) एक बार … Read more
कलियुगमें अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अत: वे मायामें फंसे रहते हैं । इसलिए मृत्युके उपरांत ऐसे लोगोंकी लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोक (मृत्युलोक)में फंस जाती है । मृत्युलोकमें फंसे पूर्वजोंको दत्तात्रेयके नामजपसे गति मिलती है
‘प्रत्येक कृतिकी परिणामकारकता, उसका कार्यरत कर्ता (उसके कर्ता), कार्य करनेका योग्य समय एवं कार्यस्थल आदिपर निर्भर करती है ।