‘कोरोना’ महामारी की पृष्ठभूमि पर शास्त्र के विधान के अनुसार निम्नांकित पद्धति से श्राद्धविधि करें !

पितृपक्ष में शास्त्रोक्त पद्धति से महालय श्राद्धविधि करने का महत्त्व ध्यान में लें !

 

१. पितृपक्ष में महालय श्राद्धविधि करने का महत्त्व !

पितृपक्ष के काल में कुल के सभी पूर्वज अन्न एवं जल (पानी) की अपेक्षा लेकर अपने वंशजों के पास आते हैं । पितृपक्ष में पितृलोक के पृथ्वीलोक के सर्वाधिक निकट आने से इस काल में पूर्वजों को समर्पित अन्न, जल और पिंडदान उन तक शीघ्र पहुंचता है । उससे वे संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं । श्राद्धविधि करने से पितृदोष के कारण साधना में आनेवाली बाधाएं दूर होकर साधना में सहायता मिलती है ।

 

२. ‘कोरोना’ महामारी की पृष्ठभूमि पर पितृपक्ष में शास्त्रोक्त
पद्धति से महालय श्राद्धविधि करना संभव न हो, तो क्या करना चाहिए ?

आज की स्थिति में ‘कोरोना’ महामारी की पृष्ठभूमि पर कुछ स्थानों में श्राद्धविधि करने पर मर्यादाएं हैं । ऐसी स्थिति में ‘श्राद्ध करने के संदर्भ में शास्त्रविधान क्या है ?’, इसकी जानकारी आगे दी गई है ।

२ अ. आमश्राद्ध करना

‘संकटकाल में, भार्या के अभाव में, तीर्थस्थान पर और संक्रांति के दिन आमश्राद्ध करना चाहिए’, यह कात्यायन का वचन है । कुछ कारणवश पूरा श्राद्धविधि करना संभव न हो, तो संकल्पपूर्वक ‘आमश्राद्ध’ करना चाहिए । अपनी क्षमता के अनुसार अनाज, चावल, तेल, घी, चीनी, अदरक, नारियल, १ सुपारी, २ बीडे के पत्ते, १ सिक्का आदि सामग्री बरतन में रखें । ‘आमान्नस्थित श्री महाविष्णवे नमः ।’ नाममंत्र बोलते हुए उसपर गंध, अक्षत, फूल और तुलसी का पत्ता एकत्रित समर्पित करें । यह सामग्री किसी पुरोहित को दें । पुरोहित उपलब्ध न हो, तो वेदपाठशाला, गोशाला अथवा देवस्थान में उसका दान दें ।

२ आ. ‘हिरण्य श्राद्ध’ करना

उक्त प्रकार से करना भी संभव नहीं हुआ, तो संकल्पूर्वक ‘हिरण्य श्राद्ध’ करना चाहिए अर्थात अपनी क्षमता के अनुसार एक बरतन में व्यावहारिक द्रव्य (पैसे) रखें । ‘हिरण्यस्थित श्री महाविष्णवे नमः ।’ अथवा ‘द्रव्यस्थित श्री महाविष्णवे नमः ।’ बोलकर उस पर एकत्रित गंध, अक्षत, फूल और तुलसी का पत्ता समर्पित करें और उसके पश्‍चात उस धन को पुरोहित को अर्पण करें । पुरोहित उपलब्ध न हो, तो वेदपाठशाला, गोशाला अथवा देवस्थान को दान दें ।

२ इ. गोग्रास देना

जिनके लिए आमश्राद्ध करना संभव नहीं है, वे गोग्रास दें । जहां गोग्रास देना संभव न हो, वे निकट की गोशाला से संपर्क कर गोशाला में गोग्रास हेतु कुछ पैसे अर्पण करें ।

उक्त में से आमश्राद्ध, हिरण्यश्राद्ध अथवा गोग्रास समर्पित करने के उपरांत तिल अर्पित करें । पंचपात्र (तांबे का गिलास) में पानी लें । उसमें थोडे से काले तिल डालें । इससे तिलोदक बनता है । तिलोदक बनने पर मृत पूर्वजों के नाम लेकर दाहिने हाथ का अंगूठा और तर्जनी के मध्य से उन्हें तिलोदक समर्पित करें । दिवंगत व्यक्ति का नाम ज्ञात न हो; परंतु वह व्यक्ति ज्ञात हो, तो उस व्यक्ति का स्मरण कर तिलोदक समर्पित करें । अन्य समय इन सभी विधियों के समय पुरोहित मंत्रोच्चारण करते हैं और उसके अनुसार हम उपचार करते हैं । पुरोहित उपलब्ध हों, तो उन्हें बुलाकर उक्त पद्धति से विधि करें और पुरोहित उपलब्ध न हों, तो इस लेख में दी गई जानकारी के अनुसार भाव रखकर विधि करें ।

किसी को कोई भी विधि करना संभव न हो, तो वे न्यूनतम तिलतर्पण करें ।

२ ई. जिन्हें कुछ भी करना संभव न हो वे क्या करें ?

जिन्हें उक्त में से कुछ भी करना संभव न हो, तो वे धर्मकार्य के प्रति समर्पित किसी आध्यात्मिक संस्था को अर्पण दें ।

 

३. श्राद्धविधि करते समय करनी आवश्यक प्रार्थना !

श्री दत्तजी के चरणों में यह प्रार्थना करें कि, ‘शास्त्रमार्ग के अनुसार प्राप्त परिस्थिति में आमश्राद्ध, हिरण्य श्राद्ध अथवा तर्पण विधि (उक्त में से जो किया जा रहा है, उसका उल्लेख करें) किया है । इसके द्वारा पूर्वजों को अन्न और जल मिलें । इस दान से सभी पूर्वज संतुष्ट हों । हम पर उनकी कृपादृष्टि बनी रहे । हमारी आध्यात्मिक उन्नति हेतु उनके आशीर्वाद प्राप्त हों । श्री दत्तजी की कृपा से उन्हें सद्गति प्राप्त हो ।’

पितृपक्ष के पश्‍चात अधिक मास के आने से उस समय में अर्थात १८.९.२०२० से ६.१०.२०२० की अवधि में श्राद्ध न करें । तत्पश्‍चात महालय की समाप्ति तक अर्थात १७.१०.२०२० से १५.११.२०२० की अवधि में श्राद्ध किया जा सकता है ।

कोरोना महामारी के कारण वर्तमान स्थिति में बदलाव आकर स्थिति सामान्य हुई, तो विधिपूर्वक पिंडदान कर श्राद्ध करें ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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