संपूर्ण नागपंचमी पूजन विधि – मंत्र एवं अर्थ सहित

‘अपने कुटुंबियों की नागभय से सदासर्वकाल मुक्ति हो, इसके साथ ही नागदेवता का कृपाशीर्वाद प्राप्त हो’, इस हेतु प्रति वर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को अर्थात नागपंचमी को नागपूजन किया जाता है ।

गुरुपूर्णिमा के अवसर पर संतों के शुभसंदेश (2022)

भगवान की कृपा प्राप्‍त करने के प्रयास बढाएं ! – श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
धर्मसंस्‍थापना हेतु स्‍वक्षमता अनुसार योगदान करें ! – श्रीसत्‌शक्‍ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ

गुरुपूर्णिमा पूजाविधि (संपूर्ण गुरु पूजन मंत्र एवं अर्थसहित)

आषाढ पूर्णिमा अर्थात व्यासपूजन अर्थात गुरुपूर्णिमा । इस दिन ईश्वर के सगुण रूप अर्थात गुरु का मनोभाव से पूजन

गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में सनातन संस्था के गुरुओं द्वारा संदेश (2023)

गुरुपूर्णिमा गुरु अथवा गुरुतत्त्व के प्रति कृतज्ञता व्‍यक्‍त करने का दिन है । हिन्‍दुओं की धर्मपरंपरा में गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुदर्शन, गुरुदक्षिणा, गुरुसेवा, गुरुकार्य करने का संकल्‍प करना आदि का विशेष महत्त्व है । ‘समाज में धर्म और साधना का प्रचार करना एवं जब धर्मग्‍लानि हो तब धर्मसंस्‍थापना का कार्य करना’ भी गुरुतत्त्व का कार्य है ।

श्रद्धा एवं भक्ति द्वारा आज भी वारी की परंपरारूपी धरोहर संजोनेवाले वारकरी !

संत ज्ञानेश्वरजी ने ज्ञानेश्वरी में ‘वारी’ यह शब्द ‘फेरा’, इस अर्थ से प्रयुक्त किया है । ‘यह वारी कब आरंभ हुई ?’, इस विषय में विद्वानों में मतभेद है । केवल इतना कहा जा सकता है कि ‘ज्ञानेश्वर महाराज ने ‘वारी’की महिमा में अत्यधिक वृद्धि की ।

आषाढी एकादशी – पंढरपुर में होनेवाला भागवतभक्तों का महासंगम

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ एवं उनके साथ महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साधक गुट ने एक पंढरी की वारी का एवं उसमें होनेवाले रिंगण का चित्रीकरण किया ।

पांडुरंग एवं एकादशी की महिमा !

आषाढ एवं कार्तिक माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशी के समय श्रीविष्णु का तत्त्व पृथ्वीवर अधिक मात्रा में आने से श्रीविष्णु से संबंधित ये दो एकादशियों का महत्त्व अधिक है ।

उदयकाल के संदर्भ में पालन करने योग्य आचार

उदयकालीन सूर्य की किरणों का स्पर्श क्यों न होने दें ?, सूर्योदय एवं सूर्यास्त के संधिकाल में साधना करने का महत्त्व
सनातन निर्मित ग्रंथ : आदर्श दिनचर्या एवं अध्यात्मशास्त्र

भगवान को नैवेद्य दिखाने का आधारभूत शास्त्र

नैवेद्य दिखाते समय सात्त्विक अन्न का नैवेद्य भावपूर्ण प्रार्थना करके भगवान को अर्पण करने पर उस नैवेद्य के पदार्थ की सात्त्विकता के कारण भगवान से प्रक्षेपित होनेवाली चैतन्य-लहरें नैवेद्य की ओर आकृष्ट होती हैं । इससे नैवेद्य के लिए अन्न बनाते समय उसमें देशी घी के समान सात्त्विक पदार्थाें का उपयोग किया जाता है ।

रसोईघर कैसा हो ?

अन्न खुला न रखें, अन्न को ढककर रखें । स्थूलरूप से अन्न की रक्षा हेतु, अन्न में कोई जीव-जंतु न जाए आदि कारणों से हम उसे ढककर रखते हैं । स्थूल के साथ सूक्ष्मरूप से भी अन्न की रक्षा हो, इसके लिए उ से ढकना आवश्यक है ।