श्रद्धा एवं भक्ति द्वारा आज भी वारी की परंपरारूपी धरोहर संजोनेवाले वारकरी !

संत ज्ञानेश्वरजी ने ज्ञानेश्वरी में ‘वारी’ यह शब्द ‘फेरा’, इस अर्थ से प्रयुक्त किया है । ‘यह वारी कब आरंभ हुई ?’, इस विषय में विद्वानों में मतभेद है । केवल इतना कहा जा सकता है कि ‘ज्ञानेश्वर महाराज ने ‘वारी’की महिमा में अत्यधिक वृद्धि की ।

आषाढी एकादशी – पंढरपुर में होनेवाला भागवतभक्तों का महासंगम

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ एवं उनके साथ महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के साधक गुट ने एक पंढरी की वारी का एवं उसमें होनेवाले रिंगण का चित्रीकरण किया ।

पांडुरंग एवं एकादशी की महिमा !

आषाढ एवं कार्तिक माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशी के समय श्रीविष्णु का तत्त्व पृथ्वीवर अधिक मात्रा में आने से श्रीविष्णु से संबंधित ये दो एकादशियों का महत्त्व अधिक है ।

भावभक्ति की अनुभूति करानेवाली पंढरपुर की यात्रा (वारी)

व्यक्तिगत जीवन के अभिनिवेष बाजू में रखकर ईश्वर के नामस्मरण में देहभान भूलानेवाला एक आध्यात्मिक समारोह है पंढरपुर की पैदल यात्रा (वारी) !

एकादशी व्रत

केवल पुण्यसंचय हो, इस सद्हेतु से एकादशी की ओर देखना अयोग्य है । एकादशी व्रत करने के सर्वंकश लाभ समाज, राष्ट्र और व्यक्ति को हुए हैं और होनेवाले हैं । हिन्दू धर्म के प्रत्येक माह में दो एकादशी आती हैं ।

आषाढी एकादशी

एकादशी यह भगवान श्रीविष्णुजीकी तिथि है ।एकादशी व्रत करनेसे, कार्यक्षमतामें वृद्धि होना, आयुवृद्धि होना एवं आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र होनेमें सहायता मिलना ।

एकादशी

कालमाहात्म्यानुसार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशीके दिन निर्जला व्रत करनेसे वर्षकी सभी एकादशी करनेका फल प्राप्त होता है । एकादशीका महत्त्व, एकादशी व्रतपालन करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ निषेध कृत्य इसके बारेमें हम जानेंगे ।