अनुक्रमणिका

१. नागपंचमीपूजन करते समय
आपातकालीन स्थिति में ‘नागपंचमी’की पूजा कैसे करें ?
‘अपने कुटुंबियों की नागभय से सदासर्वकाल मुक्ति हो, इसके साथ ही नागदेवता का कृपाशीर्वाद प्राप्त हो’, इस हेतु प्रति वर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को अर्थात नागपंचमी को नागपूजन किया जाता है । इस दिन कुछ स्थानों पर मिट्टी से बने नाग लाकर उनकी पूजा की जाती है, तो कुछ स्थानों पर बमीठे (वारूल) की पूजा की जाती है ।
जहां सार्वजनिक स्थान के बमीठे की सामूहिकरूप से पूजा होती रही हो, परंतु कोरोना विषाणु का प्रादुर्भाव होने से वहां यातायात बंदी (लॉकडाऊन) है, तो वहां बमीठे की पूजा करना संभव नहीं होगा । इसके साथ ही जहां यातायात बंदी के नियम कुछ मात्रा में शिथिल किए गए हैं एवं सामाजिक अंतर (सोशल डिस्टन्सिंग) आदि सर्व नियम पालकर बमीठे की परंपरागत पूजा व्यक्तिगतरूप से करना संभव नहीं, वहां सदा की भांति पूजा कर सकते हैं । जहां सामूहिकरूप से पूजा करना अथवा घर से बाहर निकलकर बमीठे का पूजन करना संभव नहीं, उसका इस लेख में प्रमुखरूप से विचार किया है ।
२. नागदेवता का पूजन
२.अ. नागदेवता का चित्र बनाना
हलदीमिश्रित चंदन से दीवार पर अथवा पीढे पर नाग (अथवा नौ नागों ) का चित्र बनाएं । फिर उस स्थान पर नागदेवता का पूजन करें । ‘अनंतादिनागदेवताभ्यो नमः ।’ यह नाममंत्र कहते हुए गंध, पुष्प इत्यादि सर्व उपचार समर्पित करें ।
२.आ. षोडशोपचार पूजन
जिन्हें नागदेवता की ‘षोडशोपचार पूजा’ करना संभव है, वे षोडशोपचार पूजा करें ।
२.इ. पंचोपचार पूजन
जिन्हें नागदेवता की ‘षोडशोपचार पूजा’ करना संभव नहीं, वे ‘पंचोपचार पूजा’ करें एवं दूध, शक्कर, खीलों का अथवा कुल की परंपरा अनुसार खीर इत्यादि पदार्थाें का नैवेद्य दिखाएं । (पंचोपचार पूजा : चंदन, हलदी-कुंकू, पुष्प (उपलब्ध हो तो दूर्वा, तुलसी, बेल) धूप, दीप एवं नैवेद्य, इस क्रम से पूजा करना ।)
३. पूजन के उपरांत नागदेवता से की जानेवाली प्रार्थना !
‘हे नागदेवता, आज श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को मैंने जो यह नागपूजन किया है, इस पूजन से आप प्रसन्न होकर मुझे सदैव सुखी रखें । हे नागदेवता, इस पूजन में जाने-अनजाने मुझसे कोई भूल हुई हो, तो मुझे क्षमा करें । आपकी कृपा से मेरे सर्व मनोरथ पूर्ण हों । मेरे कुल में कभी भी नागविष से भय उत्पन्न न हो’, ऐसी आपके श्रीचरणों में प्रार्थना है ।’
सर्वसामान्य लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती कि नागपूजन कैसे करें । पूजा करते समय वह भावपूर्ण हो एवं नागदेवता की उनपर कृपा हो, इस उद्देश्य से धर्माचरण के रूप में आगे विस्तार से पूजाविधि दी है ।
४. आचमन
आगे दिए गए ३ नाम उच्चारने पर प्रत्येक नाम के अंत में बाएं हाथ से आचमनी से पानी लेकर दाएं हाथ में लेकर पिएं –
श्री केशवाय नमः । श्री नारायणाय नमः । श्री माधवाय नमः ।
‘श्री गोविंदाय नमः’ का उच्चारण कर हथेली पर पानी लेकर नीचे ताम्रपात्र में छोडें ।
अब आगे के नामों का क्रमानुसार उच्चारण करें ।
विष्णवे नमः । मधुसूदनाय नमः । त्रिविक्रमाय नमः । वामनाय नमः । श्रीधराय नमः । हृषीकेशाय नमः । पद्मनाभाय नमः । दामोदराय नमः । संकर्षणाय नमः । वासुदेवाय नमः । प्रद्युम्नाय नमः । अनिरुद्धाय नमः । पुरुषोत्तमाय नमः । अधोक्षजाय नमः । नारसिंहाय नमः । अच्युताय नमः । जनार्दनाय नमः । उपेन्द्राय नमः । हरये नमः । श्रीकृष्णाय नमः ।
(हाथ जोडें ।)
५. प्रार्थना
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
(गणों के नायक श्री गणपति को मैं नमस्कार करता हूं ।)
इष्टदेवताभ्यो नमः ।
(मेरे आराध्य देवता को मैं नमस्कार करता हूं।)
कुलदेवताभ्यो नमः ।
(कुलदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)
ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
(ग्रामदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)
स्थानदेवताभ्यो नमः ।
(यहां के स्थान देवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)
वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
(यहां के वास्तुदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)
आदित्यादिनवग्रहदेवताभ्यो नमः ।
(सूर्यादि नौ ग्रहदेवताओं को मैं नमस्कार करता हूं ।)
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ।
(सर्व देवताओं को मैं नमस्कार करता हूं ।)
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमो नमः । (सर्व ब्राह्मणों को (ब्रह्म जाननेवालों को) मैं नमस्कार करता हूं ।)
अविघ्नमस्तु । (सर्व संकटों का नाश हो ।)
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः ॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
सङ्ग्रामे सङ्कटेचैव विघ्नस्तस्य न जायते ।
(सुंदर मुख, एक दांत, धुंए के रंग, हाथी के समान कान, विशाल पेट, (दुर्जनों के नाश के लिए) विक्राल रूपवाले, संकटों का नाश करनेवाले, गणों के नायक धुएं के रंगवाले, गणों के प्रमुख, मस्तक पर चंद्र धारण करनेवाले तथा हाथी के समान मुखवाल, इन श्री गणपति के बारा नामों का विवाह के समय, विद्याध्ययन प्रारंभ करते समय, (घर में) प्रवेश करते समय अथवा (घर से) बाहर निकलते समय, युद्ध पर जाते समय अथवा संकटकाल में जो पठन करेगा अथवा सुनेगा उसे विघ्न नहीं आएंगे ।)
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
(सर्व संकटों के नाश के लिए शुभ्र वस्त्र धारण किए हुए, शुभ्र रंगवाले, चार हाथवाले प्रसन्न मुखवाले देवता का (भगवान श्रीविष्णु का) मैं ध्यान करता हूं ।)
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥
(सर्व मंगलों में मंगल, पवित्र, सभी का कल्याण करनेवाली, तीन आंखोंवाली, सभी का शरण स्थानवाली, शुभ्र वर्णवाली हे नारायणीदेवी, मैं नमस्कार करता हूं ।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम् ।
येषां हृदिस्थो भगवान्मङ्गलायतनं हरिः ॥
(मंगल निवास में (वैकुंठ में) रहनेवाले भगवान श्रीविष्णु जिनके हृदय में रहते हैं, उनके सभी काम सदैव मंगल होते हैं ।)
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव ।
विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ॥
(हे लक्ष्मीपति (विष्णो), आपके चरणकमलों का स्मरण ही लग्न, वही उत्तम दिन, वही ताराबल, वही चंद्रबल, वही विद्याबल और वही दैवबल है ।)
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ।
येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ॥
(नीले रंगवाले, सभी का कल्याण करनेवाले (भगवान विष्णु) जिनके हृदय में वास करते हैं, उनकी पराजय कैसे होगी ! उनकी सदैव विजय ही होगी, उन्हें सर्व (इच्छित) बातें प्राप्त होंगी !)
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थाे धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥
(जहां महान योगी (भगवान) श्रीकृष्ण और महान धनुर्धारी अर्जुन हैं, वहां ऐश्वर्य एवं जय निश्चित होती है, ऐसा मेरा मत और अनुमान है ।)
विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान् ।
सरस्वतीं प्रणौम्यादौ सर्वकार्यार्थसिद्धये ॥
(सर्व कार्य सिद्ध होने के लिए प्रथम गणपति, गुरु, सूर्य, ब्रह्मा-विष्णु-महेश और सरस्वतीदेवी को नमस्कार करता हूं ।)
अभीप्सितार्थसिद्धयर्थं पूजितो यः सुरासुरैः ।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥
(इच्छित कार्य पूर्ण होने के लिए देवता और दानवों को पूजनीय तथा सर्व संकटों का नाश करनेवाले गणनायक को मैं नमस्कार करता हूं ।)
सर्वेष्वारब्धकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः ।
देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ॥
(तीनों लोकों के स्वामी ब्रह्मा-विष्णु-महेश ये त्रिदेव (हमें) प्रारंभ किए हुए सर्व कार्याें में सफलता प्रदान करें ।)
६. देशकाल
अपनी आंखों पर पानी लगाकर आगे दिया देशकाल बोलें ।
श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपदे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे युगचतुष्के कलियुगे प्रथमचरणे जम्बुद्वीपे भरतवर्षे भरतखण्डे दक्षिणपथे रामक्षेत्रे बौद्धावतारे दण्डकारण्ये देशे गोदावर्याः दक्षिणे तीरे शालिवाहन शके अस्मिन् वर्तमाने व्यावहारिके शुभकृत् नाम संवत्सरे दक्षिणायने वर्षा ऋतौ श्रावण मासे शुक्ल पक्षे पंचम्यां तिथौ (२९.४२ पर्यंत) भौम वासरे उत्तरा फाल्गुनी दिवस नक्षत्रे (१७.२९ पर्यंत) शिव योगे (१८.३६ पर्यंत) बव करणे (१७.३२ पर्यंत) कन्या स्थिते वर्तमाने श्रीचंद्रे कर्क स्थिते वर्तमाने श्रीसूर्ये मीन स्थिते वर्तमाने श्रीदेवगुरौ मकर स्थिते वर्तमाने श्रीशनैश्चरौ शेषेषु सर्वग्रहेषु यथायथं राशिस्थानानि स्थितेषु एवङ् ग्रह-गुणविशेषेण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ…
(महापुरुष भगवान श्रीविष्णु की आज्ञा से प्रेरित हुए इस ब्रह्मदेव के दूसरे परार्धा में विष्णुपद के श्रीश्वेत-वराह कल्प में वैवस्वत मन्वंतर के अठ्ठाइसवें युग के चतुर्युग के कलियुग के पहले चरण के आर्यावर्त देश के (जम्बुद्वीप पर भरतवर्ष में भरत खंड में दंडकारण्य देश में गोदावरी नदी के दक्षिण तट पर बौद्ध अवतार में रामक्षेत्र में) आजकल चल रहे शालिवाहन शक के व्यावहारिक शुभकृत् नामक संवत्सर के (वर्ष के) दक्षिणायन के वर्षा ऋतु के श्रावण महिने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के (टिप्पणी २) शिव योग की शुभघडी पर, अर्थात उपरोक्त गुणविशेषों से युक्त शुभ एवं पुण्यकारक ऐसी तिथि को)
७. संकल्प
(दायें हाथ में अक्षत लेकर आगे दिया संकल्प बोलें ।)
मम आत्मनः परमेश्वर-आज्ञारूप-सकल-शास्त्र-श्रुतिस्मृति-पुराणोक्त-फल-प्राप्तिद्वारा श्री परमेश्वर-प्रीत्यर्थं सर्वेषां साधकानां शीघ्रातिशीघ्र आध्यात्मिक उन्नती सिद्ध्यर्थं गुरुकृपा प्राप्त्यर्थं च श्रीभृगुमहर्षेः आज्ञया सद्गुरुनाथदेवता-प्रीत्यर्थं श्रीगुरुपरंपरा पूजनम् अहं करिष्ये । तत्रादौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं महागणपतिपूजनं करिष्ये । शरीरशुद्ध्यर्थं दशवारं विष्णुस्मरणं करिष्ये । कलश-घण्टा-दीप-पूजनं च करिष्ये ।
(‘करिष्ये’ बोलने के पश्चात प्रत्येक बार बाएं हाथ से आचमनी भरकर पानी दाएं हाथ पर छोडें ।)
(मुझे स्वयं को परमेश्वर की आज्ञास्वरूप सर्व शास्त्र-श्रुति-स्मृति-पुराण का फल मिलकर परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए श्री सद्गुरुनाथ देवताओं को प्रसन्न करने के लिए श्रीभृगु महर्षि की आज्ञा से मैं श्रीगुरुपरंपरा की पूजा कर रहा हूं । उसमें पहले विघ्ननाशन के लिए महागणपतिपूजन कर रहा हूं । शरीर की शुद्धि के लिए दस बार विष्णुस्मरण कर रहा हूं तथा कलश, घंटी और दीपक की पूजा कर रहा हूं ।)
८. श्रीगणपतिस्मरण
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
(मुडी हुई सूंड, विशाल शरीर, कोटि सूर्याें के प्रकाशवाले हे (गणेश) भगवान, मेरे सभी काम सदैव विघ्नरहित करें ।)
ऋद्धि-बुद्धि-शक्ति-सहित-महागणपतये नमो नमः ।
(ऋद्धि, बुद्धि और शक्ति सहित महागणपति को नमस्कार करता हूं ।)
महागणपतये नमः । ध्यायामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर ध्यान करता हूं ।)
(मन:पूर्वक श्री गणपति का स्मरण कर हाथ जोडकर नमस्कार करें ।)
तत्पश्चात शरीरशुद्धि के लिए दस बार श्रीविष्णु का स्मरण करें – नौ बार ‘विष्णवे नमो’ और अंत में ‘विष्णवे नमः ।’ बोलें ।
९. कलशपूजन
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धुकावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
(हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी (नदियों) इस जल में वास करें )
कलशाय नमः ।
(कलश को नमस्कार करता हूं ।)
कलशे गङ्गादितीर्थान् आवाहयामि ।
(इस कलश में गंगादितीर्थाें का आवाहन करता हूं ।)
कलशदेवताभ्यो नमः ।
(कलशदेवतेला नमस्कार करतो.)
सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(सर्व पूजा के लिए चंदन, फूल और अक्षत अर्पण करता हूं ।)
(कलश पर चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)
१०. घंटीपूजन
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम् ।
कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताह्वानलक्षणम् ॥
(देवताओं के आगमन के लिए और राक्षसों को जाने के लिए देवताओं को आवाहनस्वरूप घंटी नाद कर रहा हूं ।)
घण्टायै नमः ।
(घंटी को नमस्कार हो ।)
सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि । (
सर्व पूजा के लिए चंदन, फूल और अक्षत अर्पण करता हूं ।)
(घंटी को चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)
११. दीपपूजन
भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः ।
आरोग्यं देहि पुत्रांश्च मत: शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
(हे दीपक, आप ब्रह्मस्वरूप हैं । ज्योतिषों के अचल स्वामी हैं । (आप) हमें आरोग्य दीजिए, पुत्र दीजिए, बुद्धि और शांति दीजिए ।)
दीपदेवताभ्यो नमः ।
(दीपक देवता को नमस्कार करता हूं ।)
सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(सर्व पूजा के लिए चंदन, फूल और अक्षत अर्पण करता हूं ।) (समई को चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
((अंर्त-बाह्य) स्वच्छ हो अथवा अस्वच्छ हो, किसी भी अवस्था में हो । जो (मनुष्य) कमलनयन (श्रीविष्णु का) स्मरण करता है, वह भीतर तथा बाहर से शुद्ध होता है ।)
(इस मंत्र से तुलसीपत्र जल में भिगोकर पूजासामग्री तथा अपनी देह पर जल प्रोक्षण करें ।)
नवनागों का पूजन एवं नागपंचमी की पूजा का अगला भाग पढने के लिए यहां ‘क्लिक’ करें !
टिप्पणी १ – यहां देशकाल लिखते समय संपूर्ण भारत देश के लिए ‘आर्यावर्तदेशे’ ऐसा उल्लेख किया है । जिन्हें ‘जम्बुद्वीपे भरतवर्षे भरतखण्डे दण्डकारण्ये देशे गोदावर्याः…’ इस प्रकार स्थानानुसार अचूक देशकाल ज्ञात हो, वे उस अनुसार योग्य वह देशकाल बोलें । (मूलस्थान)