शरीर निरोगी रखने के लिए केवल इतना ही करें !

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१. नियमित व्यायाम करें ही !

वैद्य मेघराज पराडकर

‘नियमित व्यायाम करने से शारीरिक क्षमता में वृद्धि होती है । इसके साथ ही मन की भी क्षमता बढती है । नियमित व्यायाम करने से मन तनाव सहन करने में सक्षम होता है । व्यायाम करनेवाले को वातावरण में अथवा आहार में परिवर्तन सहसा बाधा नहीं उत्पन्न करता । व्यायाम करके शरीर सुदृढ रखने पर संक्रमक रोगों का भी प्रतिकार करने में सहायता होती है । व्यायाम करने के लिए कुछ भी व्यय (खर्च) नहीं होता । रोगनिवारण का ऐसा नि:शुल्क उपचार प्रत्येक के लिए करना सहज संभव होते हुए भी केवल ‘आलस’ इस एक स्वभावदोष के कारण वह नियमित नहीं किया जाता । तो चलिए ! आज से नियमित व्यायाम करेंगे !’

 

२. शरीर निरोगी रखने के लिए केवल इतना ही करें !

‘केवल ‘प्रतिदिन नियमितरूप से व्यायाम करना’ एवं ‘दिन में केवल २ बार ही आहार लेना’, केवल ये दो बातें ही नित्य आचरण में लाने से शरीर निरोगी रहता है । अन्य कुछ भी करने की आवश्यकता ही नहीं रहती । इतना इन २ कृतियों का महत्त्व है ।’

 

३. आराम से चलना व्यायाम नहीं !

‘आजकल अनेक लोग चलना, यह व्यायाम स्वरूप करते हैं; परंतु कुछ का चलना आराम से होता है । अनेक लोग चलते समय एक-दूसरे से बात करते हुए चलते हैं । इससे व्यायाम का लाभ नहीं होता । ‘शरीर-आयास-जनकं कर्म व्यायामः ।’ अर्थात ‘शरीर को श्रम हो, ऐसा कर्म करना, अर्थात व्यायाम’, ऐसी व्यायाम की व्याख्या है । श्रम करने से ही शरीर के तनाव सहन करने की क्षमता बढती है । इसलिए प्रत्येक को अपनी क्षमता अनुसार थोडा-बहुत श्रम हो, ऐसी पद्धति से व्यायाम करना चाहिए । ऐसा करते समय एकाएक अधिक व्यायाम करना टालें । हृदयसंबंधी विकार जिन्हें हैं वे अपने वैद्यों से परामर्श करें एवं उनके बताए अनुसार व्यायाम करें ।’

 

४. व्यायाम कब करें ?

‘सवेरे खाली पेट व्यायाम करना आदर्श है । इसलिए संभवत: सवेरे ही व्यायाम करें; परंतु सवेरे समय न मिले तो शाम को व्यायाम करें । भोजन के उपरांत पेट हलका होने तक, अर्थात लगभग ३ घंटों तक व्यायाम न करें । व्यायाम के उपरांत न्यूनतम (कम से कम) १५ मिनटों तक कुछ भी खाएं-पीएं नहीं ।’

अधिक जानकारी के लिए पढिए : सनातन का ग्रंथ ‘आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियों के निरोगी रहें !’

 

५. व्यायाम कब न करें ?

‘ज्वर आया हुआ हो, खाए हुए अन्न का पचन न हुआ हो । पेट में वैसे ही हो’, ऐसा लग रहा हो, तो व्यायाम न करें । अन्य समय पर मात्र अपनी क्षमता अनुसार नियमित व्यायाम करें ।’

 

६. केवल ‘आयुर्वेद की औषधियां खाना’ अर्थात आयुर्वेदानुसार आचरण नहीं !

‘अनेक लोग टीवी पर विज्ञापन देखकर प्रतिदिन आवले का अथवा घृतकुमारी (ग्वारपाठा, एलोवेरा) का रस पीते हैं । अनेक लोग मधुमेह पर औषधि के रूप में किसी को पूछे बिना नीम अथवा करेले का रस पीना, जामुन के बीजों का चूर्ण लेना इत्यादि करते हैं । ‘यह सर्व करते हैं, अर्थात ‘मैं आयुर्वेदानुसार आचरण करता हूं’, ऐसी उनकी समझ है । अपने मन से काफी समय तक औषधि लेते रहना गलत है । निरोगी रहने के लिए आयुर्वेद की औषधियां नियमित खाना नहीं, अपितु केवल पांच पांच मूलभूत परहेज करना आवश्यक होता है । इन पथ्यों के विषय में विस्तृत जानकारी सनातन का ग्रंथ ‘आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियों के निरोगी रहें !’ ग्रंथ में दी है । निरोगी जीवन की दिशा में मार्गक्रमण करने के लिए इस ग्रंथ का अभ्यास करें !’

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– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

 

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