प्राचीन काल से विविध योगमार्गों के अनुसार साधना करनेवाले ऋषिमुनियों का आध्यात्मिक महत्त्व !

ऋषि अथवा मुनि कहनेपर हमारे हाथ अपनेआप जुड जाते हैं और मस्तक सम्मान से झुक जाता है । इस भरतखण्ड में कई ऋषियों ने विविध योगमार्गों के अनुसार साधना कर भारत को तपोभूमि बनाया है ।

अशून्यशयन व्रत

इस दिन शेषशय्यापर विराजमान श्रीवत्स चिन्हांकि, ४ भुजाओं से युक्त एवं लक्ष्मीजीसहित विराजमान श्री नारायणजी का पूजन किया जाता है ।

भावभक्ति की अनुभूति करानेवाली पंढरपुर की यात्रा (वारी)

व्यक्तिगत जीवन के अभिनिवेष बाजू में रखकर ईश्वर के नामस्मरण में देहभान भूलानेवाला एक आध्यात्मिक समारोह है पंढरपुर की पैदल यात्रा (वारी) !

गणगौर तीज

गणगौर व्रत चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा से चैत्र शुक्ल द्वितीया तक रखा जाता है । ‘गण’ अर्थात भगवान शिव तथा ‘गौर’ अथवा ‘गौरी’ अर्थात पार्वती देवी ।

देवी की मूर्ति गिरने पर तथा भग्न होने पर क्या करें ?

मूर्ति भग्न हो जाना, यह आगामी संकट की सूचना होती है । इसलिए शास्त्र में घर तथा देवालय में विद्यमान भग्न मूर्ति का विसर्जन कर वहां नई मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करने से पहले अघोर होम, तत्त्वोत्तारण विधि (भग्न मूर्ति में विद्यमान तत्त्व को निकालकर उसे नई मूर्ति में प्रस्थापित करना) इत्यादि विधियां करने के लिए कहा गया है ।

एकादशी व्रत

केवल पुण्यसंचय हो, इस सद्हेतु से एकादशी की ओर देखना अयोग्य है । एकादशी व्रत करने के सर्वंकश लाभ समाज, राष्ट्र और व्यक्ति को हुए हैं और होनेवाले हैं । हिन्दू धर्म के प्रत्येक माह में दो एकादशी आती हैं ।

‘महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर दूध का अभिषेक न कर उस दूध को अनाथों को दें’, ऐसा धर्मद्रोही आवाहन करनेवालों को अभिमान के साथ निम्न उत्तर दें !

भगवान शिवजी को संभवतः दूध से अभिषेक करना चाहिए; क्योंकि दूध में शिवजी के तत्त्व को आकर्षित करने की क्षमता अधिक होने से दूध के अभिषेक के माध्यम से शिवजी का तत्त्व शीघ्र जागृत हो जाता है । उसके पश्‍चात उस दूध को तीर्थ के रूप में पीने से उस व्यक्ति को शिवतत्त्व का अधिक लाभ मिलता है ।

देवी का महत्त्व !

कुलदेवी, ग्रामदेवी, शक्तिपीठ आदि रूपों में देवी के विविध सगुण रूपों की उपासना की जाती है । हिन्दू संस्कृति में जितना महत्त्व देवता का है उतना ही महत्त्व देवी को भी दिया जाता है,

शक्तिदेवता !

इस वर्ष की नवरात्रि के उपलक्ष्य में हम देवी के इन ९ रूपों की महिमा समझ लेते हैं । यह व्रत आदिशक्ति की उपासना ही है !

चंडीविधान (पाठ एवं हवन)

श्री दुर्गादेवी का एक नाम है चंडी । मार्कडेय पुराण में चंडी देवी का माहात्म्य बताया गया है, जिसमें उसके अवतारों का एवं पराक्रमों का विस्तार से वर्णन किया गया है ।