एकादशी व्रत

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भगवान श्रीविष्णु के कलियुग के सगुण रूप का अस्तित्व अर्थात पंढरीनाथ की पत्थर की काली मूर्ति । वह केवल मूर्ति नहीं, श्रीविष्णु का सगुण देह है । पृथ्वी पर सगुण भक्ति करनेवाले सभी जीव इस मूर्ति की ओर अपनेआप ही आकर्षित होते हैं । किसी का भी निमंत्रण न होते हुए भी लाखों श्रद्धालु वहां आते हैं और अत्यानंद में डूब जाते हैं । थका-हारा जीव जब पंढरपुर में प्रवेश करता है, तब कुछ समय के लिए उस जीव की अवस्था उन्मनी होती है । पंढरपुर की वारी(यात्रा) का यही आध्यात्मिक रहस्य है । – श्री. श्रीकांत भट, अकोला.

अनेक संतों का कहना है कि पांच बार काशी और तीन बार द्वारका जाकर जितना पुण्य मिलता है, उतना पुण्य एक पंढरपुर की वारी(यात्रा) से मिलता है !

वारकरियों की लगन के कारण विठ्ठल को पंढरपुर में आना पड़ता है !

संत ज्ञानेश्‍वर ने वारी(यात्रा) का व्रत आरंभ किया । तब से आरंभ हुई इस वारी(यात्रा) के कारण पंढरपुर की श्री विठ्ठल की मूर्ति जागृतावस्था में है । वारकरी ‘‘राम कृष्ण हरी ।’’ ऐसा नामसंकीर्तन निरंतर करते हुए पंढरपुर जाते हैं । कलियुग में ईश्‍वर की कृपा संपादन करनेवाले एक व्यक्ति की अपेक्षा सभी मिलकर जब कृपा संपादन का प्रयास करते हैं, तब वह समष्टि साधना होती है । वारी में व्यष्टि के साथ समष्टि साधना भी होती है और सभी जीवों के उद्धार के लिए विठ्ठल को पंढरपुर में भूतल पर आना ही पड़ता है । इस तीर्थ की महिमा ही ऐसी है । यहां के भक्तों की तड़प के कारण विठ्ठल को पंढरपुर में आना पड़ता है । पंढरपुर की वारी(यात्रा) से अपने जीवन में भक्ति की अखंड धारा बहने लगती है । भावभक्ति के बीज प्रत्येक के अंतर्मन पर अंकित करनेवाली यह वारी(यात्रा) पृथ्वी के अंत तक ऐसे ही चालू रहेगी ।

ईश्वर भाव का भूखा है, इसकी प्रतिति पंढरपुर में आती है !

भक्तों के संकट के समय भागकर आने के लिए, अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करने के लिए विठ्ठल पंढरपुर में खड़े हैं । ईश्वर भाव का भूखा है, इसकी प्रतिति लेनी हो, तो पंढरपुर जाएं ।

वारकरियो, इस आषाढी एकादशी पर पंढरपुर के विठ्ठल मंदिर में धार्मिक विधि, नियमित पूजा, मंत्रपाठ, मंदिर की परंपराओं पर आघात करनेवाली मंदिर समिति पर अब वार करने की और विठ्ठल मंदिर की रक्षा करने की प्रतिज्ञा कर, भगवान विठ्ठल की कृपा संपादन करो !

– श्री. श्रीकांत भट, अकोला.

१. एकादशी व्रत करने का सर्वंकश लाभ समाज, राष्ट्र और व्यक्ति को होना

केवल पुण्यसंचय हो, इस सद्हेतु से एकादशी की ओर देखना अयोग्य है । एकादशी व्रत करने के सर्वंकश लाभ समाज, राष्ट्र और व्यक्ति को हुए हैं और होनेवाले हैं । हिन्दू धर्म के प्रत्येक माह में दो एकादशी आती हैं । प्रथम पक्ष में ‘स्मार्त’ यह शंकर की और दूसरे पक्ष में ‘भागवत’ यह विष्णु की एकादशी आती है । हिन्दू धर्म के सभी माहों की तिथियां चन्द्र के भ्रमण पर निर्मित हैं । अमावास्या से पूर्णिमा के मध्य पक्ष को ‘शुक्ल पक्ष’ और पूर्णिमा से अमावास्या के मध्य पक्ष को ‘कृष्ण पक्ष’ कहते हैं । इसमें चंद्रवर्ष के अनुसार प्रति माह दो एकादशी आती हैं ।

२. गोत्रवध दोष के नाश के लिए श्रीकृष्ण द्वारा धर्मराज को एकादशी व्रत करने को कहना

महाभारत युद्ध में गोत्रवध होने के कारण धर्मराज ने ‘गोत्रवध दोष के नाश के लिए क्या करें ?’, ऐसा श्रीकृष्ण से पूछने पर श्रीकृष्ण ने ‘एकादशी व्रत करने से गोत्रहत्यादोष नष्ट होगा’, ऐसा कहा । इस व्रत का आचरण करने पर, महापातक का नाश होगा और सभी दोष नष्ट होंगे ।

३. पौराणिक कथाओं में मनुष्य पर संस्कार करने की
क्षमता होकर व्रतों में छुपे विज्ञान के कारण मनुष्य का कल्याण होना

हमारी पौराणिक कथाओं में एक वैचारिक सूत्र होता है । उसी प्रकार उनमें मनुष्य पर संस्कार करने की क्षमता है । इतना ही नहीं, इन व्रतों में मनुष्य के लिए कल्याणकारी विज्ञान भी छुपा होता है ।

‘एकादशी उपवास करो’, ऐसा कहने से लोग तैयार होते ही हैं ऐसा नहीं है; इसलिए उन्हें पुण्य और मोक्ष प्राप्ति के संदर्भ में बताया जाता है । ‘इन उपवासों से सभी पातकों का नाश होकर ऐश्वर्य और आरोग्य संपन्नता प्राप्त होगी’, ऐसा लोगों को बताया जाता है ।

४. शरीर निरोगी रहने के लिए एकादशी महत्त्वपूर्ण !

हमारा शरीर पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश, इन पंचमहाभूतों से बना है और इन पंचमहाभूतों के पंचतत्त्व हमारे शरीर में कार्यरत होते हैं । इन सभी का हमारे शरीर पर परिणाम होता है । वातावरण का असंतुलन हमारे आरोग्य पर (अनिष्ट) परिणाम करता है । इसलिए हमारा शरीर निरोगी रहने के लिए एकादशी व्रत करना महत्त्वपूर्ण है ।

५. शरीर निरोगी और प्रतिकारक्षम बनाना और चंद्र के कारकत्व
को प्रतिकार करने के लिए एकादशी का उपवास आरोग्य के लिए आवश्यक !

‘एकादशी के पश्चात पूर्णिमा और अमावास्या, ये दो तिथियां आती हैं । उस समय आकाश में पूर्ण चंद्र और अस्तंगत चंद्र होता है । चंद्र मन का कारक है । उसी प्रकार वह जल पर भी परिणाम करता है । अमावास्या और पूर्णिमा की तिथियों पर समुद्र में आनेवाला ज्वार-भाटा भी चंद्र का समुद्र के पानी पर होनेवाला परिणाम दर्शाता है । उसी प्रकार भूपृष्ठ पर और मनुष्य के शरीर के पानी पर भी चंद्र का परिणाम होता है । शरीर के जलतत्त्व और मन पर चंद्र का परिणाम होने से मिरगी आना, ‘फिट्स’ आना, शरीर कमजोर होना इत्यादि रोग होने की संभावना होती है । इसलिए शरीर निरोगी और प्रतिकारक्षम बनाने और चंद्र के कारकत्त्व का प्रतिकार करने के लिए एकादशी का उपवास आरोग्य के लिए आवश्यक है ।’

– श्री. काशीनाथ थिटेकाका (एक हिंदुत्ववादी), पंढरपूर (कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय, कलियुग वर्ष ५११४ (१५.११.२०१२)

 

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