स्वामी विवेकानंदजी का उनके गुरु के प्रति उत्कट भाव !

वर्ष १८९६ में स्वामी विवेकानंद आगनांव से (जहाज से) नॅप्लस से कोलंबो की ओर आ रहे थे । उनके सहयात्रियों में दो ईसाई धर्मगुरु थे । अकारण वे हिन्दु धर्म तथा ईसाई पंथ में होनेवाले भेद इस विषय पर चर्चा विवाद करने लगे ।

गुरु समर्थ रामदास स्वामी के प्राण बचाने के लिए बाघिन का दूध दूहकर लानेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज !

शिवाजी महाराज प्रत्येक गुरुवार समर्थ रामदासस्वामी के दर्शन कर ही भोजन करते थे । समर्थ के दर्शन में कितनी भी बाधा आए, वे दुखी नहीं होते थे । 

जगद्गुुरु संत तुकाराम महाराज का सदेह वैकुंठगमन होने के तात्कालीन संदर्भ !

जगद्गुरु श्री संत तुकाराम महाराज का सदेह वैकुंठगमन हुआ । उनको वैकुंठ ले जाने के लिए स्वयं भगवान ही वैकुंठ से पधारे और उन्होंने उनको सदेह वैकुंठ ले जाया । यह त्रिवार सत्य है; परंतु कुछ आधुनिकतावादी लोग, हिन्दू धर्म विध्वंसक संगठन ‘तुकाराम महाराज का सदेह वैकुंठगमन नहीं हुआ, अपितु उनकी हत्या की गई’, ऐसा दुष्प्रचार कर रहे हैं ।

बेटे को संन्यास से दूर रखने के लिए शास्त्र का सहारा लेनेवाले पिता को आदि शंकराचार्य का उत्तर

आद्य शंकराचार्य ने एक ३० वर्ष के युवक को संन्यास की दीक्षा दी । उसके पिता ७५ वर्ष के थे । उन्हें यह बात अनुचित लगी । उन्होंने उनसे परिवाद (शिकायत) किया ।

महर्षि अरविंद का भारतीय स्वतंत्रता के क्रांतिकार्य में सहयोग !

अलीपुर के सभागृह से मुक्त होने के पश्चात् कोलकात्ता के उत्तरपाडा में १० सहस्त्र श्रोताओं के सामने भाषण करते समय महर्षि अरविंद ने यह स्पष्ट किया कि,‘हम दैवी आदेशानुसार राष्ट्रकार्य करेंगे ।’

भगवतभक्ति का अनुपमेय उदाहरण अर्थात् संतश्रेष्ठ नामदेव महाराज !

८४ लक्ष योनियों के पश्‍चात् जीव को मनुष्य जन्म प्राप्त होता है, किंतु उस समय यदि अधिक मात्रा में चुकाएं हुई, तो पुनः फेरा करना पडता है । अतः इस जन्म में ही आत्माराम से (ईश्‍वर से) पहचान करें !

‘हिन्दु’ इस नाम से परिचय देते समय मुझे अभिमान प्रतीत होता है ! – स्वामी विवेकानंद

पाश्चात्त्य सिद्धांतों के अनुसार पाश्चात्त्य मनुष्य स्वयं के संबंध में कहते समय प्रथम अपने शरीर को प्राधान्य देता है तथा तत्पश्चात् आत्मा को । अपने सिद्धांतों के अनुसार मनुष्य प्रथम आत्मा है तथा तत्पश्चात् उसे एक देह भी है । इन दो सिद्धांतों का परीक्षण करने के पश्चात् आप के ध्यान में यह बात आएगी कि, भारतीय तथा पाश्चात्त्य … Read more

खगोलशास्त्र और फलज्योतिषविज्ञान में अद्भुत शोध करनेवाले आचार्य वराहमिहिर के जन्मस्थान के प्रति मध्यप्रदेश सरकार की घोर उपेक्षा !

बताया जाता है कि आचार्य वराहमिहिर का जन्म ५ वीं शताब्दी में हुआ था । जोधपुर के ज्योतिषाचार्य पं. रमेश भोजराज द्विवेदी की गणनानुसार वराहमिहिर का जन्म चैत्र शुक्ल दशमी को हुआ था । वराहमिहिर का घराना परंपरा से सूर्योपासक था ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कार्य के प्रेरणास्रोत परमपूज्य भक्तराज महाराज !

प.पू. भक्तराज महाराज ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कार्य के प्रेरणास्रोत हैं । इस संदर्भ में शब्दों में कुछ व्यक्त करना अत्यंत कठिन है । प.पू. बाबा का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति प्रेम तथा उनके कार्य को मिले प.पू. बाबा के आशीर्वाद सांसारिक अर्थों में समझ सकें, इसके लिए यहां दे रहे हैं ।