१. माघ स्नान
माघ स्नान अर्थात माघ माह में पवित्र तीर्थस्थलों पर जलस्त्रोतों में किया स्नान । ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य एवं अन्य सर्व देवता माघ माह में विविध तीर्थक्षेत्रों में आकर वहां स्नान करते हैं । इसलिए इस काल में माघ स्नान करने के लिए कहा है ।
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के चौदहवे पीढी में महाराज भगीरथ हुए । पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन से मां गंगा ब्रह्मलोक से पृथ्वी पर महाराज भागीरथ के पीछे-पीछे कपिल ऋषि के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थी । इसलिए माघ स्नान का महत्व है ।
२. माघ स्नान की अवधि
पद्मपुराण एवं ब्रह्मपुराण के अनुसार माघ स्नान का आरंभ भारतीय कालगणना के शालिवाहन शक संवत्सरानुसार पौष शुक्ल पक्ष एकादशी को होता है एवं माघ शुक्ल पक्ष द्वादशी को उसकी समाप्ति होती है ।
वर्तमान की प्रथानुसार माघस्नान का आरंभ पौष पूर्णिमा को किया जाता है एवं माघ पूर्णिमा को उसकी समाप्ति होती है । इसके अनुसार अंग्रेजी कालगणनानुसार माघ स्नान सामान्यत: जनवरी-फरवरी माह में होता है ।
३. माघ स्नान का महत्त्व
३ अ. माघ स्नान के कारण आध्यात्मिक शक्ति मिलती है एवं शरीर निरोगी होता है !
माघ माह में जो पवित्र जलस्त्रोतों में स्नान करता है, उसे एक विशेष आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है । माघस्नान करनेवाले भाविकों की श्रद्धा होती है कि ‘माघस्नान मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और रोग निर्माण करनेवाले जंतुओं को नष्ट करता है । इससे शरीर निरोगी होता है ।’
३ आ. माघ स्नान के कारण सभी पापों से मुक्ति मिलती है !
उत्तरप्रदेश के प्रयाग में भौगोलिकदृष्टि से गंगा एवं यमुना एवं गुप्तरूप से सरस्वती, इन पवित्र नदियों का संगम है । ‘माघ माह में जो कोई प्रयाग के संगम के स्थान पर अथवा गोदावरी, कावेरी जैसी अन्य पवित्र नदियों में भक्तिभाव से स्नान करते हैं, वे सभी पापों से मुक्त होते हैं’, ऐसा महाभारत के अनुशासन पर्व में बताया है ।
३ इ. माघ स्नान के कारण सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति एवं मोक्षप्राप्ति होती है !
पद्म पुराण में बताया है कि भगवान श्रीहरि को व्रत, दान एवं तप से जितनी प्रसन्नता नहीं होती, उतनी माघ माह में किए गए केवल स्नान से होती है । माघ स्नान करनेवालों पर भगवान श्रीविष्णु प्रसन्न रहते हैं । श्रीविष्णु उन्हें सुख, सौभाग्य, धन, संतान एवं मोक्ष प्रदान करते हैं । धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि सकाम भाव से अर्थात सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए माघस्नान करने से उस व्यक्ति की इच्छानुसार उसे फलप्राप्ति होती है और निष्काम भाव से अर्थात केवल भगवान की प्राप्ति हेतु स्नानादि कृत्य करने से मोक्षप्राप्ति होती है ।
४. माघस्नान के लिए पवित्र जलस्त्रोत
माघ माह में प्रयाग, वाराणसी, नैमिषारण्य, हरिद्वार, नासिक इत्यादि पवित्र तीर्थक्षेत्रों के जलस्त्रोतों में स्नान किया जाता है । कन्याकुमारी एवं रामेश्वरम् जैसे तीर्थक्षेत्रों के स्थान पर किया गया स्नान भी धर्मशास्त्रानुसार उच्चकोटि के माने जाते हैं । इसके साथ ही राजस्थान के पुष्कर सरोवर में किया गया स्नान भी पवित्र है ।
इसके अतिरिक्त भारत के विविध राज्यों में अनेक पवित्र तीर्थक्षेत्र हैं । वहां भी लोग माघ माह में स्नान करने के लिए आते हैं ।
५. माघ स्नान के लिए उपयुक्त दिवस
‘संपूर्ण माघ माह में पवित्र जलस्त्रोतों में स्नान करें’, ऐसे बताया है; परंतु ऐसा करना संभव न हो, तो माघ माह में किसी भी ३ दिन स्नान करें । प्रयाग तीर्थक्षेत्र में तीन बार स्नान करने का फल दस सहस्र अश्वमेध यज्ञ करने से मिलनेवाले फल से भी अधिक होता है । तीन दिन स्नान करना संभव न होने पर माघ माह के किसी भी एक दिन तो माघ स्नान अवश्य करें । कुछ विशिष्ट तिथियों पर किया हुआ माघ स्नान विशेष फलदायी होता है । ये तिथियां आगे दिए अनुसार हैं : मकरसंक्रांत, पौष पूर्णिमा, पौष अमावास्या अर्थात मौनी अमावास्या, माघ शुक्ल पक्ष पंचमी अर्थात वसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा एवं महाशिवरात्र ।
यहां एक महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि मकरसंक्रांत का त्योहार प्रत्येक वर्ष माघ स्नान की कालावधि में आएगा, ऐसा नहीं है । इसके साथ ही महाशिवरात्रि भी माघ पूर्णिमा के उपरांत आती है; परंतु इन दोनों दिनों पर किया गया स्नान भी माघ स्नान में ही अंतर्भूत किया जाता हैं और उतना ही उपयुक्त एवं पवित्र भी माना जाता हैं ।
६. माघ स्नान का योग्य समय
सूर्योदय से पूर्व स्नान करना उत्तम माना जाता है । नारदपुराण के अनुसार माघ माह में ब्राह्ममुहूर्त पर, अर्थात सवेरे साढे तीन से चार बजे तक स्नान करने से सर्व महापातक दूर हो जाते हैं एवं प्राजापत्य यज्ञ करने का फल मिलता है । सूर्योदय के उपरांत किया गया स्नान आध्यात्मिक दृष्टि से अल्प लाभदायी अथवा कनिष्ठ माना जाता है ।
७. माघ स्नान के उपरांत सूर्य को अर्घ्य देने का महत्त्व
शास्त्र में माघ स्नान के उपरांत सूर्य को अर्घ्य देने के लिए कहा है । अर्घ्य देना, अर्थात अपनी अंजुली में पानी लेकर उसे सूर्यदेव को अर्पण करना । पद्मपुराणानुसार माघ माह में प्रातःकाल स्नान कर संपूर्ण विश्व को प्रकाश देनेवाले भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का अनन्य महत्त्व है । इसीलिए सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए एवं परमकृपालु जगदीश्वर की कृपा संपादन करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करने के उपरांत सूर्यमंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए । सूर्यमंत्र इसप्रकार है –
भास्कराय विद्महे । महद्द्युतिकराय धीमहि ।
तन्नो आदित्य प्रचोदयात ॥
अर्थ : तेज के आगर ऐसे सूर्य को हम जानते हैं । अत्यंत तेजस्वी एवं सभी को प्रकाशमान करनेवाले सूर्य का हम ध्यान करते हैं । यह आदित्य हमारी बुद्धि को सत्प्रेरणा दे ।
८. माघ माह में दान का महत्त्व एवं दान देने योग्य वस्तु
महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा है कि जो माघ में ब्राह्मणों को तिल का दान करेगा, उसे जंतुओं से भरे हुए नरक के दर्शन नहीं करने होंगे । – महाभारत, अनुशासन पर्व
माघ माह में यथाशक्ति गुड, ऊनी वस्त्र, रजाई, पादत्राण (चप्पलें) समान ठंड से रक्षा करनेवाली अन्य वस्तुओं का दान कर कहे ‘माधवः प्रीयताम् ।’ अर्थात ‘भगवान श्रीविष्णु की प्रीति एवं कृपा प्राप्त हो, इसलिए दान कर रहा हूं ।’
९. तीर्थक्षेत्रों पर जाकर माघ स्नान करना संभव न हो, तो क्या करें ?
माघ माह में ऐसी विशेषता है कि इस काल में प्रत्येक प्राकृतिक जलस्त्रोत गंगा समान पवित्र होता है । माघ स्नान के लिए प्रयाग, वाराणसी इत्यादि स्थान पवित्र माने गए हैं; परंतु ऐसे स्थानों पर जाकर स्नान करना संभव न हो, तो हमारे निकट जो भी नदी, तालाब, कुंआं जैसे किसी भी प्राकृतिक जलस्त्रोत में स्नान करें ।
१०. घर में माघ स्नान कैसे करें ?
पवित्र जलाशय में माघ स्नान करना संभव न हो, तो माघ स्नान के लिए रात में घर की छत पर मिट्टी की मटकी (घडे) में भरकर रखे गए अथवा दिन भर सूर्य-किरणों में गर्म हुए पानी से स्नान करें ।
घर में माघ स्नान करने के लिए सवेरे शीघ्र उठकर गंगा, यमुना, सरस्वती इत्यादि पवित्र नदियों का स्मरण कर, स्नान के पानी में उनका आवाहन करें । तदुपरांत उस जल से स्नान करें । तदुपरांत भगवान श्रीविष्णु का स्मरण कर उनका पंचोपचार पूजन करें । इसके पश्चात ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ यह नामजप अधिकाधिक करें । संभव हो तो उस दिन उपवास करें । इसके साथ ही अपनी पहले उल्लेखित वस्तुओं का दान करें ।
११. माघ मास में कल्पवास का महत्त्व
‘कल्प’ अर्थात वेदाध्ययन, मंत्रपठन एवं यज्ञादि कर्म । पुराणों में बताए अनुसार माघ माह में पवित्र नदियों के संगम के तट पर निवास कर इन धार्मिक कर्म करनेवाले को ‘कल्पवास’ कहते हैं । शास्त्र में कहा है कि भक्तिभाव से कल्पवास करनेवाले को सद्गति प्राप्त होती है ।
एक माह चलनेवाला पवित्र माघ स्नान मेला उत्तरप्रदेश के प्रयाग में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है । इस मेले को ‘कल्पवास’ भी कहते हैं ।
कल्पवास में प्रत्येक दिन प्रातःकाल स्नान, अर्घ्य, यज्ञ इत्यादि करने के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन देते हैं । विविध धार्मिक कथा-प्रवचन सुनते हुए पूर्ण दिन सत्संग में व्यतीत करते हैं । इस कालावधि में स्वयं को सर्व भौतिक सुखों से दूर रखा जाता है । इस कालावधि में झोपडी में रहते हैं और भूमि पर भूसी फैलाकर उसपर एक चटाई बिछाकर सोते हैं ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ‘माघ स्नान (माघ स्नान का महत्त्व, कालावधि एवं दान देनेयोग्य वस्तुएं)’ यह श्रव्य चलचित्र (वीडियाो)