परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीको अपने जीवनकार्यके विषयमें लगनेवाली कृतार्थता !

१. साधनामें भगवानकी दिशामें १ पग बढानेपर वे हमारी ओर
१० पग बढाते हैं, इस कथनकी अध्यात्मके सभी क्षेत्रोंमें हुई अनुभूति

मैं ४३ वर्षकी अवस्थामें (वर्ष १९८५ में) साधनाकी ओर मुडा । ४५ वें वर्ष (वर्ष १९८७) में मुझे परम पूज्य भक्तराज महाराज (बाबा) गुरुरूपमें मिले । वर्ष १९९० में मुझे परम पूज्य बाबाने कहा, देश-विदेशमें सर्वत्र धर्मका प्रसार कीजिए । उसके लिए उन्होंने मुझे न केवल आवश्यक ज्ञान दिया, अपितु धर्मप्रसारके लिए जा सकूं; इसलिए अपनी कार और ऊपरसे डीजलके लिए पैसे भी दिए । उस समय उन्होंने यह भी कहा, डॉक्टर, आप जितना पैर पसारेंगे, हम आपके लिए उससे अधिक लम्बी चादर बिछा देंगे ! (उनका यह कथन एक उक्ति, तेते पांव पसारिए जेती लाम्बी सौर की भांति था ।) उनके संकल्पसे ही मुझे अध्यात्मके सभी क्षेत्रों में अनुभूति हुई कि साधनामें हम जब भगवानकी ओर १ पग बढाते हैं, तब वे हमारी ओर १० पग बढाते हैं । मुझे पहलेसे ही ज्ञानकी जिज्ञासा है । अबतक परम पूज्य बाबाने मुझे अनेक साधकोंके माध्यमसे इतना ज्ञान दिया है और आज भी दे रहे हैं कि उससे सहस्रों ग्रन्थ प्रकाशित किए जा सकेंगे । अभीतक हम जानते थे कि केवल विविध प्रकारके नामजपसे ही अनिष्ट शक्तियोंसे होनेवाले कष्ट दूर किए जा सकते हैं । परंतु अब भगवानने इस प्रकारके कष्ट दूर करनेकी सैकडों नई पद्धतियां हमें सिखाई हैं और आज भी सिखा रहे हैं ।

 

२. धर्मप्रसारक और धर्मरक्षक साधकोंद्वारा हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना अवश्य होगी !

वर्ष १९८५ में मैंने सत्संग लेना आरंभ किया । समाजमें धर्मका प्रसार हो, इसके लिए आगे मैंने सनातन संस्थाकी स्थापना की । पश्‍चात सनातनके साधक सत्संग लेने लगे । पिछले अनेक वर्षोंसे मेरी प्राणशक्ति अल्प होनेके कारण मैं बाहर नहीं जा सकता; परंतु अब सनातनके साधकोंके रूपमें सैकडों धर्मप्रसारक निर्माण हो गए हैं । आज वे तन, मन और धन का त्याग कर, स्वयंप्रेरणासे धर्मका प्रसार कर रहे हैं । साधकोंने अनेक स्थानोंपर धर्महानि भी रोकी है । यह सब देखकर मुझे पूरा विश्‍वास हो गया है कि हिन्दू राष्ट्रकी (सनातन धर्म राज्यकी) स्थापना अवश्य होगी, इसीलिए मैं निश्‍चिन्त हूं ।

 

३. साधकोंकी शीघ्रतासे आध्यात्मिक उन्नति होना

नए साधकोंमें लगन, भाव आदि उत्पन्न करनेमें उत्तरदायी साधक और सन्त सफल रहे हैं । साधकोंके प्रयत्नोंसे केवल भारतमें ही नहीं, अपितु विदेशोंमें भी सैकडों साधक साधना कर आध्यात्मिक उन्नति कर रहे हैं । मुझे मिलने आनेवाले साधकोंकी व्यष्टि साधनाकी अनुभूतियां सुनकर और पूरे संसारमें होनेवाले अध्यात्मप्रसारको देखकर, लगता है कि साधकोंकी आध्यात्मिक उन्नति शीघ्रतासे हो रही है । आज सहस्रों साधक ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरपर पहुंच चुके हैं और वे अगले कुछ वर्षोंमें सन्त बनेंगे ।

 

४. कार्य करनेवाली अगली पीढी तैयार हो जानेसे कार्य अनेक गुना बढना !

मेरा कार्य करनेके लिए अगली पीढी तैयार हो रही है । अब स्वास्थ्य ठीक न होनेसे और आयु भी अधिक हानेसे मैं वर्ष २००७ से कहीं बाहर नहीं जा सका । तब भी, मेरा पूरा कार्य सैकडों साधक कर रहे हैं । इसलिए कार्य अनेक गुना बढ रहा है ।

 

५. हिन्दू राष्ट्र कौन चलाएगा, यह चिन्ता दूर करनेवाले दैवी बालक !

पूरे संसारमें मानवकी अवस्था भयावह है । सत्त्वप्रधान व्यक्ति ढूंढनेपर भी नहीं मिलते । ऐसी स्थितिमें मुझे चिन्ता होती थी कि मानवके भविष्यका क्या होगा ? ऐसी स्थितिमें भगवानने उच्च स्वर्गलोक और महर्लोक के सैकडों जीवात्माआेंको पृथ्वीपर जन्म दिया है । ये दैवी बालक-बालिकाएं सात्त्विक हैं; इसलिए हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाके पश्‍चात इसे कौन चलाएगा, यह मेरी चिन्ता भगवानने दूर कर दी है ।

जीवन कृतार्थ हुआ, इस बातकी अनुभूति देनेवाली अन्य अनेक घटनाएं हैं । उन सबको सूचीबद्ध करना असम्भव है ।

 

६. करनेके लिए कुछ नहीं बचा !

अब स्थूल और सूक्ष्म स्तरका कोई कार्य करनेके लिए शेष नहीं रहा । इसीलिए लगता है कि जीवन कृतार्थ हो गया अब भगवान श्रीकृष्णकी निम्नांकित स्थितिका कुछ-कुछ अनुभव हो रहा है ।

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥

– श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्‍लोक २२

अर्थ : हे पार्थ, मेरे लिए तीनों लोकों में कोई कर्तव्य नहीं है तथा कोेई प्राप्त होने योग्य वस्तु अप्राप्त नहीं है । तब भी मैं नियत कर्म करता हूं ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१.३.२०१७)

सन्दर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके सर्वांगीण कार्यका संक्षिप्त परिचय’

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