उष्णता के विकारों पर घरेलु औषधियां

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१. उष्णता के विकारों के कुछ लक्षण

‘गले में, छाती में अथवा पेट में जलन होना, पेशाब में जलन होना, शरीर पर फुंसियां आना; आंखें, हाथ अथवा पैर गरम होना, मासिक धर्म के समय अधिक रक्तस्राव होना, शौच के मार्ग से रक्त गिरना ।

 

२. घरेलु औषधियां

अ. चाय का १ चम्मच सब्जा के (अथवा तुलसी के) बीज एक पाव कटोरी पानी में ८ घंटे भिगो दें । तदुपरांत उसे कपभर दूध (टिप्पणी १) में डालकर शाम को पीएं ।

टिप्पणी १ – दूध पीने के संदर्भ में सर्वसाधारण नियम : औषधि मिलाए अथवा बिना औषधि के दूध के सेवन से ३ घंटे पूर्व एवं डेढ घंटे पश्चात कुछ भी न खाएं ।

आ. बाजार में शक्कर के पाक में बनाया गुलाब का सरबत (सिरप) मिलता है । १ चम्मच इस शरबत को कपभर दूध में डालकर शाम को पीएं । इसमें ऊपर दिए अनुसार चम्मचभर भिगोया हुआ सब्जा (अथवा तुलसी के बीज) भी डाल सकते हैं ।

इ. दिन में १ – २ बार आवश्यकता अनुसार गुलाब का शरबत पीएं अथवा १ – १ चम्मच गुलकंद खाएं ।’

 

३. गर्मियों में आगे बताई सावधानी रखें और विविध विकारों से दूर रहें !

१. दिवसभर में आवश्यक उतना पानी अथवा तत्सम पेय पीएं । पानी पीने के लिए प्यास लगने की प्रतीक्षा न करें । गहरे रंग की पेशाब हो रही हो, तो ध्यान रखें कि अधिक पानी पीना है ।

२. एक ही बार में गटागट पानी न पीते हुए धीरे-धीरे पानी पीएं । गर्मी से आने पर तुरंत ही पानी न पीते हुए ५ – १० मिनट शांत बैठने के पश्चात पानी पीएं ।

३. अधिक शक्कर युक्त पेय पचने में भारी होता है । इसलिए संभवत: वह न पीएं ।

४. ढीले, हल्के रंग के और वजन में हलके (संभवत: सूती) वस्त्र पहनें ।

५. व्यायाम की मात्रा अल्प रखें ।

६. धूप हो तब घर में ही अथवा छाया में ठहरें ।

७. वातावरण में ठंडापन रहने के लिए कूलर की सुविधा हो, तो दिन में कुछ घंटे उसका उपयोग करें ।

८. संभवत: सवेरे १० से पहले और दोपहर ४ के पश्चात ही घर से बाहर निकलें । ‘धूप का कष्ट न हो’, इसके लिए बाहर जाते समय ‘गॉगल’ लगाएं । छतरी अथवा सभी ओर से छाया देनेवाली टोपी (‘हैट’) का उपयोग करें ।

९. कुछ को अध्यात्मप्रसार की सेवा अथवा अन्य कारणवश बाहर जाना पडता है अथवा प्रवास करना पडता है । तब ‘उष्णता का कष्ट न हो’, इसलिए पुरुष अपनी जेब में और स्त्रियां अपनी पर्स में प्याज रखती हैं । प्याज शरीर की उष्णता खींच लेता है । उष्णता खींचने के कारण वह ३ – ४ दिनों में सूख जाता है । फिर उसे फेंक दें और उसके स्थान पर नया प्याज साथ रखें ।

१ वर्ष से अल्प आयु के बच्चों की और ६५ वर्षाें से अधिक आयु के व्यक्तियों की उपरोक्त सूत्रों के आधार पर विशेष सावधानी रखनी आवश्यक है ।’

 

४. चैत्र महिने में गर्मियों का कष्ट न हो, इसलिए ली जानेवाली औषधि

‘चैत्र महिना गर्मियों में आता है । इस गर्मी का कष्ट न हो; इसलिए एक औषधि बताई है । गुडी पाडवे के दिन इस औषधि का सभी को सेवन करना होता है । जिन्हें गर्मियों का कष्ट होता है, वे बाद में भी यह औषधि ले सकते हैं ।

पारिभद्रस्य पत्राणि कोमलानि विशेषतः ।
सपुष्पाणि समानीय चूर्णं कुर्याद्विधानतः ॥१॥
मरीचिहिंगुलवणमजमोदा च शर्करा ।
तिंतिणीमेलनं कृत्वा भक्षयेद्दाहशांतये ॥२॥

अर्थ : नीम के कोमल पत्ते एवं फूल, काली मिर्च, हींग, नमक, कच्चा आम, शक्कर और इमली, यह सर्व सामग्री एकत्र कर, स्वाद भी आए और औषधि के रूप में भी इसका उपयोग हो जाए । पुराने पत्तों में नसें होती हैं इसलिए उनका औषधीय गुण न्यून हो जाता है । अत: जितना संभव हो कोमल पत्ते ही लें ।

 

५. हृदय, इसके साथ ही सर्व शरीर के विकारों में आयुर्वेदीय औषधि देने का समय

दोपहर के भोजन के उपरांत तुरंत ही अथवा दोपहर के भोजन के डेढ घंटे में दी हुई औषधि का परिणाम हृदय पर, इसके साथ ही समस्त शरीर पर होता है; कारण यह व्यान वायु का काल है । व्यान वायु का आश्रय स्थान हृदय है, परंतु यह संपूर्ण शरीर में घूमनेवाली वायु है ।

– वैद्य मेघराज पराडकर (१८.२.२०१८)

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