त्वचा के दाद-खाज संक्रमण पर (‘फंगल इन्फेक्शन’पर) आयुर्वेद के उपचार

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वैद्य मेघराज पराडकर

 

१. दाद-खाज संक्रमण के लक्षण

‘जांघ, कांख, नितंब (कुल्हे) इत्यादि भागों पर जहां पसीने से त्वचा गीली रहती है, वहां कई बार खुजली होने लगती है । फिर छोटी-छोटी फुंसियां आ जाती हैं जो गोलाकार में फैलती जाती हैं और उससे चकत्ते चकंदळे निर्माण होते हैं । इन चकत्तों के किनार उभरे, लालिमा एवं फुंसियों से युक्त और केवल मध्यभाग में सफेद एवं रूसीयुक्त दिखाई देते हैं । यह दाद के संसर्ग होने का लक्षण होता है । यह दाद का संसर्ग ठीक होने के लिए आगे दिए उपचारों में से कोई भी एक कर देखें, इसके साथ ही आगे दी गई सूचनाओं का पालन करें ।

१. प्रतिदिन दिन में २ – ३ बार विकारग्रस्त त्वचा केवल पानी से धोकर सूखे कपडे से पोछें एवं उन चट्टों पर अपनी लार लगाएं । देखा गया है कि इससे ८ – १० दिनों में ये चट्टे पूर्णरूप से ठीक हो जाते हैं । इन दिनों संपूर्ण शरीर पर साबुन न लगाएं ।

२. ॐ पां पार्वतीभ्यां नमः । एवं ॐ वां वागीश्वरीभ्यां नमः । इन २ मंत्रजपों से पानी अभिमंत्रित कर, इसका प्राशन करें एवं इसे विकारग्रस्त त्वचा पर भी लगाएं । पानी अभिमंत्रित करने के लिए तांबे के अथवा कांच के बर्तन में थोडा पानी लेकर, उसमें अपने दाएं हाथ की पांचों उंगलियां डुबाकर उपरोक्त मंत्र २१ बार कहें ।

 

२. दाद संसर्ग पर उपचार

अ. नारियल के खोखल को जलाकर उसे लोहे के स्वच्छ पात्र पर अथवा तवे को उलटा कर उसपर रखें । इस खोखल के जलते हुए खोखल में से खोखल के ही रंग का तेल निकलता है । इस तेल के तवे पर सूखकर चिपकने से पहले ही हाथ की उंगली से जहां-जहां दाद-खाज का संक्रमण हुआ है, वहां-वहां लगाएं । पात्र गरम होने से उंगली बहुत समय तक वहां न रखें । त्वचा पर सीधे के सीधे खोखल का तेल लगाने से कुछ लोगों की त्वचा जल जाती है । वैसा न हो, इसलिए पहले त्वचा पर नारियल का तेल लगाएं और फिर उस पर खोखल का तेल लगाएं । यह उपाय सवेरे-शाम करने से दाद का संसर्ग केवल ३ – ४ दिनों में ही नियंत्रण में आ जाता है । दाद संसर्ग पर यह सबसे नामी उपाय है । (इरोड, तमिलनाडु के ‘एस.के.एम.’ नामक आस्थापन का नारियल के खोखल से इसप्रकार बना तेल मिलता है । इसे तमिल भाषा में ‘सिरट्टै तैलम्’ कहते हैं । ‘Chirattai thailam’ इसप्रकार गूगल जालस्थल पर ढूंढकर यह तेल ‘ऑनलाईन’ भी मंगवा सकते हैं । फिर इस तेल की केवल २ – ३ बूंदें ही नारियल के तेल में मिलाकर, दाद संसर्ग हुई त्वचा पर लगाएं ।)

आ. उपरोक्त उपाय संभव न हों, तो खोखल जलाकर उसकी राख बनाएं और उसे महीन चलनी से छान लें । दिन में ३ – ४ बार और रात में सोने से पूर्व यह राख दाद आनेवाले भागों पर लगाएं । ढक्कन में बारीक छिद्र की हुई डिब्बी में भरकर रखने से इसे टाल्कम पाउडर समान लगा सकते हैं ।

इ. आयुर्वेद की औषधियों की दुकान में ‘गंधकर्पूर’ नामक मलम मिलता है । उडुपी, कर्नाटक में ‘एस्.डी.एम्.’ आस्थापन के मलम ‘ऑनलाईन’ भी उपलब्ध हैं । ‘Gandha karpura’ ऐसे गूगल के जालस्थल पर ढूंढने पर इस संदर्भ की मार्गिका (लिंक) उपलब्ध है । यह मलम दादयुक्त भागों पर दिन में ३ – ४ बार लगाएं । मलम लगाने से पहले शरीर के वे भाग स्वच्छ धोकर भली-भांति सुखा लें ।

ई. रात में सोने से पहले गाय का चम्मचभर गोमूत्र अथवा गोमूत्र अर्क में चिमटीभर हलदी मिलाकर त्वचा को लगाएं ।

 

३. कुछ आनुषंगिक सूचना

अ. अधिक कष्ट हो रहा हो तो दिन में २ बार स्नान करें ।

आ. स्नान करते समय साबुन न लगाएं । साबुन से त्वचा की प्रतिकार क्षमता न्यून हो जाती है । साबुन के स्थान पर त्रिफला चूर्ण, बेसन, उबटन अथवा इसके मिश्रण का उपयोग करें ।

इ. सदैव सूती कपडों का उपयोग करें । कपडे सदैव सूखे रहें ।

ई. दाद का जिसे संसर्ग है, ऐसे व्यक्ति अपने पहने हुए कपडे प्रतिदिन धोएं । प्रतिदिन स्नान के उपरांत उपयोग की गई तौलिया (टॉवेल) धोएं । अनेक बार पहने हुए कपडे डेटॉल इत्यादि से धोए जाते हैं; परंतु तौलिया धोना ध्यान में नहीं आता । इसलिए ध्यान से तौलिया अवश्य धोएं ।

उ. दूसरों के कपडे अथवा साबुन का उपयाेग न करें ।

ऊ. उपरोक्त उपचारों से लाभ न होने पर स्थानीय वैद्य अथवा त्वचारोग तज्ञ से परामर्श करें ।

ए. दाद के संसर्ग पर केवल यहां दी हुई औषधियों का ही उपयोग करना चाहिए, ऐसा नहीं है । किसी भी उपचारपद्धतिनुसार उपचार ले सकते हैं; परंतु ‘उपचारों में सातत्य होना’, यह दाद संसर्गजन्य विकारों पर उपचारों का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है । इसलिए उपचारों में एक दिन भी खंड न पडने दें । किसी की उपचारपद्धति के तज्ञों द्वारा बताए उपचार नियमित करें ।’

 

४. त्वचा का आरोग्य टिकाने के लिए साबुन का उपयोग टालें !

स्नान के समय साबुन लगाने से साबुन के कृत्रिम द्रव्यों के कारण त्वचा रूक्ष (सूखी) बन जाती है । वैसा न हो, इसलिए साबुन के स्थान पर उबटन लगाएं । एक बार शरीर पर लगाने के लिए २ चम्मच उबटन पर्याप्त होता है । उबटन समान ही मुलतानी मिट्टी अथवा बमीठे (वारुल) की मिट्टी का उपयोग भी कर सकते हैं ।

स्नान करते समय साबुन न लगाना आदर्श है, तब भी तेल लगाकर स्नान करते हुए शरीर पर लगा अतिरिक्त तेल निकालने के लिए कुछ लोगों को साबुन लगाना सुलभ लगता है । ऐसे समय पर अधिक साबुन शरीर पर न रगडें । त्वचा पर सर्व तेल साबुन से न निकालते हुए थोडासा त्वचा पर रहने दें । शरीर पोछने के उपरांत त्वचा पर आवश्यक उतनी चिकनाई रहने दें । इससे तेल कपडों को नहीं लगता और त्वचा भी कोमल बने रहने में सहायता होती है ।

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, गोवा. (२१.१०.२०१६)

सूचना : ‘आयुर्वेद की महिमा सभी को समझ आए, यही इस लेख का उद्देश्य है । कोई भी औषधि वैद्यों के परामर्श से ही लें । इस लेख में हाट (बाजार ) में तैयार मिलनेवाले आयुर्वेद की औषधियों के नाम भी पाठकों की सुविधा के लिए दे रहे हैं । इन औषधियों से संबंधित आस्थापनों से ‘सनातन संस्था’का कोई भी आर्थिक हितसंबंध नहीं’, इस ओर पाठक कृपया ध्यान दें । – संपादक

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