ईश्‍वर का दर्शन करने के लिए आनेवालों की संख्या में हुई प्रचंड वृद्धि और समस्या का उत्तर

१. ईश्‍वर का दर्शन करने के लिए आनेवालों की संख्या में हुई
प्रचंड वृद्धि, पुजारी हमें आंख भरकर भगवान के दर्शन भी नहीं करने देते,
धक्के देकर बाहर निकालते हैं, ऐसा पुजारियों पर ठप्पा लगना और समस्या का उत्तर

१. सैकडों वर्ष पूर्व जब देवालयों का निर्माण किया गया, तब कुल जनसंख्या और दर्शन हेतु आनेवाले हिन्दुओं की संख्या मर्यादित थी । देवालय में दर्शन हेतु आनेवालों की संख्या को देखते हुए देवालय का आकार और रचना पूरक थी । अब जनसंख्या और देवालय में दर्शन हेतु आनेवालों की मात्रा ५-६ गुना बढ गई है । इसलिए देवालय में दर्शन करना कठिन हो गया है ।

२. दर्शन हेतु लगनेवाले समय का गणित

प्रत्येक भक्त को भगवान का आंख भरकर दर्शन करने में कम से कम ३ – ४ मिनट लगते हैं । यदि एक बार में गर्भगृह में ५-६ जन दर्शन कर सकते हों, तो घंटे भर में केवल ७५ से १०० जन ही दर्शन कर सकते हैं । दर्शन के लिए गर्भगृह प्रातः तडके से रात तक १०-१२ घंटे खुला रखा जाए, तब भी केवल ७५० से १२०० इतने ही दर्शनार्थी दर्शन कर सकते हैं । दर्शन के लिए तो हजारों की संख्या में लोग आए होते हैं ।

३. दर्शनार्थियाें का बुरा अनुभव

३ अ. भक्तों की अत्यधिक भीड के कारण अधिकाधिक लोगों को कुछ क्षण तो ईश्‍वर के दर्शन हों, इसलिए पुजारियों को दर्शनार्थियाे को गर्भगृह से खींचकर बाहर निकालना और उन्हें भक्तों के रोष का सामना करना पडना

मैं वाराणसी के प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन करने गया था । उस समय वहां अनेक भक्त भी दर्शन के लिए आए थे और उनकी लंबी पंक्ति थी । भक्तों की भीड होने के कारण गर्भगृह में जाने पर वहां के पुजारी केवल ५ सेकंड में उन्हें बाहर खींचकर निकालते थे । घंटों तक खडे भक्तों को आंखे भरकर भगवान के दर्शन भी नहीं करने दिए जा रहे थे । भक्तगण नमस्कार कर रहे होते, तब ही वहां के पुजारी उन्हें शीघ्रता से प्रसाद का फूल देने, उन पर पुष्प हार (प्रसाद के रूप में) फेंकना और प्रसाद देना आदि कृत्य कर रहे थे, तो अन्य पुजारी उन्हें गर्भगृह से बाहर खींच रहे थे । इसलिए नमस्कार करने और प्रसाद लेने के लिए भक्त की खींचातानी हो रही थी ।

४. देवालयों द्वारा उपयोग किया जा रहा लज्जाजनक उपाय – दर्शन करवाने के लिए पैसे लेना !

अनेक देवालयों में दर्शन करवाने हेतु १०० से ५००० रुपए तक शुल्क लिया जाता है । ईश्‍वर के दर्शन का व्यापार होना, यह हिन्दुओं के लिए अत्यधिक लज्जाजनक है ।

५. कुछ सैद्धांतिक; परंतु व्यवहार में न लाए जा सकनेवाले विचार

५ अ. ईश्‍वर के प्रति भाव रखनेवालों को ही दर्शन करवाना

निश्‍चित ही इसके लिए दर्शनार्थियाें का भाव जानने की क्षमता रखनेवाला व्यवस्थापक देवालय में होना चाहिए । सरकारीकरण हुए एक भी देवालय में ऐसे व्यवस्थापक नहीं हैं ।

५ आ. धर्मशिक्षा

ईश्‍वर के दर्शन की अपेक्षा उनका नामजप, भाव आदि साधना अगले चरण की होने के कारण उस संदर्भ में भक्तों को मार्गदर्शन करना चाहिए । इससे अंत में केवल प्राथमिक अवस्था के भक्त ही दर्शन करने आएंगे और अन्य भक्त ईश्‍वर की अनुभूति लेंगे ।

६. व्यवहारिक सूचना

६ अ. वस्तुस्थिती दर्शक फलक लगाना

दर्शनार्थियाें को दर्शन के संदर्भ में वस्तुस्थिति का ज्ञान हो, इसके लिए मंदिरों में फलक लगाने चाहिए । इससे पुजारी और मंदिर व्यवस्थापन के प्रति दर्शनार्थियाें के मन में अनुचित प्रतिक्रियाएं नहीं आएंगी ।

६ आ. दर्शन सुलभ होने के लिए विकल्प

ईश्‍वर के दर्शन हों, उनकी पूजाविधि परिसर में सर्वत्र दिखाई दे, इस प्रकार ध्वनिचित्रीकरण और दूरदर्शन संचों की व्यवस्था सर्वत्र करने पर कुछ वर्षों में अगली पीढियों के मन में ईश्‍वर के दर्शन की यह पद्धति अंकित होगी ।

७. ईश्‍वर के दर्शन के लिए कोई व्यवस्था करने की आवश्यकता न होने के आध्यात्मिक कारण !

अ. खरे भक्त को दर्शन करने देवालय में नहीं जाना पडता । ईश्‍वर स्वयं आकर उसे दर्शन देते हैं ।

आ. अनेक भविष्यवक्ताओं के अनुसार कुछ वर्षों में ही तीसरा महायुद्ध प्रारंभ होगा और पृथ्वी की अधिकतर जनसंख्या नष्ट होगी । उसमें ईश्‍वर की भक्ति न करनेवाले भी नष्ट होंगे । इसलिए आगे आनेवाले हिन्दू राष्ट्र में ईश्‍वर के दर्शन करने हेतु आनेवालों की अधिक भीड न होने के कारण सभी भावपूर्ण और वे चाहें उतने समय तक दर्शन कर सकेंगे ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (३.५.२०१५)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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