चिकनगुनिया : लक्षण एवं उपचार !

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१. ‘चिकनगुनिया’ व्याधि का स्वरूप कष्टदायक; परंतु उससे ठीक होना निश्चित !

‘कुछ वर्षाें पूर्व ‘चिकनगुनिया’ व्याधि ने महाराष्ट्र में उपद्रव मचा दिया था । ‘चिकनगुनिया’ सामान्यतः घर में एक ही समय पर सभी को होता है । सभी व्याधिग्रस्त होने से कोई किसी के लिए कुछ नहीं कर सकता । इसमें होनेवाली जोडों में वेदना, तीव्र स्वरूप की और दीर्घकाल तक रहनेवाली होने से व्याधि से तुरंत छुटकारा नहीं मिलता । कुल मिलाकर इस व्याधि का स्वरूप इतना कष्टदायक है कि केवल एक रोगी को देख लें, तब भी हमें वह सहन नहीं होता ।

‘चिकनगुनिया’ यह शब्द मूलत: साहिली भाषा का है । पहले यह व्याधि बंदरों को होती थी । ‘एडीस इजिप्टी’ नामक मच्छर की मादा इसे फैलाती है । उसके काटने से ‘अरबो वायरस’ नामक विषाणु मानवी शरीर में प्रवेश करते हैं । वायरस के शरीर में प्रवेश करने के उपरांत उनकी संख्या में वृद्धि होने से व्याधि को व्यक्त होने में ५ से ८ दिन लग जाते हैं ।

चिकनगुनिया फैलानेवाला मच्छर

 

२. ‘चिकनगुनिया’के लक्षण

२ अ. ज्वर (बुखार)

कभी लो ग्रेड (९९ से १०१ ‘फैरनहाईट’), तो कभी हाइ ग्रेड (१०१ से १०३ ‘फैरनहाईट’) ज्वर आता है । ज्वर अधिकाधिक २-३ दिन टिकता है; परंतु थोडे-थोडे दिनों में वह पुन: आ सकता है ।

२ आ. ठंड

जोरों से ठंड लगकर, फिर ज्वर आता है । अधिक चादरें ओढने पर भी ठंड लगनी कम नहीं होती ।

२ इ. सिर में वेदना

सिर भारी होकर वेदना होने लगती है ।

२ ई. मितली अथवा उलटी

ये लक्षण कुछ ही लोगों में पाए जाते हैं ।

२ उ. जोडों में वेदना

ये लक्षण अत्यंत तीव्र होते हैं । एक ही समय पर कई जोडों में सूजन आ जाती है और उनमें वेदना होने लगती है । कुछ रोगियों का कहना है कि जोडों में बिच्छू के काटने समान वेदना होती है ।’ रोगी को करवट बदलना भी असंभव हो जाता है । वह अपना कोई भी काम नहीं कर सकता । यहां तक की उसकी हाथों की उंगलियां भी सहयोग नहीं देतीं । ये वेदना धीरे-धीरे अल्प होती है । उस वेदना को ठीक होने में ४ माह से २ वर्ष का समय लग जाता है । कुछ रोगियों में ठंड, वर्षा एवं आहार में परिवर्तन होने से वेदना पुन: आरंभ हो जाती है ।

२ ऊ. फुंसियां

संपूर्ण त्वचा पर कहीं भी छोटी-छोटी फुंसियां आ जाती हैं । उनमें खुजली अथवा जलन होना, ये उसके लक्षण हैं । ३ से ४ दिनों में फुंसियां बैठ जाती हैं और वहां की त्वचा निकलने लगती है ।

२ ए. दुर्बल (शक्तिहीन) होना

थकान कम से कम सप्ताहभर तो रहती है । जानलेवा थकान, यह व्याधि का एक और लक्षण है ।

कुछ रोगियों में ये सभी लक्षण तीव्र स्वरूप के दिखाई देते हैं, तो कुछ में थोडे ही लक्षण दिखाई देते हैं । कुछ लोगों में लक्षणों का स्वरूप सौम्य होता है, परंतु ज्वर एवं जोडों में वेदना सभी में होती है ।

यह चिकनगुनिया की पुस्तक में किया वर्णन है । उसके लक्षण इतने स्पष्ट एवं तीव्र होते हैं कि व्याधि का आरंभ होते ही इसका निदान करना सहज संभव होता है । ‘आर्.टी.पी.सी.आर्.’के रक्तपरीक्षण में चिकनगुनिया के विषाणु के ‘आर्.एन्.ए.’ (रायबोन्यूक्लिइक एसिड – मानवी शरीर की प्रत्येक पेशी में विद्यमान एक प्रकार का आम्ल) देखा जा सकता है; परंतु वह विषाणु रक्त में ७ वें दिन पाए जा सकते हैं ।

 

३. उपचार

ज्वर उतारने के लिए एवं वेदनाशामक औषधियां लेने पर भी वे कितने समय लेनी होंगी, इसकी कोई निश्चिती नहीं होती । कई बार ज्वर कुछ सप्ताह अथवा कुछ माह उपरांत पुन: आ जाता है । जोडों में वेदना तो कभी-कभी २ वर्ष पीछा नहीं छोडती । आयुर्वेद की दृष्टि से विचार करें, तो इस ज्वर में अग्निमांद्य (भूक एवं पचनशक्ति का नाश), वातदोष के काम में बिगाड, रसवहस्रोत के काम में बिगाड (आहार से तैयार हुआ पहला शरीर घटक अर्थात रसधातु है । उसका शरीरभर में वहन करनेवाला स्रोत – ‘चैनल’ अर्थात रसवह स्रोत), रक्त में बिगाड, अस्थि (हड्डियां) एवं जोडों में बिगाड हुआ होता है ।

३ अ. प्रतिबंध

पहला सूत्र प्रतिबंध का ! चिकनगुनिया मच्छरों से होता है, इसलिए अपने परिसर में मच्छरों को बढने के लिए अनुकूल वातावरण टालना चाहिए । इस संबंध में महानगरपालिका, नगरपालिका एवं ग्रामपंचायत समय-समय पर सूचना देती है और मच्छरों की रोकथाम के लिए फव्वारा (fumigation) भी करती है । तब भी मच्छरों का प्रादुर्भाव हो रहा हो, तो घर की खिडकियों में जाली बिठाना और रात को मच्छरदानी का उपयोग करना, ये उपाय उत्तम हैं । बीमारी यदि हो ही गई, तो प्रारंभ में तुरंत ही निकट के वैद्य से ज्वर एवं जोडों में वेदना के लिए औषधि लाएं । वैद्य के पास यदि जाना संभव न हो एवं अन्य कोई जानेवाला न हो, तो प्राथमिक उपचार के रूप में ‘महासुदर्शन काढा’ एवं ‘दशमूलारिष्ट’ ४-४ चम्मच लें । उसमें थोडा पानी मिलाएं । वैद्य के पास जाने की क्षमता आ जाने तक यह उपचार करें ।

३ आ. भूख लगे तब ही हलका आहार लें । भूख न हो, तो लंघन करें अथवा भुने हुए चावलों की कंजी अथवा मूंग का सूप अथवा पतली दाल, ऐसा हलका आहार लें ।

दिन में ३ बार गरम पानी की थैली अथवा तवे पर कपडा रखकर बालू की पोटली बना कर सेंक दें ।

३ इ. नागरमोथा, सोंठ, चंदन, खस, सारिवा (अनंतमूल) एवं पर्पटक, इन औषधियों से तैयार किया (ये औषधियां डालकर उबाला हुआ) पानी पिएं ।

३ ई. लाही (खीलें), पतली दाल, भुने हुए चावल की खिचडी एवं ज्वार की ताजी रोटी, ऐसा हलका आहार लें । स्वाद के लिए थोडी पिसी हुई कालीमिर्च का उपयोग करें ।

३ उ. गरम कपडों का उपयोग करें ।

३ ऊ. जोडों में संभवत: कोई औषधि न लगाएं; इसलिए कि उससे फुंसियों के बढने की संभावना होती है ।

३ ए. स्नान, दिन में सोना, काम एवं पंखा टालें एवं पूर्ण विश्राम लेना अनिवार्य है ।

३ ऐ. रात में जागरण न करें ।

 

४. आयुर्वेद के कारण चिकनगुनिया के परिणाम
नष्ट होकर वेदनारहित जीवन जीने का अवसर मिलना

ज्वर एवं फुंसिया जाने के पश्चात व्याधि की दीर्घकालीन चिकित्सा आरंभ होती है । उसमें विशेषरूप से जोडों की वेदना पर उपचार करना होता है । ऐसे समय पर यहां भी हमारी सहायता के लिए आयुर्वेदशास्त्र आता है । चिकनगुनिया के कुछ रोगियों पर प्रारंभ में विरेचन अथवा बस्ती, ऐसे पंचकर्म के कुछ उपचार करके देखना पडता है । वे किसी वैद्य की देखरेख में करने होते हैं । उपचार लेते समय वैद्य के परामर्शानुसार करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । ज्वर जाने पर भी दीर्घकाल औषधियां लेनी पडती हैं । प्रत्येक रोगी के अनुसार ये औषधियां बदलती हैं; इसलिए अपने मन से औषधियां न लें । घर में एक व्यक्ति को दी हुई औषधि का उपयोग दूसरा न करे । आहार के परहेज करने हैं । उसके लिए वैद्यकीय परामर्श आवश्यक है । व्याधि से जोडों में हुआ बिगाड इसी से ठीक हो सकता है । इसीसे रोगी को वेदनारहित जीवन जीने का अवसर मिलता है ।

‘चिकनगुनिया’ इस व्याधि का स्वरूप भले ही भयंकर है, तब भी यह प्राणघातक व्याधि नहीं है । वह ठीक हो जाती है और जोडों में वेदना भी ठीक हो सकती है । केवल योग्य समय पर वैद्य के पास जाना ओर उनसे पर्याप्त समय तक उपचार लेने की आवश्यकता है ।’

– वैद्या सुचित्रा कुलकर्णी (साभार : ‘साप्ताहिक विवेक’)

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