देहली, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सनातन संस्था के कार्य का १० मार्च २०२० तक का ब्यौरा
देहली के भैरव मंदिर के विनय मार्गपर सनातन निर्मित ग्रंथ एवं सात्त्विक वस्तुओं की प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसका अनेक जिज्ञासुओं ने लाभ उठाया ।’
देहली के भैरव मंदिर के विनय मार्गपर सनातन निर्मित ग्रंथ एवं सात्त्विक वस्तुओं की प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसका अनेक जिज्ञासुओं ने लाभ उठाया ।’
धायरी गांव में स्थित धारेश्वरजी का मंदिर के दर्शन का अनुपम आनंद है । गर्भगृह में स्वयंभू प्रसन्न शिवलिंग को देखते ही हाथ अपनेआप जुड जाते हैं । चैत्र वद्य चतुर्थी को श्री धारेश्वर में बडा मेला लगता है ।
सिंधुदुर्ग जिले के देवगड तालुका में श्रीक्षेत्र कुणकेश्वर को कोकण की काशी संबोधित करते हैं । काशी में १०८ शिवलिंग हैं, तो कुणकेश्वर में १०७ शिवलिंग हैं । कोकण के अन्य प्रसिद्ध भगवान शंकर के स्थानों में इसकी गणना होती है ।
देवता अथवा गुरु के सगुण रूप की मन से कल्पना कर मन से ही उनकी स्थूल की कृति समान पूजा करना, अर्थात मानसपूजा करना ।
हमारे दक्षिण-पूर्व राष्ट्रों के दौरे पर जानकारी मिली की इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर कपूर के वृक्ष हैं और उससे शुद्ध भीमसेनी कपूर मिलता है ।
‘नृत्य,’ यह चौंसठ कलाओं में से एक कला है । भारत के विविध प्रांतों में विविध प्रकार की नृत्यकलाएं देखने मिलती हैं । उनमें से ‘गोटिपुआ’ ओडिशा का एक नृत्य है ।
प्राचीन काल में नैनातीवू को नागद्वीप नाम से पहचाना जाता था । यहां शक्तिपीठ के स्थान पर देवी का एक मंदिर है । उस देवी का नाम नागपुषाणी देवी है ।
कालिदास प्राचीन भारत के एक संस्कृत नाटककार एवं कवि थे । ‘मेघदूत’, ‘रघुवंशम्’, ‘कुमारसंभवम्’ इत्यादि संस्कृत महाकाव्यों के कर्ता इस नाम से वे विख्यात थे ।
जनवरी २०१५ में स्पिरिचुुअल साइन्स रिसर्च फाउण्डेशन (एस.एस.आर.एफ.) की ओर से आयोजित कार्यशाला में पूज्य लोलाजी, पूज्य सिरियाक, कुमारी एना ल्यु और श्री मिलुटीन से मिले मार्गदर्शन के कारण मैं भय लगने के मूल तक पहुंची और उसकी व्याप्ति ढूंढकर बही में लिख सकी ।
भारत के दक्षिण-पूर्वी छोर पर हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थक्षेत्र है धनुषकोडी ! यह स्थान पवित्र रामसेतु का उगमस्थान है । गत ५० वषों से हिन्दुओं केे इस पवित्र तीर्थस्थान की स्थिति एक उद्ध्वस्त नगर के समान हो गई है । २२ दिसंबर १९६४ को यह नगर एक चक्रवात में उद्ध्वस्त हुआ था ।