श्री गणपति

१. व्युत्पत्ति एवं अर्थ गण ± पति · गणपति । संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक । पवित्रक अर्थात सूक्ष्मातिसूक्ष्म चैतन्यकण । ‘पति’ अर्थात स्वामी । ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकोंके स्वामी । १. ‘ॐ गँ गणपतये नमः ।’ यह श्री गणेशजी का तारक नामजप सुनें । १. ‘श्री गणेशाय नमः ।’ यह श्री गणेशजी का तारक नामजप सुनें । … Read more

हनुमान जयंती

कुछ पंचांगोंके अनुसार हनुमान जन्मतिथि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है, तो कुछ चैत्र पूर्णिमा बताते हैं । महाराष्ट्रमें हनुमानजयंती चैत्र पूर्णिमापर मनाई जाती है ।

अखंड सुहागका प्रतिमान- ‘करवा चौथ’

विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पतिकी दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्यकी मंगलकामना करके भगवान रजनीनाथको (चंद्रमा) अर्घ्य अर्पित कर व्रतका समापन करती हैं । स्त्रियोंमें इस दिनके प्रति इतना अधिक श्रद्धाभाव होता है कि वे कई दिन पूर्वसे ही इस व्रतकी सिद्धताका प्रारंभ करती हैं ।

श्राद्ध तिथिनुसार क्यों करें ?

‘प्रत्येक कृतिकी परिणामकारकता, उसका कार्यरत कर्ता (उसके कर्ता), कार्य करनेका योग्य समय एवं कार्यस्थल आदिपर निर्भर करती है ।

रक्षाबंधन (राखी)

पाताल के बलिराजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा ।

श्राद्धविधिके लिए उपयोगमें लाई जानेवाली सामग्रीके उपयोग करनेका शास्त्र

‘दर्भ तेजोत्पादक है, अर्थात तेजकी निर्मितिके लिए कारक एवं पूरक है । अतः दर्भकी सहायतासे श्राद्धविधि करनेसे, उससे प्रक्षेपित तेजोमय तरंगोंके प्रभावसे श्राद्धके प्रत्येक विधिकर्ममें रज-तम कणोंके हस्तक्षेप की मात्रा घटकर विधिकर्मको गति प्राप्त होती है ।

अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणोंसे मृतदेहकी रक्षा करनेके उपाय ।

मृतदेहके चारों ओर बक्से (गत्ते) लगाना, प्रत्येक आधे घंटेके उपरांत उनके देहपर तीर्थ छिडकना, चमेलीकी उदबत्ती लगाना, श्री गुरुदेव दत्तका नामजप लगाना, मृतदेहके चारों ओर दत्तात्रेय देवताकी नामजप-पट्टियोंका मंडल बनाना इत्यादिसे मृतदेहपर होनेवाले अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमण घट जाते हैं ।

दत्तात्रेय के नामजपद्वारा पूर्वजों के कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ?

कलियुगमें अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अत: वे मायामें फंसे रहते हैं । इसलिए मृत्युके उपरांत ऐसे लोगोंकी लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोक (मृत्युलोक)में फंस जाती है । मृत्युलोकमें फंसे पूर्वजोंको दत्तात्रेयके नामजपसे गति मिलती है

श्राद्धकर्म : पितृऋण चुकाने का सहज एवं सरल मार्ग

हिंदु धर्ममें उल्लेखित ईश्वरप्राप्तिके मूलभूत सिद्धांतोंमेंसे एक सिद्धांत ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण, इन चार ऋणोंको चुकाना है । इनमेंसे पितृऋण चुकानेके लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है ।

दशहरा (विजयादशमी)

आश्विन शुक्ल दशमीकी तिथिपर दशहरा मनाते हैं । दशहरेके पूर्वके नौ दिनोंमें अर्थात नवरात्रिकालमें दसों दिशाएं देवीमांकी शक्तिसे आवेशित होती हैं ।