राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनने की अपेक्षा साधक-शिष्य बनना सदैव श्रेयस्कर !

‘किसी भी राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनने की अपेक्षा साधक अथवा शिष्य बनना लाखों गुना श्रेष्ठ है; क्योंकि राजनीतिक दल में रज-तम गुण बढते हैं, जबकि साधक अथवा शिष्य बनने पर सत्त्वगुण बढता है । इससे ईश्वर की दिशा में आगे बढते हैं ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

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