संतों की श्रेष्ठता !

‘अपने पुत्र का आगे कैसे होगा ?’, यह चिंता उसके माता-पिता को होती है । इसके विपरीत ʻराष्ट्र के सभी लोगों को संत अपनी संतान मानते हैं । इस व्यापक भाव के कारण संत सदैव आनंदी रहते हैं ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

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