व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थकों, मानव को मानव देहधारी प्राणी मत बनाओ !

‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर उसके समर्थक आसमान सिर पर उठा लेते हैं । वे भूल जाते हैं कि प्राणी और मानव इनमें महत्त्वपूर्ण भेद यही है कि प्राणी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुसार अर्थात स्वेच्छा से आचरण करते हैं; इसके विपरीत मानव व्यक्तिगत स्वतंत्रता को भूलकर, क्रमशः परिवार, समाज राष्ट्र एवं धर्म के हित का विचार कर आचरण करता है । इसका अर्थ है क्रमशः स्वेच्छा के स्थान पर परेच्छा से आचरण करना और अंत में ईश्वरेच्छा से आचरण करना उससे अपेक्षित है । ऐसा करने पर ही वह वास्तव में मानव बनता है; अन्यथा वह केवल मानव देहधारी प्राणी रह जाता है !’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

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