‘पचन अच्छा होना’, यह केवल शरीर के लिए ही नहीं, अपितु मन के आरोग्य के लिए भी आवश्यक !

‘एक बार मुझे बहुत निराशा आई थी । दैनंदिन जीवन की भागदौड से मैं इतना ऊब गया था कि मुझे लगने लगा, ‘घर छोडकर मैं कहीं दूर चला जाऊं ।’ तब मैंने अनायास अपने आयुर्वेद के गुरु वैद्य अनंत धर्माधिकारी से संपर्क कर, अपनी मनःस्थिति बताई । इस पर वे बोले,

दिन में ४ – ४ बार खाना टालें !

जो शारीरिक श्रम करते हैं, यदि वे ३ बार आहार लें, तो ठीक है; परंतु जो बैठकर काम करते हैं, उन्हें केवल २ बार भोजन करना चाहिए । इससे अधिक खाने पर वह स्वास्थ्य के बिगडने का कारण बन जाता है ।’

क्या तडका दिए पोहों से पित्त होता है ?

‘तडका देकर बनाए पोहे, यह अल्पाहार में अधिक खाया जानेवाला पदार्थ है । कुछ लोगों को तडका देकर बनाए पोहे खाने से गले एवं छाती में जलन एवं मितली आने जैसे कष्ट होते हैं ।

वर्षा ऋतु में सर्दी, खांसी, ज्वर एवं कोरोना में उपयुक्त घरेलु औषधियां

औषधि अपने मन से न लेते हुए वैद्यों के मार्गदर्शनानुसार ही लेनी चाहिए; परंतु कई बार वैद्यों के पास तुरंत ही जाने की स्थिति नहीं रहती । कई बार थोडी-बहुत औषधि लेने पर वैद्यों के पास जाने की आवश्यकता ही नहीं पडती । इसलिए ‘प्राथमिक उपचार’ के रूप में यहां कुछ आयुर्वेद की औषधियां दी हैं ।

चिकनगुनिया : लक्षण एवं उपचार !

‘चिकनगुनिया’ इस व्याधि का स्वरूप भले ही भयंकर है, तब भी यह प्राणघातक व्याधि नहीं है । वह ठीक हो जाती है और जोडों में वेदना भी ठीक हो सकती है । केवल योग्य समय पर वैद्य के पास जाना ओर उनसे पर्याप्त समय तक उपचार लेने की आवश्यकता है ।’

खुलकर बात करना एक महान औषधि है !

पूर्वाग्रह, राग, भय के समान मूलभूत स्वभावदोषों के कारण अधिकांश लोगों के लिए खुलकर बात करना असहज रहता है । कुछ लोगों के मन में अनेक वर्षाें के प्रसंग तथा उस संबंधी भावनाएं रहती हैं । यदि मन में किसी भी प्रकार के विचार संगठित हुए, तो उसका परिणाम देह पर होता है तथा विभिन्न शारीरिक कष्ट आरंभ होते हैं ।

आयुर्वेद : रोगों का मूल एवं उस पर दैवीय चिकित्सा

कोई भी रोग, यह शरीर के वात, पित्त एवं कफ की मात्रा में परिवर्तन होने से होता है । आयुर्वेद के अनुसार कर्करोग से हृदयरोग तक एवं पक्षाघात से लेकर मधुमेह तक सर्व रोगों का मूल यही है । शरीर के त्रिदोषों में से किसी भी दोष की मात्रा बढने अथवा अल्प होने अथवा उनके गुणों में परिवर्तन होने से वे दूषित हो जाते हैं । फिर यही कण शरीर में रोग उत्पन्न करते हैं ।

आम्लपित्त : आजकल की बडी समस्या एवं उस पर उपाय !

आम्लपित्त के कष्ट के पीछे के कारणों का तज्ञों की सहायता से शोध लेकर उनपर कायमस्वरूपी उपचार करना अत्यावश्यक है । इसके लिए जीवनशैली में परिवर्तन करने की तैयारी होनी चाहिए ।

खाद्यपदार्थाें के संदर्भ में विवेक जागृत रखें !

पोषणमूल्यहीन, चिपचिपे, तेल से भरे तथा ‘प्रिजर्वेटिव पदार्थाें का उपयोग किए गए तथा स्वास्थ बिगाडनेवाले पदार्थ खाने की अपेक्षा पौष्टिक, सात्त्विक तथा प्राकृतिक पदार्थ खाने चाहिए । चॉकलेट आदि पदार्थ कभी कभी खाना ठीक है; किंतु नियमित सेवन न करें ।’